क्या भाजपा को संघ की नाराजगी दूर करने के लिए तारीफ करनी पड़ रही है?

सारांश
Key Takeaways
- अधीर रंजन चौधरी ने संघ की तारीफ पर सवाल उठाया।
- आरएसएस की नाराजगी ने भाजपा को पिछले चुनाव में नुकसान पहुंचाया।
- पीएम मोदी ने संघ के 100 साल पूरे होने पर तारीफ की।
- संघ का प्रभाव भाजपा की राजनीति में महत्वपूर्ण है।
- क्या तारीफें केवल नाराजगी दूर करने के लिए हैं?
मुर्शिदाबाद, 28 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के 100 वर्ष पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा पर कटाक्ष किया है। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी द्वारा संघ की तारीफ करने का यह सिलसिला हाल ही में शुरू हुआ है और यह आगे भी जारी रहेगा।
राष्ट्र प्रेस से बातचीत में अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि पीएम मोदी आजकल संघ की जमकर तारीफ कर रहे हैं। उन्हें पहले ऐसा करते नहीं देखा गया। इसका कारण स्पष्ट है। पिछले लोकसभा चुनाव में आरएसएस की नाराजगी के चलते भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा और जीती गई सीटों की संख्या में कमी आई।
उन्होंने बताया कि कहा जाता है कि आरएसएस ने भाजपा को सबक सिखाने के लिए ऐसा किया। इसके बाद भाजपा और पीएम मोदी ने संघ को मनाने की कोशिशें शुरू कर दीं। उन्होंने आगे कहा कि संघ की नाराजगी को दूर करने और उन्हें संतुष्ट करने के लिए पीएम मोदी और भाजपा की तरफ से तारीफों का दौर चल रहा है और यह क्रम आगे भी जारी रहेगा।
बता दें कि पीएम मोदी ने 'मन की बात' कार्यक्रम में कहा कि आरएसएस 100 वर्षों से 'बिना थके, बिना रुके' राष्ट्र सेवा के कार्य में लगा हुआ है। इसीलिए हम देखते हैं कि देश में कहीं भी प्राकृतिक आपदा आती है, आरएसएस के स्वयंसेवक सबसे पहले वहां पहुंच जाते हैं। लाखों स्वयंसेवकों के जीवन के हर कर्म, हर प्रयास में राष्ट्र प्रथम की यह भावना हमेशा सर्वोपरि रहती है।
उन्होंने कहा, "अगले कुछ दिनों में हम विजयादशमी मनाने वाले हैं। इस बार विजयादशमी एक और कारण से बहुत विशेष है। इसी दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के 100 वर्ष पूरे हो रहे हैं। एक शताब्दी की यह यात्रा जितनी अद्भुत है, उतनी ही प्रेरक भी है।"
पीएम मोदी ने कहा कि 100 साल पहले जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई थी, तब देश सदियों से गुलामी की जंजीरों में बंधा हुआ था। सदियों की इस गुलामी ने हमारे स्वाभिमान और आत्मविश्वास को गहरी चोट पहुंचाई थी। विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता के सामने पहचान का संकट खड़ा किया जा रहा था। देशवासी हीन-भावना का शिकार होने लगे थे। इसलिए देश की आजादी के साथ-साथ यह भी महत्वपूर्ण था कि देश वैचारिक गुलामी से भी मुक्त हो।