क्या मीना कुमारी को डाकुओं ने घेरा था? जानें चौंकाने वाली घटना

सारांश
Key Takeaways
- मीना कुमारी भारतीय सिनेमा की एक महत्वपूर्ण हस्ती थीं।
- उनका असली नाम महजबी बानो था।
- उन्होंने कई सफल फ़िल्मों में काम किया।
- एक बार डाकुओं के हाथ में फंसने की अनोखी घटना घटित हुई।
- उनका निधन 1972 में हुआ।
मुंबई, 31 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। जब भी हम पुरानी अभिनेत्रियों की चर्चा करते हैं, तो उनके फ़िल्मी करियर और पुरस्कारों के साथ-साथ उनके जीवन में घटित अनकहे किस्सों का भी जिक्र होता है। मीना कुमारी की ज़िंदगी में एक ऐसी घटना घटी थी, जिसने केवल निर्माताओं ही नहीं, बल्कि उनके प्रशंसकों को भी चौंका दिया था। यह घटना उस समय की है जब उनका सामना मध्यप्रदेश के बीहड़ में शूटिंग के दौरान असली डाकुओं से हुआ था, जिन्होंने अभिनेत्री को चाकू दिखाकर उनसे अजीबोगरीब मांग की थी।
ट्रेजेडी क्वीन के नाम से मशहूर मीना कुमारी का असली नाम महजबी बानो है, लेकिन फ़िल्म इंडस्ट्री ने उन्हें मीना कुमारी नाम दिया। उनका जन्म 1 अगस्त 1933 को अली बक्स और इकबाल बेगम के घर हुआ। मीना के जन्म पर उनके पिता बहुत खुश नहीं थे, क्योंकि वे एक बेटे की ख्वाहिश रखते थे। जन्म के कुछ घंटों बाद ही उन्हें अनाथालय में छोड़ दिया गया, लेकिन बाद में उनका मना कर दिया गया और वे वापस घर ले आए। वे अली और इकबाल की दूसरी बेटी थीं, और उनकी दो बहनें भी थीं।
मीना कुमारी को फ़िल्मों में कोई खास रुचि नहीं थी, लेकिन पढ़ाई से बचने के लिए वह अपने माता-पिता के साथ फ़िल्म स्टूडियो आ जाती थीं। एक दिन निर्देशक विजय भट्ट ने उन्हें फ़िल्म 'लेदरफेस' में कास्ट किया और इसके लिए उन्हें 25 रुपये मिले, जबकि उस समय उनकी उम्र मात्र चार साल थी।
इस फ़िल्म के बाद उन्हें स्कूल में दाखिला दिलाया गया। उन्होंने पढ़ाई पूरी की और 1952 में लीड एक्ट्रेस के रूप में फ़िल्म 'बैजू बावरा' से अपने करियर की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने 'परिणीता', 'दिल एक मंदिर', 'फुटपाथ', 'शारदा', 'साहिब बीबी और गुलाम', 'काजल', 'फूल और पत्थर', 'मैं चुप रहूंगी', 'दो बीघा जमीन', 'चांदनी चौक', 'मेम साहिब', 'दिल अपना और प्रीत पराई', 'आरती', 'बहू बेगम', और 'पाकीजा' जैसी सफल फ़िल्में कीं।
'परिणीता' के लिए उन्हें फ़िल्मफेयर बेस्ट एक्ट्रेस अवार्ड मिला। इसके अलावा, 'साहिब बीबी और गुलाम' के जरिए उन्होंने चार फ़िल्मफेयर अवार्ड अपने नाम किए। 1973 में 'पाकीजा' के लिए मरणोपरांत नामांकन प्राप्त करने वाली वह पहली अभिनेत्री थीं।
उनकी ज़िंदगी के सबसे दिलचस्प किस्सों में एक किस्सा मध्यप्रदेश से जुड़ा है, जब उन्होंने डाकुओं के हाथ पर नुकीले चाकू से ऑटोग्राफ दिया था।
प्रसिद्ध पत्रकार विनोद मेहता ने मीना कुमारी की जीवनी 'मीना कुमारी- अ क्लासिक बायोग्राफी' में बताया है, ''आउटडोर शूटिंग पर कमाल अमरोही (मीना कुमारी के पति और फ़िल्म निर्माता) अक्सर दो कारों में जाते थे। एक बार दिल्ली जाते समय मध्यप्रदेश में शिवपुरी में उनकी कार का पेट्रोल खत्म हो गया। अमरोही ने कहा कि हम रात कार में सड़क पर ही बिताएंगे। उन्हें नहीं पता था कि यह डाकुओं का इलाका है। आधी रात के बाद करीब एक दर्जन डाकुओं ने उनकी कारों को घेर लिया। उन्होंने कारों में बैठे लोगों से कहा कि वे नीचे उतरें। कमाल अमरोही ने कार से उतरने से इनकार कर दिया और कहा कि जो मुझसे मिलना चाहता है, मेरी कार के पास आए।''
उन्होंने आगे कहा, ''थोड़ी देर बाद एक सिल्क का पायजामा और कमीज पहने व्यक्ति उनके पास आया। उसने पूछा, 'आप कौन हैं?' अमरोही ने कहा, 'मैं कमाल हूं और इस इलाके में शूटिंग कर रहा हूं। हमारी कार का पेट्रोल खत्म हो गया है।' डाकू को लगा कि वह रायफल शूटिंग की बात कर रहे हैं। लेकिन जब उन्हें बताया गया कि यह फ़िल्म शूटिंग है और दूसरी कार में मीना कुमारी भी बैठी हैं, तो सभी डाकुओं के हावभाव बदल गए। डाकुओं के सरदार ने तुरंत सभी के लिए संगीत, नाच और खाने का इंतजाम किया। उन्हें सोने के लिए जगह दी और सुबह उनकी कार के लिए पेट्रोल भी मंगवा दिया। जब मीना कुमारी अपनी टीम के साथ सुबह वहां से जाने लगीं, तो डाकुओं के सरदार ने उन्हें नुकीला चाकू दिखाया, जिससे वह थोड़ी डर गई थीं, लेकिन उन्होंने उस नुकीले चाकू पर उनका ऑटोग्राफ मांगा। बस, उसी तरह मीना कुमारी ने ऑटोग्राफ दिया। अगले शहर में जाकर उन्हें पता चला कि वह मध्यप्रदेश का उस समय का नामी डाकू अमृत लाल था।''
यह भी बता दें कि 1952 में मीना कुमारी ने निर्देशक कमाल अमरोही से शादी की थी और 31 मार्च 1972 को, 38 वर्ष की आयु में, लीवर सिरोसिस के चलते उनका निधन हो गया।