क्या मद्रास उच्च न्यायालय ने क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी के मानहानि मामले में संपत कुमार की याचिका खारिज कर दी?
सारांश
Key Takeaways
- मद्रास उच्च न्यायालय का फैसला संपत कुमार की याचिका को खारिज करता है।
- धोनी की गवाही के लिए एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति उचित मानी गई।
- संपत कुमार के वकील ने अदालत में धोनी की उपस्थिति की मांग की थी।
- अदालत ने सुरक्षा और प्रक्रिया को प्राथमिकता दी।
चेन्नई, 5 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। मद्रास उच्च न्यायालय ने सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी संपत कुमार द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी के खिलाफ चल रहे 100 करोड़ रुपए के मानहानि मामले में गवाही दर्ज कराने के लिए नियुक्त एडवोकेट कमिश्नर के आदेश को चुनौती दी थी।
यह मामला 2013 के आईपीएल सट्टेबाजी कांड से संबंधित है। उस समय एक निजी टेलीविजन चैनल पर हुई बहस में संपत कुमार ने कहा था कि चेन्नई सुपर किंग्स के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी इस सट्टेबाजी मामले में शामिल हैं।
इन टिप्पणियों को अपनी प्रतिष्ठा के खिलाफ मानते हुए धोनी ने 2014 में मद्रास उच्च न्यायालय में संपत कुमार के खिलाफ 100 करोड़ रुपये का मानहानि दावा दायर किया था। इस साल अगस्त में न्यायालय ने धोनी की गवाही दर्ज करने के लिए एक एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त किया था। इसी आदेश को संपत कुमार ने जस्टिस एस.एम. सुब्रमण्यम और जस्टिस मोहम्मद शफीक की बेंच के समक्ष चुनौती दी। सुनवाई के दौरान संपत कुमार के वकील ने तर्क किया कि धोनी को स्वयं अदालत में पेश होकर गवाही देनी चाहिए।
उन्होंने कहा, “जब मुख्यमंत्री और अन्य प्रमुख व्यक्ति अदालत में बयान देने आते हैं, तो धोनी को क्या आपत्ति है?” उनका तर्क था कि धोनी शुरुआत से ही अदालत की प्रक्रिया से बचने का प्रयास कर रहे हैं।
जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम और जस्टिस मोहम्मद शफीक की पीठ ने यह टिप्पणी की कि धोनी एक राष्ट्रीय स्तर के क्रिकेटर हैं। सुनवाई के दौरान उनकी अदालत में उपस्थिति से सुरक्षा संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। इसके अलावा, अदालत की कार्यवाही में भी असुविधा हो सकती है।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि एडवोकेट कमिश्नर की उपस्थिति में धोनी की गवाही दर्ज करते समय संपत कुमार या उनके वकील भी मौजूद रह सकते हैं, इसलिए उन्हें किसी प्रकार की हानि नहीं होगी।
पीठ ने कहा कि एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति प्रक्रिया में कोई अनियमितता नहीं है और यह न्यायिक प्रक्रिया को सुचारु बनाने के लिए एक उचित कदम है। अंततः अदालत ने संपत कुमार की अपील को खारिज करते हुए धोनी की गवाही दर्ज कराने के आदेश को बनाए रखा है।