क्या लखनऊ में कोडीन सिरप मामले में आलोक सिंह गिरफ्तारी के बाद सच सामने आएगा?
सारांश
Key Takeaways
- आलोक सिंह की गिरफ्तारी ने नशे के खिलाफ लड़ाई को और तेज किया है।
- एसटीएफ की कार्रवाई से गिरोह के अन्य सदस्यों की पहचान हो सकती है।
- यह मामला समाज में नशे के बढ़ते खतरे को उजागर करता है।
- गिरफ्तारी ने अंतर्राष्ट्रीय ड्रग रैकेट के खिलाफ चेतावनी दी है।
लखनऊ, 2 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। कफ सिरप मामले में उत्तर प्रदेश की लखनऊ में विशेष कार्यबल (एसटीएफ) को एक बड़ी उपलब्धि मिली है। एसटीएफ ने लखनऊ के बर्खास्त सिपाही आलोक सिंह को गिरफ्तार कर लिया है।
आलोक काफी समय से फरार था और उसने कोर्ट में सरेंडर करने की योजना बनाई थी। इसके लिए उसने लखनऊ कोर्ट में सरेंडर अर्जी भी दी थी। एसटीएफ उसे मंगलवार को कोर्ट में पेश कर रिमांड पर ले सकती है, जिससे मामले की गहराई में जाकर सच का खुलासा किया जा सके।
इससे पहले एसटीएफ ने कफ सिरप मामले में आलोक सिंह के खिलाफ लुक आउट सर्कुलर भी जारी किया था। जांच एजेंसियों को शक था कि आलोक गिरफ्तारी से बचने के लिए विदेश भागने की योजना बना रहा है। आलोक सिंह का मूल निवास चंदौली और लखनऊ के मालवीय नगर में भी है।
सूत्रों के अनुसार, लखनऊ में आलोक सिंह ने करोड़ों की संपत्तियां बनाई हैं। वह कफ सिरप की एक बड़ी खेप को अवैध तरीके से विदेश भेजने वाले अंतर्राष्ट्रीय गिरोह से जुड़ा हुआ बताया जा रहा है। इस मामले में पहले भी कई लोग गिरफ्तार हो चुके हैं और करोड़ों रुपये की दवा जब्त की जा चुकी है।
एसटीएफ की लखनऊ इकाई ने मुखबिर से मिली सूचना के आधार पर कार्रवाई करते हुए आलोक सिंह को गिरफ्तार किया। पूछताछ में उसके द्वारा गिरोह के अन्य सदस्यों के नाम और नेटवर्क की जानकारी उजागर होने की संभावना है।
वहीं, इससे पहले कोडीन सिरप मामले में लखनऊ एसटीएफ ने अमित कुमार सिंह उर्फ अमित टाटा को गिरफ्तार किया था। गोमतीनगर के ग्वारी चौराहे से एसटीएफ की टीम ने अमित कुमार सिंह को हिरासत में लिया था।
अमित कुमार सिंह ने पूछताछ में बताया कि आजमगढ़ के रहने वाले विकास सिंह के माध्यम से शुभम जायसवाल से उसकी पहचान हुई। शुभम जायसवाल का एबॉट कंपनी की फेन्सेडिल कफ सिरप का शैली ट्रेडर्स के नाम से बड़ा कारोबार रांची, झारखंड में है।
नशे के लिए कोडीन युक्त फेन्सेडिल कफ सिरप को लेकर धनबाद में देवकृपा मेडिकल एजेंसी नाम से एक फर्म बनाई गई थी, जिसमें गिरफ्तार अमित टाटा ने 5 लाख रुपये का निवेश किया था। इसके बदले में उसे 22 लाख रुपये का लाभ मिला। फायदे के लालच में अमित ने बनारस में भी ड्रग लाइसेंस लेकर फर्म खोली थी।