क्या पीएम शहबाज विपक्ष से डर गए हैं? बातचीत के लिए तैयार!
सारांश
Key Takeaways
- पाकिस्तान की राजनीति में नए मोड़
- विपक्ष का एकजुट होना
- सरकार की नाकामियों पर चर्चा
- शहबाज शरीफ का बातचीत का प्रस्ताव
- राजनीतिक स्थिरता की आवश्यकता
इस्लामाबाद, 23 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। पाकिस्तान की राजनीति एक बार फिर से उलटफेर के दौर में है। विपक्ष ने एकजुट होकर सरकार की नाकामियों का ब्योरा पेश किया और आगामी 8 फरवरी को 'ब्लैक डे' मनाने का ऐलान किया। जैसे ही यह निर्णय सार्वजनिक हुआ, सरकार कुछ असहज नजर आई। पहले मंत्री, इमरान खान पर चर्चा न करने की बात कर रहे थे, लेकिन अब प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने स्पष्ट किया है कि वे बातचीत के लिए तैयार हैं।
शरीफ ने मंगलवार को कहा कि वे विपक्ष के साथ बातचीत के अपने प्रस्ताव को फिर से दोहरा रहे हैं। उन्होंने इस पर भी जोर दिया कि दोनों पक्षों के बीच बातचीत केवल “वैध मामलों” पर ही आगे बढ़ सकती है।
असल में, 21 दिसंबर को, विपक्षी गठबंधन तहरीक तहफ्फुज आईन-ए-पाकिस्तान (टीटीएपी) द्वारा आयोजित एक “राष्ट्रीय सम्मेलन” के दौरान, प्रतिभागियों ने सरकार की नाकामियों को उजागर किया, अर्थव्यवस्था की बदहाली का जिक्र किया और चरमराई कानून व्यवस्था की ओर इशारा किया। उन्होंने 8 फरवरी 2026 को मनाए जाने वाले दिन की वैधता पर भी सवाल उठाए।
इस दौरान कुछ दलों ने लोगों के हित में संवाद स्थापित करने की बात भी की।
प्रधानमंत्री का यह प्रस्ताव इस्लामाबाद में एक संघीय कैबिनेट बैठक में पेश किया गया, जहां उन्होंने विपक्ष की पीटीआई (पाकिस्तान-तहरीक-ए-इंसाफ) और उसके सहयोगियों द्वारा बातचीत की संभावनाओं का भी जिक्र किया।
शरीफ ने यह भी कहा कि उन्होंने पहले भी कई अवसरों पर ऐसी पेशकश की है, जिसमें असेंबली भी शामिल थी, और विपक्ष को बातचीत के लिए आमंत्रित किया था।
उन्होंने कहा, “अगर वे इसके लिए तैयार हैं, तो पाकिस्तान सरकार निश्चित रूप से तैयार है,” और कहा कि देश की प्रगति और समृद्धि के लिए सभी राजनीतिक दलों के बीच सद्भाव जरूरी है।
शरीफ ने यह भी कहा कि बातचीत के बहाने कोई “ब्लैकमेलिंग” नहीं होनी चाहिए और यह केवल “वैध मामलों” पर ही होनी चाहिए।
विपक्षी दलों के सम्मेलन में टीटीएपी का मानना था कि मौजूदा राष्ट्रीय संकट को देखते हुए, देश को पहले से कहीं ज्यादा एक नए लोकतंत्र चार्टर की आवश्यकता है। सरकार और विपक्ष के बीच बातचीत की आवश्यकता पर जोर दिया गया है क्योंकि पाकिस्तान राजनीतिक और आर्थिक संकटों का सामना कर रहा है।
वहीं, शरीफ की बैठक में कानून मंत्री आजम नजीर तरार ने संविधान और बातचीत पर आधारित एक नए राष्ट्रीय राजनीतिक चार्टर की मांग की, जबकि पीएम के सलाहकार राणा सनाउल्लाह ने यह कहा कि राजनीतिक स्थिरता केवल संयम, आपसी सम्मान और निरंतर बातचीत से ही प्राप्त की जा सकती है।
डॉन के अनुसार, यह पहली बार नहीं है जब सरकार ने बातचीत का प्रस्ताव दिया है। एक साल से अधिक समय तक बढ़े तनाव के बाद, दोनों पक्षों ने राजनीतिक माहौल को शांत करने के लिए दिसंबर 2024 के अंत में बातचीत शुरू की थी। लेकिन हफ्तों की बातचीत के बाद भी, यह प्रक्रिया बड़े मुद्दों पर अटक गई थी। मुद्दा 9 मई, 2023 और 26 नवंबर, 2024 के विरोध प्रदर्शनों की जांच के लिए दो न्यायिक आयोगों का गठन और पीटीआई कैदियों की रिहाई था।
शहबाज सरकार ने इस साल फरवरी में एक बार फिर विपक्षी दल पीटीआई को बातचीत का प्रस्ताव दिया था, जिसे इमरान खान की पार्टी ने ठुकरा दिया था। पार्टी नेता असद कैसर ने सरकार के दोहरे चरित्र पर सवाल खड़े किए और पूछा कि वे सरकार के साथ बातचीत कैसे कर सकते हैं, जब शासकों ने पीटीआई पर कार्रवाई तेज कर दी है।
नेशनल असेंबली के स्पीकर सादिक ने 13 नवंबर को सरकार और विपक्षी पार्टियों के बीच बातचीत कराने के लिए अपने प्रस्ताव को दोहराया था। लेकिन तब प्रस्ताव की ‘टाइमिंग’ पर सवाल उठे थे। उस समय पीटीआई सदस्य 27वें संवैधानिक संशोधन विधेयक के पारित होने के दौरान असेंबली में विरोध प्रदर्शन कर रहे थे।
6 दिसंबर को, पीटीआई समर्थित सांसद ने सीनेट में कानून के शासन की कमी और जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान से मुलाकातों पर बिना बताए प्रतिबंध की निंदा की। कथित तौर पर सरकार ने बातचीत का प्रस्ताव दिया जिसे सिरे से खारिज कर दिया गया।
मंगलवार की बैठक में प्रधानमंत्री के सलाहकार ने कहा कि “जिनसे वे (पीटीआई) बातचीत करना चाहते हैं, वे उनसे बातचीत के लिए तैयार नहीं हैं।” यहां “जिनसे” से मतलब आसिम मुनीर की सेना से है।
मतलब स्पष्ट है कि पाकिस्तान की डोर अब भी आईएसआई और सेना के हाथ में है और सरकार दिखावे की ओट में बातचीत का प्रस्ताव दे रही है। उन्हें भी पता है कि जिस रास्ते पर पाकिस्तान चल पड़ा है वहां संवाद का कोई मतलब नहीं रह गया है। खौफ