क्या सरकार संवैधानिक व्यवस्था और लोकतांत्रिक मूल्यों को खत्म करने में जुटी है?
सारांश
Key Takeaways
- विपक्ष ने सरकार पर संवैधानिक मूल्यों को खत्म करने का आरोप लगाया।
- बीएलओ पर अत्यधिक दबाव है, जिसके कारण समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।
- संसद में विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया पर चर्चा की गई।
नई दिल्ली, 1 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। सोमवार को संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत हंगामे के साथ हुई। विपक्ष मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया पर चर्चा की मांग पर अड़ा हुआ है। संसद के बाहर भी सरकार को घेरने की पूरी कोशिश की जा रही है। विपक्षी सांसदों ने आरोप लगाया है कि सरकार पूरी संवैधानिक व्यवस्था और लोकतांत्रिक मूल्यों को खत्म करने में लगी हुई है।
तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा कि सरकार ने देश में नीति और गणतंत्र को समाप्त कर दिया है। पहले जनता तय करती थी कि कौन सरकार बनाएगा, लेकिन आज चुनाव आयोग के माध्यम से सरकार यह तय कर रही है कि कौन-कौन मतदाता बनेगा।
बिहार के पूर्णिया से सांसद और कांग्रेस नेता पप्पू यादव ने आईएनएस से बातचीत में कहा कि सरकार पूरी संवैधानिक व्यवस्था और लोकतांत्रिक मूल्यों को खत्म करने में जुटी है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को डरने की जरूरत नहीं है, बल्कि विपक्ष का सामना करना चाहिए।
कांग्रेस सांसद गुरजीत सिंह औजला ने कहा, "देश में सबसे बड़ा मुद्दा 'वोट चोरी' का है। हालात के बावजूद इलेक्शन कमीशन कोई जवाब नहीं दे रहा है। सरकार ने खुद को जवाबदेही से बाहर कर लिया है।"
वहीं, समाजवादी पार्टी की सांसद डिंपल यादव ने एसआईआर प्रक्रिया में जुटे बीएलओ की मौत का मुद्दा उठाया। उन्होंने सवाल किया कि उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में इतनी जल्दबाजी में एसआईआर क्यों किया जा रहा है।
उन्होंने मांग की कि एसआईआर का समय बढ़ाया जाए। डिंपल यादव ने बताया कि अभी तक केवल 65 प्रतिशत लोग ही फॉर्म भर पाए हैं। 35 प्रतिशत फॉर्म अभी बाकी हैं।
डीएमके सांसद कनिमोझी करुणानिधि ने भी सवाल किया कि एसआईआर प्रक्रिया को पूरा करने के लिए इतना कम समय क्यों दिया गया है? उन्होंने कहा कि बीएलओ पर बहुत ज्यादा प्रेशर है।
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की सांसद महुआ माजी ने भी एसआईआर पर चर्चा की मांग की। उन्होंने कहा कि इस पर बहस होनी चाहिए, खासकर इसलिए क्योंकि ऐसा लगता है कि एसआईआर झारखंड में भी लागू होगा।