क्या मेजर रामास्वामी परमेश्वरन ने श्रीलंका में शांति स्थापित करने के लिए अपनी शहादत दी?

Key Takeaways
- मेजर रामास्वामी परमेश्वरन ने अपने प्राणों की आहुति दी।
- उन्होंने श्रीलंका में शांति स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- उनकी वीरता को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
- भारत ने शरणार्थी समस्या के समाधान के लिए आईपीकेएफ भेजी।
- उनकी कहानी प्रेरणादायक है और हमें सच्चे नायकों को याद दिलाती है।
नई दिल्ली, 12 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। देश की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति देने वाले सैनिक असली नायक होते हैं। वे न केवल सुरक्षा में, बल्कि शांति व्यवस्था को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। भारतीय सैनिकों की ऐसी अनेक कहानियाँ हैं, जिन्होंने न केवल अपने देश में, बल्कि अन्य देशों में भी शांति स्थापित करने के प्रयास में अपनी जान दी है। मेजर रामास्वामी परमेश्वरन का नाम भी इसी श्रेणी में आता है, जिन्होंने श्रीलंका में शांति बहाली के प्रयास में अपने प्राणों का बलिदान दिया।
मेजर रामास्वामी परमेश्वरन का जन्म 13 सितंबर, 1946 को बॉम्बे, महाराष्ट्र में हुआ था। उनके पिता का नाम केएस. रामास्वामी और माँ का नाम जानकी था। उन्होंने अपनी शिक्षा एसआईईएस (साउथ इंडियन एजुकेशन सोसायटी), मुंबई से प्राप्त की। 1968 में, उन्होंने एसआईईएस कॉलेज से विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। देश सेवा के प्रति प्रेरित होकर, उन्होंने 1971 में ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकैडमी (ओटीए)15 महार रेजिमेंट में कमीशंड ऑफिसर के रूप में नियुक्त किया गया।
मेजर परमेश्वरन ने 15 महार और 5 महार बटालियन के दौरान पूर्वोत्तर क्षेत्र में कई उग्रवाद निरोधी अभियानों में भाग लिया। जब श्रीलंका में भारतीय थल सेना का ऑपरेशन पवन शुरू किया गया, तो उन्हें 8 महार बटालियन में सेवा देने के लिए चुना गया। 1987 में, 8 महार पहली बटालियन थी, जिसे श्रीलंका भेजा गया था।
श्रीलंका में सिंहली बहुसंख्यक समुदाय है, जबकि तमिल भाषा बोलने वाले अल्पसंख्यक हैं। वहाँ की सिंघली बहुल सरकार का रवैया तमिल अल्पसंख्यकों के प्रति सही नहीं था। उनके अधिकारों की अनदेखी की जाती थी, जिससे तमिल अल्पसंख्यकों ने अलग तमिल ईलम राज्य की मांग शुरू की।
इस संघर्ष में, लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) ने सशस्त्र संघर्ष आरंभ किया, जिसके परिणामस्वरूप श्रीलंका की सरकार ने तमिलों को लक्षित करना शुरू कर दिया। तमिल लोग भारत की ओर भागने लगे। इस शरणार्थी समस्या का समाधान करने के लिए, भारत और श्रीलंका के बीच 29 जुलाई, 1987 को एक समझौता हुआ, जिसके तहत भारत को अपनी इंडियन पीस कीपिंग फोर्स (आईपीकेएफ) को श्रीलंका भेजना था।
इस आईपीकेएफ में मेजर रामास्वामी परमेश्वरन भी शामिल थे। 24 नवंबर, 1987 को मेजर परमेश्वरन के नेतृत्व में बटालियन को सूचना मिली कि जाफना के उडुविल शहर के करीब कांतारोडाई नामक गाँव में हथियारों और गोला-बारूद का भंडार है। मेजर परमेश्वरन की टीम को वहाँ तलाशी अभियान चलाने का कार्य सौंपा गया। जब वे वहाँ पहुँचे, तो एलटीटीई के उग्रवादियों ने उन पर हमला कर दिया। मेजर परमेश्वरन और उनकी टीम ने बहादुरी से उग्रवादियों का सामना किया, लेकिन इस संघर्ष में उन्हें गोली लगी और वे शहीद हो गए। 25 नवंबर, 1987 को उनकी शहादत हुई। उनकी वीरता और बलिदान को श्रीलंका और भारत में एक प्रेरणादायक कहानी के रूप में याद किया जाता है। भारत सरकार ने मरणोपरांत उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया।