क्या 'वंदे मातरम' केवल एक गीत है या राष्ट्र की चेतना और साहस का मंत्र?
सारांश
Key Takeaways
- 'वंदे मातरम' केवल एक गीत नहीं, बल्कि राष्ट्र की पहचान है।
- यह स्वतंत्रता संग्राम की चेतना और साहस का प्रतीक है।
- मुख्यमंत्री योगी ने इसे राष्ट्रीय कर्तव्यों के प्रति सजग रहने का अवसर बताया।
लखनऊ, 22 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में सोमवार को उत्तर प्रदेश विधानसभा में एक विशेष चर्चा सत्र का आयोजन किया गया। इस चर्चा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि 'वंदे मातरम' केवल एक गीत नहीं, बल्कि यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम की चेतना, क्रांतिकारियों के साहस और राष्ट्र के आत्मसम्मान का मंत्र है।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में उत्तर प्रदेश संभवतः पहली विधानसभा है, जहां इस ऐतिहासिक विषय पर विस्तार से चर्चा हो रही है।
मुख्यमंत्री योगी ने स्पष्ट किया कि यह चर्चा किसी गीत की वर्षगांठ भर नहीं है, बल्कि यह भारत माता के प्रति राष्ट्रीय कर्तव्यों की पुनर्स्थापना का अवसर है। 'वंदे मातरम' का सम्मान केवल एक अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि यह हमारे संवैधानिक मूल्यों और राष्ट्रीय दायित्वों का बोध कराता है। यह राष्ट्र की आत्मा, संघर्ष और संकल्प का प्रतीक है। यह केवल काव्य नहीं था, बल्कि मातृभूमि की आराधना, सांस्कृतिक चेतना और राष्ट्रवाद की अभिव्यक्ति का माध्यम है।
सीएम योगी ने बताया कि जब 'वंदे मातरम' अपनी रजत जयंती मना रहा था, तब देश ब्रिटिश हुकूमत के अधीन था। 1857 के प्रथम स्वातंत्र्य समर की विफलता के बाद अंग्रेजी शासन दमन और अत्याचार की पराकाष्ठा पर था। काले कानूनों के माध्यम से जनता की आवाज को दबाया जा रहा था, यातनाएं दी जा रही थीं, लेकिन 'वंदे मातरम' ने देश की सुप्त चेतना को जीवित रखा। यह पूरे देश के लिए एक मंत्र बन गया।
मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि जब 'वंदे मातरम' की शताब्दी आई, तब वही कांग्रेस सत्ता में थी, जिसने कभी देश की आत्मा जगाने वाले इस गीत को अपने मंच पर स्थान दिया था। आज जब 'वंदे मातरम' के 150 वर्ष पूरे हो रहे हैं, तब भारत प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में आत्मविश्वास के साथ 'विकसित भारत' की ओर बढ़ रहा है।
उन्होंने वर्ष 1857 के प्रथम स्वातंत्र्य समर का उल्लेख करते हुए कहा कि देशभर में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष हुआ। 'वंदे मातरम' ने देश की सोई हुई आत्मा को जगाने का कार्य किया।
उन्होंने कहा कि 'वंदे मातरम' औपनिवेशिक मानसिकता के प्रतिकार का प्रतीक बना। भारत माता केवल भूभाग नहीं थी, बल्कि हर भारतीय की भावना थी। स्वाधीनता राजनीति नहीं, बल्कि साधना थी।