क्या नेपाल की अराजकता को जीवंत लोकतंत्र कहना उचित है? अमित मालवीय ने पूर्व सीईसी एसवाई कुरैशी पर उठाए सवाल

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क्या नेपाल की अराजकता को जीवंत लोकतंत्र कहना उचित है? अमित मालवीय ने पूर्व सीईसी एसवाई कुरैशी पर उठाए सवाल

सारांश

क्या नेपाल की अराजकता को जीवंत लोकतंत्र कहना उचित है? अमित मालवीय ने पूर्व सीईसी एसवाई कुरैशी के बयान को अनैतिक बताया है। उन्होंने कुरैशी के कार्यकाल पर गंभीर सवाल उठाते हुए, उनके रिकॉर्ड का हवाला दिया है। जानिए इस विवाद के पीछे की सच्चाई और राजनीतिक खेल के बारे में।

Key Takeaways

  • कुरैशी का बयान विवादित है।
  • नेपाल की स्थिति पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं।
  • चुनाव आयोग के फैसले पर चर्चा।
  • अमित मालवीय ने पूर्व सीईसी पर तीखा हमला किया।
  • राजनीतिक जवाबदेही की आवश्यकता।

नई दिल्ली, 16 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) शहाबुद्दीन याकूब कुरैशी के खिलाफ तीखा हमला बोला है। मालवीय ने कुरैशी के नेपाल में हाल की घटनाओं को 'जीवंत लोकतंत्र' बताने वाले बयान को 'अनैतिक और चौंकाने वाला' करार दिया। उन्होंने कुरैशी के कार्यकाल पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह टिप्पणी उनके 'रिकॉर्ड' को देखते हुए आश्चर्यजनक नहीं है।

अमित मालवीय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर शहाबुद्दीन याकूब कुरैशी का एक वीडियो साझा किया। उन्होंने कुरैशी के कार्यकाल के दौरान चुनाव आयोग के फैसलों पर गंभीर आरोप लगाए।

उन्होंने एक्स पर लिखा, "पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने नेपाल में हाल की घटनाओं को 'अराजकता' नहीं, बल्कि 'जीवंत लोकतंत्र का संकेत' बताया है। लेकिन, उनके रिकॉर्ड को देखते हुए यह लापरवाह टिप्पणी आश्चर्यजनक नहीं है। कुरैशी के कार्यकाल के दौरान ही भारत के चुनाव आयोग ने इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स (आईएफईएस) के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए थे, जो जॉर्ज सोरोस की ओपन सोसाइटी फाउंडेशन से जुड़ा हुआ है। यह एक 'डीप स्टेट' संचालक संस्था है और कांग्रेस पार्टी तथा गांधी परिवार का करीबी सहयोगी है।"

मालवीय ने दावा किया, "इससे भी बुरी बात यह है कि एक अलग बातचीत में कुरैशी ने खुद स्वीकार किया कि 2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद एक 'बड़े नेता' ने उन्हें फोन करके शिकायत की थी, 'आपने हमारे बोगस वोटर्स को वोट देने नहीं दिया।'"

उन्होंने आगे कहा, "उस समय कुरैशी चुनाव आयुक्तों में से एक थे और समाजवादी पार्टी, जो अपनी मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति के लिए कुख्यात है, सत्ता में थी, लेकिन चुनाव हार गई। अगर कुरैशी को यह पता था, तो उन्होंने इन सालों में इस नेता को क्यों बचाया? क्या समाजवादी पार्टी 'वोट चोरी' कर रही थी? यह नेता कौन था? यह एक बड़ा सवाल उठाता है, अगर कुरैशी को मतदाता सूची में स्थानांतरित, अनुपस्थित और मृत वोटरों के बारे में पता था, तो उन्होंने कभी विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) का आदेश क्यों नहीं दिया? वे 2006-2010 तक चुनाव आयुक्त और फिर 2010-2012 तक मुख्य चुनाव आयुक्त थे, यह उनका संवैधानिक कर्तव्य था कि वे कार्रवाई करते।"

अमित मालवीय ने पूर्व चुनाव आयुक्तों पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, "वास्तव में, न तो उन्होंने और न ही उनके बाद आए लोगों, चाहे अशोक लावासा, ओपी रावत या अन्य, ने 2003 में आखिरी एसआईआर के बाद 23 सालों से अधिक समय तक हमारी समझौताग्रस्त मतदाता सूचियों को साफ करने के लिए कोई कदम क्यों नहीं उठाया? और फिर भी, यही लोग अब मीडिया में वर्तमान एसआईआर के 'जाने-माने' आलोचक बन गए हैं।"

उन्होंने आगे कहा, "यह न भूलें, उस समय मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति अकेले प्रधानमंत्री द्वारा की जाती थी। आज, विपक्ष के नेता सहित तीन सदस्यीय पैनल यह निर्णय लेता है। पुराने लोग अपने पदों पर पूरी तरह से कांग्रेसी व्यवस्था की बदौलत हैं और यह साफ दिखाई देता है। अब इन कमजोर कार्यकालों को बेनकाब करने का समय आ गया है। जो लोग पहले अपना कर्तव्य निभाने का मौका गंवा चुके हैं, वे अब राष्ट्र को उपदेश नहीं दे सकते। विचारों का संघर्ष स्वागतयोग्य है, लेकिन जवाबदेही उनसे शुरू होनी चाहिए, जिनके पास मौका था और उन्होंने कुछ नहीं किया।"

Point of View

हमारा दृष्टिकोण यह है कि राजनीतिक बयानबाजी के पीछे हमेशा एक गहरी रणनीति होती है। इस मामले में, पूर्व सीईसी के बयान पर उठाए गए सवालों के साथ-साथ उनके कार्यकाल के दौरान के फैसले, यह दर्शाते हैं कि कैसे राजनीति और चुनाव प्रणाली intertwined हैं। यह महत्वपूर्ण है कि हम इस मुद्दे को जनहित में उठाएं।
NationPress
16/09/2025

Frequently Asked Questions

अमित मालवीय ने कुरैशी पर क्या आरोप लगाए?
अमित मालवीय ने कुरैशी के नेपाल में हाल की घटनाओं को जीवंत लोकतंत्र बताने के बयान को अनैतिक बताया और उनके कार्यकाल के दौरान लिए गए चुनाव आयोग के फैसलों पर गंभीर आरोप लगाए।
कुरैशी का कार्यकाल कब तक था?
कुरैशी का कार्यकाल 2006 से 2012 तक था, जिसमें वे चुनाव आयुक्त और फिर मुख्य चुनाव आयुक्त रहे।
मालवीय ने किस संस्था का उल्लेख किया?
उन्होंने इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स (आईएफईएस) का उल्लेख किया, जो जॉर्ज सोरोस की ओपन सोसाइटी फाउंडेशन से जुड़ी है।
क्या कुरैशी की टिप्पणी ने विवाद पैदा किया?
हाँ, उनकी टिप्पणी ने राजनीतिक विवाद पैदा किया है और कई सवाल उठाए हैं जो उनके कार्यकाल और चुनावी प्रक्रियाओं से जुड़े हैं।
कुरैशी ने किस बड़े नेता का जिक्र किया?
कुरैशी ने एक बड़े नेता का नाम नहीं लिया, लेकिन उन्होंने यह स्वीकार किया कि उन्हें बोगस वोटर्स के बारे में शिकायत मिली थी।