क्या भारत की परंपराएं और भाषा पर आधारित कहानियां अमिट छाप छोड़ती हैं? : विनीत कुमार सिंह

सारांश
Key Takeaways
- भारतीय सिनेमा में परंपराओं का महत्व
- ग्रामीण कहानियों की समृद्धि
- संस्कृति को समझना आवश्यक है
- भाषा का प्रभाव
- कहानियों का वैश्विक आकर्षण
मुंबई, 8 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बॉलीवुड अभिनेता विनीत कुमार सिंह ने फिक्की फ्रेम्स 2025 में एक महत्वपूर्ण चर्चा में भाग लिया। इस अवसर पर, उन्होंने भारतीय सिनेमा में देश की जड़ों से जुड़ी कहानी कहने के महत्व पर रौशनी डाली।
उन्होंने यह भी बताया कि फिल्म निर्माताओं को हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और ग्रामीण कथाओं से प्रेरणा लेकर अपनी कहानियों को पर्दे पर पेश करना चाहिए।
फिक्की फ्रेम्स 2025 में बोलते हुए, 'जाट' अभिनेता ने उल्लेख किया कि जहां ट्रेंड्स बदलते रहते हैं, वहीं भारत की परंपराएं, भाषा और ग्रामीण कहानियां अमिट छाप छोड़ती हैं।
सिंह ने कहा, "जब मैं वह नहीं पा रहा था जो मैं चाहता था, तो मैंने अपने लिए एक फिल्म लिखी, 'मुक्काबाज'। मुझे लगता है कि हमेशा वहां जाना चाहिए जहां आपके पास संसाधन हों। मैं हार्टलैंड के बारे में कुछ कहना चाहूंगा। हमारे राष्ट्रगान में कुछ शब्द हैं, पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा, द्रविड़…। अगर आप इन शब्दों पर ध्यान दें, तो यह सिर्फ शब्द नहीं हैं। प्रत्येक शब्द में संगीत, नृत्य, भोजन और भाषा है। जब हम अपनी चीजों से कुछ नया खोजने की कोशिश करते हैं, तो उसमें एक विशेष खुशबू होती है जो लोगों को आकर्षित करती है।"
विनीत ने अपने संस्कृति की कहानियों और किस्सों को खोजने की आवश्यकता पर जोर दिया, और कहा, "यहां से जो कहानियां फिल्मकार लाएंगे, वे न केवल हमारे बल्कि दुनियाभर के दर्शकों को भी आकर्षित करेंगी।"
विनीत ने आगे कहा, "रवींद्रनाथ टैगोर ने गीतांजलि अपनी भाषा में लिखी, और जब इसे अंग्रेजी में अनुवादित किया गया, तो पूरी दुनिया ने इसे समझा। जब हम अपनी भाषा में कुछ कहते हैं, तो उसका असर होता है जो आपको नोबेल पुरस्कार दिला सकता है और इसे भुलाया नहीं जा सकता।"
विनीत कुमार ने बताया कि यह समझना महत्वपूर्ण है कि हम किस दिशा में बढ़ रहे हैं। फिल्म से जुड़े लोगों को दिल से सोचना चाहिए।