क्या वंदे मातरम का विरोध देशद्रोही मानसिकता का परिचायक है? : सुरेंद्र जैन
सारांश
Key Takeaways
- वंदे मातरम का विरोध देशद्रोही मानसिकता का परिचायक है।
- यह गीत स्वतंत्रता संग्राम का अहम हिस्सा रहा है।
- हमें एकजुट होकर इस भावना का सम्मान करना चाहिए।
- अलगाववादी सोच से बाहर आकर हमें एक नया भारत बनाना है।
- बंग भंग आंदोलन में वंदे मातरम की भूमिका महत्वपूर्ण थी।
नई दिल्ली, 4 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय संयुक्त महामंत्री डॉ सुरेंद्र जैन ने गुरुवार को बयान दिया कि मजहब के नाम पर वंदे मातरम का विरोध करने वाले व्यक्तियों को देशद्रोही मानसिकता से बाहर आना चाहिए। यह अलगाववादी सोच ही भारत के सांप्रदायिक विभाजन का कारण बनी है, जिसे अब स्वीकार नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रगीत वंदे मातरम के रचनाकार बंकिम चंद्र चटर्जी को सम्पूर्ण राष्ट्र की ओर से आभार प्रकट किया जाता है। पिछले 150 वर्षों से यह गीत राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक रहा है। वंदे मातरम का यह उद्घोष आज भी सभी आयु वर्ग के लोगों को प्रेरित करता है। बंग भंग आंदोलन के दौरान, यह उद्घोष संपूर्ण देश में एकता का प्रतीक बना था, जिसमें हिंदू और मुसलमान मिलकर लड़े।
डॉ जैन ने कहा कि अंग्रेज बंग भंग आंदोलन की सफलता से चिंतित थे और उन्होंने हिंदू-मुस्लिम विभाजन के लिए कुछ ऐसे मुस्लिम नेताओं को चुना, जो उनकी आवाज का समर्थन कर सकें। जब 1907 में वंदे मातरम पर प्रतिबंध लगाया गया, तब 1908 में कुछ मुस्लिम नेताओं ने जो पहले इस गीत का गान करने में संकोच नहीं करते थे, अचानक इसका विरोध करना शुरू कर दिया।
उन्होंने बताया कि मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए उस समय के कांग्रेस नेतृत्व ने झुककर इस गीत का विभाजन किया। दुर्भाग्यवश, कुछ लोग आज भी गुलामी की मानसिकता से जकड़े हुए वंदे मातरम का विरोध करते हैं।
वर्तमान में, वंदे मातरम आज भी भारत की प्रेरणा का स्रोत है। विरोध करने वाले वही लोग हैं जो अंग्रेजों की औपनिवेशिक सोच से प्रभावित हैं। विश्व हिंदू परिषद का मानना है कि वंदे मातरम का विरोध देश विरोध के समान है। हमें सभी को मिलकर इस गीत का गान करके एक नए मजबूत भारत के निर्माण में योगदान देना चाहिए।