क्या माता अमृतानंदमयी प्रेम और करुणा से दूसरों की सेवा को सर्वोपरि मानती हैं?

Click to start listening
क्या माता अमृतानंदमयी प्रेम और करुणा से दूसरों की सेवा को सर्वोपरि मानती हैं?

सारांश

माता अमृतानंदमयी देवी, जिन्हें 'हगिंग संत' कहा जाता है, का मानना है कि सच्ची सेवा के लिए प्रेम और करुणा आवश्यक हैं। उनका जीवन मानवता की सेवा में समर्पित है। जानें उनके विचार और शिक्षाएं।

Key Takeaways

  • प्रेम और करुणा से सच्ची सेवा संभव है।
  • योग, जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
  • सेवा में ही सच्ची शक्ति है।
  • पर्यावरण संरक्षण आवश्यक है।
  • सच्चा ज्ञान और शांति अनुभव से मिलती है।

नई दिल्ली, 26 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। दूसरों की सच्ची सेवा के लिए हृदय में प्रेम और करुणा का होना आवश्यक है। विश्वविख्यात भारतीय आध्यात्मिक नेता माता अमृतानंदमयी देवी के विचार हैं कि केवल प्रेम और करुणा के बल पर ही लोग पूरे मन से जरूरतमंदों की मदद कर सकते हैं।

अमृतानंदमयी देवी के चाहने वाले लोग उन्हें प्यार से 'अम्मा' कहते हैं। उन्होंने मानवता की सेवा को सर्वोच्च धर्म बताया है।

माता अमृतानंदमयी के अनुसार, आज की दुनिया में लोग दो प्रकार की गरीबी का सामना करते हैं: पहली, भोजन, वस्त्र और आश्रय की कमी से उत्पन्न गरीबी और दूसरी, प्रेम व करुणा की कमी से उपजी गरीबी। दूसरी गरीबी पर ध्यान देना आवश्यक है, क्योंकि यदि हमारे हृदय में प्रेम और करुणा है, तो हम उन लोगों की सेवा पूरी निष्ठा से करेंगे जो भौतिक अभावों से पीड़ित हैं।

27 सितंबर 1953 को केरल के एक छोटे से गांव में जन्मी अमृतानंदमयी बचपन से ही नेकदिल रही हैं; उन्हें दूसरों की मदद करना बहुत पसंद है। उन्होंने अपना जीवन समाज सेवा को समर्पित कर दिया है।

उन्होंने एक बार कहा कि केवल वही 'दे' सकता है जिसने सिद्धि प्राप्त की है। केवल वही सिखा सकता है जिसने ज्ञान प्राप्त किया है। केवल वही शांति प्रदान कर सकता है जिसने शांति का अनुभव किया है। चाहे कोई कितना भी महान तपस्वी या विद्वान क्यों न हो, पूर्णता प्राप्त करने के लिए उसे ऐसे गुरु का मार्गदर्शन अवश्य प्राप्त करना चाहिए जो स्वयं पूर्ण हो।

जीवन में योग के महत्व का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि योग हमारे शरीर, भावनाओं और बुद्धि के उचित समायोजन के माध्यम से हमारी अनंत क्षमता को जागृत करने का मार्ग है। यह केवल एक या दो घंटे का व्यायाम नहीं है। यह नैतिक मूल्यों पर आधारित एक समग्र जीवन शैली है। मानव स्वभाव मूलतः हर जगह एक जैसा है, इसलिए योग को सार्वभौमिक रूप से अपनाया जा सकता है, चाहे कोई भी जाति, धर्म या राष्ट्रीयता का हो।

उन्होंने शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य के बीच के अंतर का जिक्र करते हुए कहा कि शरीर गति से स्वस्थ होता है, लेकिन मन स्थिरता से। ध्यान और जप ऐसे अभ्यास हैं जो मन को शांत करने में मदद करते हैं।

'अम्मा' के पर्यावरण संरक्षण के विचार हैं कि यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्राचीन काल में लोग प्रकृति और पर्यावरण के प्रति गहरी श्रद्धा रखते थे। वे एक मधुमक्खी के अस्तित्व के लिए भी करुणा रखते थे। लेकिन आज मनुष्य यह जानना चाहता है कि वह प्रकृति से क्या प्राप्त करना चाहता है, लेकिन यह नहीं जानता कि प्रकृति के पोषण के लिए उसे क्या करना चाहिए।

अमृतानंदमयी की शिक्षाएं सरल हैं। 'करुणा ही सबसे बड़ा धर्म' है। उनका जीवन साबित करता है कि सच्ची शक्ति सेवा में है।

Point of View

माता अमृतानंदमयी का दृष्टिकोण प्रेम और करुणा के महत्व पर आधारित है। उनका जीवन, मानवता की सेवा का प्रतीक है और हमें यह सिखाता है कि एक सच्चे नेता का असली मूल्य उसके काम में है।
NationPress
26/09/2025

Frequently Asked Questions

माता अमृतानंदमयी का जन्म कब हुआ?
माता अमृतानंदमयी का जन्म 27 सितंबर 1953 को केरल के एक छोटे से गांव में हुआ।
माता अमृतानंदमयी की शिक्षाएं क्या हैं?
उनकी शिक्षाएं प्रेम, करुणा, और सेवा के महत्व पर आधारित हैं। वे मानवता की सेवा को सर्वोच्च धर्म मानती हैं।
योग के महत्व के बारे में माता अमृतानंदमयी का क्या कहना है?
उन्होंने कहा कि योग केवल व्यायाम नहीं है, बल्कि यह एक समग्र जीवन शैली है जो हमें हमारी अनंत क्षमता को जागृत करने में मदद करती है।