क्या भाजपा की लगातार चौथी जीत के बाद बाढ़ विधानसभा के समीकरण बदलेंगे?
सारांश
Key Takeaways
- बाढ़ विधानसभा क्षेत्र को 'पटना का मिनी चित्तौड़गढ़' कहा जाता है।
- राजपूत मतदाता इस क्षेत्र की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- भाजपा का प्रभाव इस क्षेत्र में लगातार बढ़ता जा रहा है।
- बाढ़ का इतिहास मुगलकाल से पहले का है।
- यह क्षेत्र व्यापार और परिवहन का एक प्रमुख केंद्र रहा है।
पटना, 27 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार के राजनीतिक परिदृश्य पर कुछ निर्वाचन क्षेत्र ऐसे होते हैं, जो सिर्फ चुनाव क्षेत्र नहीं, बल्कि अपनी विशिष्ट पहचान और उपनाम के लिए भी जाने जाते हैं। बाढ़ विधानसभा क्षेत्र भी उनमें से एक है, जिसे 'पटना का मिनी चित्तौड़गढ़' कहा जाता है। यह उपनाम किसी कारण से नहीं मिला है। यह क्षेत्र राजपूत मतदाताओं के पुरातन प्रभाव और वर्चस्व की कहानी बयां करता है।
बाढ़ सीट की राजनीति में राजपूतों का दबदबा है, यही कारण है कि आज तक केवल एक बार ही कोई गैर-राजपूत उम्मीदवार यहां से चुनाव जीत सका है।
1951 में विधानसभा क्षेत्र के रूप में स्थापित होने के बाद, बाढ़ अब तक 17 चुनावों का गवाह बन चुका है। पहले यह क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था, जिसने कुल छह बार जीत हासिल की, लेकिन 1985 के बाद कांग्रेस की विजय यात्रा थम गई।
आज यह सीट भाजपा का एक मजबूत किला बन चुकी है, जिस पर लंबे समय से एनडीए का शासन है। ज्ञानेंद्र कुमार सिंह 'ज्ञानू' ने इस सीट को अपनी राजनीतिक कर्मभूमि बना लिया है और वे लगातार चार बार विधायक चुने गए हैं।
2020 के विधानसभा चुनाव में, ज्ञानेंद्र कुमार सिंह ने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में इंडियन नेशनल कांग्रेस के सत्येंद्र बहादुर को भारी अंतर से हराकर यह सीट जीती थी।
2020 के आंकड़ों के अनुसार बाढ़ विधानसभा क्षेत्र में कुल 2,80,165 पंजीकृत मतदाता थे। राजपूत मतदाता यहां की राजनीति को आकार देते हैं, जबकि यादव, मुस्लिम और अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या भी महत्वपूर्ण है। अनुसूचित जातियों के मतदाताओं का हिस्सा 19.07 प्रतिशत है, जबकि मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 3.3 प्रतिशत है। क्षेत्र का लगभग 85 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण है।
बाढ़ विधानसभा मुंगेर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है। इसकी ऐतिहासिक पहचान इतनी गहरी है कि इसे भारत के सबसे पुराने अनुमंडलों में गिना जाता है, जिसकी स्थापना की सटीक तारीख ब्रिटिश काल के दस्तावेजों में भी दर्ज नहीं है।
'बाढ़' का इतिहास मुगलकाल से पहले का है। 1495 में, यहां सिकंदर लोदी और बंगाल के शासकों के बीच एक महत्वपूर्ण 'शांति संधि' हुई थी, जिसने इस क्षेत्र को दिल्ली और बंगाल के अधीन क्षेत्रों में विभाजित किया था। 16वीं सदी में, शेरशाह सूरी ने व्यापारियों और यात्रियों के लिए यहां 200 कमरों वाली एक भव्य सराय का निर्माण किया था। गंगा के किनारे होने के कारण यह हमेशा से व्यापार और परिवहन का केंद्र रहा है।
ब्रिटिश शासन के दौरान 1877 में यह उन पहले शहरों में शामिल हुआ जहां रेलवे स्टेशन की स्थापना हुई थी। हालांकि, 1898 से 1901 के बीच प्लेग महामारी ने क्षेत्र को बुरी तरह प्रभावित किया और हजारों जिंदगियां छीन ली।
दिलचस्प बात यह है कि 'बाढ़' नाम की उत्पत्ति को लेकर भी तीन मत हैं। एक मत इसे गंगा की 'बाढ़' (फ्लड) से जोड़ता है, दूसरा इसे कोलकाता से आने वाले जहाजों के 12वें ठिकाने से जोड़ता है और तीसरा 1934 में आयोजित पहले 'बार' अधिवेशन से।