क्या भुलेश्वर महादेव मंदिर है रहस्यमय, जहां नंदी भगवान शिव से मुख मोड़कर बैठते हैं?
सारांश
Key Takeaways
- भुलेश्वर महादेव मंदिर का अनोखा नजारा
- नंदी महाराज का भगवान शिव से मुख मोड़ना
- प्रसाद का रहस्य
- मंदिर की प्राचीन वास्तुकला
- स्थानीय लोककथाएँ
महाराष्ट्र, 20 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। भगवान शिव के अनन्य भक्तों में नंदी महाराज की गिनती होती है, जिन्होंने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की है। हर मंदिर में जहां भगवान शिव विराजमान होते हैं, वहां नंदी महाराज भी उपस्थित रहते हैं, लेकिन महाराष्ट्र के एक अनोखे मंदिर में नंदी, भगवान शिव की ओर मुंह मोड़कर बैठे हैं। यह दृश्य भुलेश्वर महादेव मंदिर में देखने को मिलता है।
महाराष्ट्र के पुणे-सोलापुर राजमार्ग से 10 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ियों के बीच भुलेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर है और इसका निर्माण 8वीं शताब्दी में हुआ था। इसकी दीवारों पर शास्त्रीय नक्काशी है और इसको संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। यह मंदिर अपनी प्रचलित लोककथा के लिए भी जाना जाता है, जिसमें कहा गया है कि जब शिवलिंग पर मिठाई या पेड़े का भोग चढ़ाया जाता है, तो एक या एक से अधिक मिठाइयाँ गायब हो जाती हैं।
वास्तव में, शिवलिंग के ठीक नीचे एक गुफा है, जहां पुजारियों द्वारा रोजाना प्रसाद चढ़ाया जाता है और प्रसाद का कुछ हिस्सा रहस्यमय तरीके से गायब हो जाता है। किसी को नहीं पता कि प्रसाद का वह हिस्सा कहाँ जाता है। माना जाता है कि भगवान स्वयं आकर प्रसाद ग्रहण करते हैं।
मंदिर की विशेषता यह भी है कि इसके गर्भगृह में भगवान शिव, गणेश और कार्तिकेय की स्त्री वेश वाली प्रतिमाएँ हैं। भक्त शिवलिंग के अलावा, स्त्री वेश धारण किए भगवान शिव, गणेश और कार्तिकेय का आशीर्वाद लेने आते हैं।
हर मंदिर में जहां शिवलिंग के सामने नंदी का मुख होता है, भुलेश्वर महादेव का नज़ारा अलग है। मंदिर में नंदी महाराज की गर्दन भगवान शिव को न देखते हुए दाईं ओर मुड़ी हुई है। प्रचलित कथा के अनुसार, जब मां पार्वती भगवान शिव को वापस लेने आईं थीं, तब नंदी ने दोनों को न देखते हुए चेहरा मोड़ लिया था। तब से अब तक नंदी इसी अवस्था में विराजमान हैं।
एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार मां पार्वती से क्रोधित होकर भगवान शिव ने कैलाश छोड़कर इसी स्थान पर वर्षों तक तपस्या की थी। भगवान शिव को मनाने के लिए मां पार्वती ने बेहद सुंदर रूप धारण किया और अपने नृत्य से भगवान शिव को प्रसन्न करने का प्रयास किया। मां पार्वती के आकर्षक रूप को देखकर भगवान शिव ने अपना सारा क्रोध भूलकर वापस कैलाश लौटने का निर्णय लिया। इसी कारण मंदिर का नाम भुलेश्वर महादेव पड़ा।
1000 साल पुराना यह मंदिर अपनी निर्माण और वास्तुकला में अद्वितीय है, जिसमें मुगलकाल से लेकर मराठा सभ्यता का प्रभाव देखने को मिलता है। मंदिर को कई बार तोड़ा गया और कई बार बनाया गया। यह बाहर से ताजमहल के समान दिखता है, लेकिन अंदर से बहुत प्राचीन है। मंदिर के स्तंभों पर स्त्री रूप धारण किए गणेश और भगवान कार्तिकेय की प्रतिमाएँ हैं।