क्या बिहार चुनाव 2025 में सरायरंजन सीट पर जदयू का 15 वर्षों का कब्जा टूट पाएगा?

सारांश
Key Takeaways
- सरायरंजन सीट पिछले 15 वर्षों से जदयू के पास है।
- यह सीट अनारक्षित श्रेणी की है।
- यहां के जातीय समीकरण चुनावी परिणामों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- किसान यहां धान, गेहूं, मक्का और दालों की खेती करते हैं।
- सरायरंजन क्षेत्र में डेयरी व्यवसाय भी महत्वपूर्ण है।
पटना, 6 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार के समस्तीपुर जिले से 13 किलोमीटर दूर स्थित सरायरंजन केवल एक प्रखंड (ब्लॉक) नहीं है, बल्कि यह उत्तर बिहार की राजनीति और अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, जहां की हर चुनावी फसल राज्य के बड़े दलों के भविष्य को प्रभावित करती है। यह वह भूमि है जहां 2020 के चुनावों के दौरान एक कड़ी राजनीतिक जंग लड़ी गई थी जिसने सभी की सांसें थाम दी थीं।
2020 में इस सीट से जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के उम्मीदवार और बिहार सरकार के प्रमुख नेता विजय कुमार चौधरी ने जीत हासिल की थी, लेकिन यह जीत पहले जैसी सरल नहीं थी। उन्होंने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अरविंद कुमार सहनी को केवल 3,624 वोटों के छोटे अंतर से हराया।
वर्तमान में, इस सीट पर सबसे सफल दल जनता दल (यूनाइटेड) रहा है। विजय कुमार चौधरी पिछले 15 वर्षों से इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और अब वह नीतीश सरकार में जल संसाधन और संसदीय कार्य विभाग के मंत्री हैं।
यह सीट अनारक्षित (जनरल) श्रेणी की है। यहां के जातीय और सामुदायिक समीकरण चुनावी परिणामों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
इस बार के विधानसभा चुनाव में जदयू और राजद के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है, क्योंकि अब तक के चुनावी इतिहास में इस सीट से दोनों प्रमुख पार्टियों को यहां की जनता ने अपना भरोसा दिया है।
दिलचस्प बात यह है कि इस क्षेत्र के ग्रामीण और जागरूक मतदाताओं ने विभिन्न विचारधाराओं का समर्थन किया है, लेकिन कम्युनिस्ट पार्टियों को अब तक एक भी जीत नहीं मिली है, जो यहां के चुनावी रुझानों की एक अनूठी विशेषता मानी जाती है।
सरायरंजन विधानसभा सीट की स्थापना 1967 में हुई थी। यह समस्तीपुर जिले के छह विधानसभा खंडों में से एक है और उजियारपुर लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है।
पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान, सरायरंजन के मतदाताओं ने कई राजनीतिक दलों को मौका दिया है। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस से लेकर भारतीय जनसंघ (बीजेएस) ने भी इस सीट से सफलता प्राप्त की है।
साल 2010 के विधानसभा चुनाव में जदयू के विजय कुमार चौधरी ने राजद के रामाश्रय सहनी को कांटे की टक्कर में लगभग 17,000 मतों से हराया था। 2015 में, जदयू ने महागठबंधन के तहत चुनाव लड़ा था। भाजपा ने रंजीत निर्गुणी को मैदान में उतारा और जदयू की जीत का अंतर बढ़ गया। 2020 के विधानसभा चुनाव में राजद ने अपना उम्मीदवार बदलकर अरविंद कुमार सहनी को मैदान में उतारा, लेकिन जदयू ने फिर से जीत हासिल की।
सरायरंजन की आत्मा इसके खेतों में बसती है। यह विधानसभा क्षेत्र 100 प्रतिशत ग्रामीण मतदाताओं का गढ़ है और इसकी जीवनरेखा बूढ़ी गंडक नदी है, जो यहां से लगभग 14 किलोमीटर दूर बहती है। यह नदी इस क्षेत्र की कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था को पोषित करती है। यहां के किसान मुख्य रूप से धान, गेहूं, मक्का और दालों की खेती करते हैं। इसके अलावा, आलू, प्याज और टमाटर जैसी सब्जियों की पैदावार भी किसानों की आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
सरायरंजन अपने आस-पास के गांवों के लिए एक महत्वपूर्ण कृषि उपज व्यापार केंद्र के रूप में कार्य करता है, जहां ग्रामीण अर्थव्यवस्था में डेयरी व्यवसाय भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह क्षेत्र चारों ओर से अन्य प्रमुख कस्बों और शहरों से घिरा हुआ है, जिनमें विद्यापति नगर (10 किमी), दलसिंहसराय (15 किमी), दरभंगा (45 किमी), मुजफ्फरपुर (65 किमी) और राजधानी पटना (73 किमी) शामिल हैं।
सरायरंजन की राजनीति और इसकी समस्याओं को समझने के लिए, इसके कृषि-प्रधान चरित्र और 100 प्रतिशत ग्रामीण मतदाताओं को समझना सबसे जरूरी है।