क्या कुम्हरार विधानसभा में भाजपा का विजय क्रम जारी रहेगा?

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क्या कुम्हरार विधानसभा में भाजपा का विजय क्रम जारी रहेगा?

सारांश

कुम्हरार विधानसभा क्षेत्र, जो बिहार की राजधानी पटना में स्थित है, ने पिछले 35 वर्षों से भाजपा के लिए जीत के दरवाजे खोले हैं। क्या इस बार समीकरण बदलेंगे? जानिए इस सीट के ऐतिहासिक और राजनीतिक पहलुओं के बारे में।

Key Takeaways

  • कुम्हरार विधानसभा भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण सीट है।
  • यह सीट गौरवमयी मगध साम्राज्य से जुड़ी है।
  • पिछले 35 वर्षों से भाजपा की जीत का सिलसिला जारी है।
  • कायस्थ वोट बैंक भाजपा की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
  • समीकरण बदलने की संभावना हमेशा बनी रहती है।

पटना, 23 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार की राजधानी पटना का कुम्हरार विधानसभा क्षेत्र केवल एक चुनावी सीट नहीं है, बल्कि यह उस गौरवमयी मगध साम्राज्य का प्रतीक है, जहां से भारत का सबसे बड़ा साम्राज्य आरंभ हुआ था। पहले इसे 'पटना सेंट्रल' के नाम से जाना जाता था, जिसकी स्थापना 1977 में की गई थी।

2008 के परिसीमन के बाद इसका नाम बदला गया और इसे कुम्हरार कहा जाने लगा। यह पटना नगर निगम के आठ वार्ड और पटना ग्रामीण ब्लॉक के एक क्षेत्र को मिलाकर बना है, जो पूरी तरह से शहरी क्षेत्र में आता है।

कुम्हरार (पूर्व में पटना सेंट्रल) भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण सीट बन चुकी है, जिसे जीतना विपक्ष के लिए लगभग असंभव रहा है। भाजपा ने यहां पहली बार 1980 में जीत हासिल की और केवल 1985 में कांग्रेस से हार का सामना किया, तब से यह सीट लगातार भाजपा के पास है।

इस सीट को भाजपा के प्रमुख नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने मजबूती दी। उन्होंने 1990 से 2000 तक, यानि लगातार तीन बार, पटना सेंट्रल से जीत हासिल की। इसके बाद अरुण कुमार सिन्हा ने इस सीट पर अपनी पकड़ मजबूत की और लगातार पांच बार विधायक चुने गए।

पिछले 35 वर्षों से यह सीट भाजपा के लिए एकतरफा मुकाबला रही है। 2020 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा के अरुण कुमार सिन्हा ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के धर्मेंद्र कुमार को बड़े अंतर से हराया। अरुण कुमार को 81,400 वोट मिले, जबकि धर्मेंद्र को 54,937 वोट प्राप्त हुए।

भाजपा की जीत का अंतर भी उल्लेखनीय रहा है। 2010 में 67,808 वोटों से, 2015 में 37,275 और 2020 में 26,463 मतों से जीत हासिल की गई। इसी तरह लोकसभा चुनावों में भी भाजपा ने कुम्हरार में 2014 में 64,033, 2019 में 62,959 और 2024 में 47,149 मतों की बढ़त प्राप्त की है। यह सीट पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है।

दशकों से, कायस्थ वोट बैंक ही भाजपा की जीत में निर्णायक रहा है। कायस्थों के अलावा, यहां भूमिहार और अति पिछड़ा वर्ग के वोट भी बड़ी संख्या में हैं। जातियों की बात करें तो यादव, राजपूत, कोयरी, कुर्मी, ब्राह्मण और मुस्लिम वोटर भी इस विधानसभा क्षेत्र में मौजूद हैं।

2020 के आंकड़ों के अनुसार, अनुसूचित जाति के मतदाता 7.21 प्रतिशत और मुस्लिम मतदाता 11.6 प्रतिशत थे। अब तक विपक्ष इस सीट पर स्थापना में असफल रहा है।

यही वह पवित्र भूमि है, जहां कभी शक्तिशाली पाटलिपुत्र नगरी बसी थी, जिसने सदियों तक पूरे उपमहाद्वीप पर शासन किया। राजा बिंबिसार के पुत्र अजातशत्रु ने जब राजधानी को राजगीर से यहां स्थानांतरित किया, तब से लेकर चाणक्य के मार्गदर्शन में चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा मौर्य साम्राज्य की नींव रखने तक, पाटलिपुत्र सत्ता का केंद्र रहा। बाद में, सम्राट अशोक की राजधानी भी यही बनी, जिनका साम्राज्य अफगानिस्तान से लेकर बांग्लादेश तक फैला था।

Point of View

लेकिन क्या यह स्थिति बनी रहेगी? राजनीतिक विश्लेषणों के अनुसार, इस क्षेत्र के मतदाता अब बदलाव की मांग कर रहे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी चुनावों में किस तरह के समीकरण बनते हैं।
NationPress
23/10/2025

Frequently Asked Questions

कुम्हरार विधानसभा का इतिहास क्या है?
कुम्हरार विधानसभा क्षेत्र का इतिहास मगध साम्राज्य से जुड़ा है। इसे पहले पटना सेंट्रल के नाम से जाना जाता था और यह भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण सीट बन गई है।
भाजपा ने कुम्हरार में कब से जीत हासिल की है?
भाजपा ने कुम्हरार में पहली बार 1980 में जीत हासिल की थी और तब से यह सीट लगातार भाजपा के पास है, केवल 1985 में कांग्रेस से हार का सामना किया।
कुम्हरार में मतदाता कौन-कौन सी जातियों से आते हैं?
कुम्हरार में कायस्थ, भूमिहार, अति पिछड़ा वर्ग, यादव, राजपूत, कोयरी, कुर्मी, ब्राह्मण और मुस्लिम मतदाता शामिल हैं।