क्या मोदी सरकार अमेरिका पर वीजा शुल्क वृद्धि वापसी के लिए दबाव बनाएगी? : सीपीए नेता बाबूराव

सारांश
Key Takeaways
- अमेरिकी वीजा शुल्क में वृद्धि भारत के राष्ट्रीय हितों पर हमला है।
- सीपीएम ने मोदी सरकार से कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
- यह निर्णय भारतीय पेशेवरों को सीधे प्रभावित करेगा।
- सरकार को अमेरिकी प्रशासन से संवाद बढ़ाना चाहिए।
- बाबूराव के अनुसार, यह साम्राज्यवादी कदमों का हिस्सा है।
विजयवाड़ा, 20 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा एच-1बी वीजा शुल्क में वृद्धि के निर्णय पर सीपीएम के राज्य सचिव बाबूराव ने शनिवार को अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा कि यह भारत के राष्ट्रीय हितों पर एक गंभीर हमला है।
बाबूराव ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत में बताया कि यह सामान्य निर्णय नहीं है, बल्कि यह अमेरिका के साम्राज्यवादी कदमों का हिस्सा है, जिसमें व्यापार प्रतिबंध और भारतीय छात्रों पर लागू प्रतिबंध भी शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि भारतीय उत्पादों पर 50 प्रतिशत शुल्क लगाने जैसे निर्णय सीधे तौर पर भारतीय पेशेवरों और छात्रों को नुकसान पहुंचाते हैं।
सीपीएम का मानना है कि ऐसे निर्णय अस्वीकार्य हैं और इन्हें तत्काल वापस लिया जाना चाहिए।
इसके अलावा, मोदी सरकार की प्रतिक्रिया अपर्याप्त रही है। हालांकि रक्षा समझौतों और संधियों में अमेरिका समर्थक रुख दिखाई दे रहा है, लेकिन रूस के साथ तेल व्यापार वार्ता और चीन तथा रूस के साथ बैठकें जैसे अपवाद इस नरम रुख को संतुलित नहीं कर पाते।
बाबूराव ने कहा कि भारत के राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना मोदी सरकार का कर्तव्य है। सीपीएम सरकार से अपील करती है कि वह कड़ी कार्रवाई करे और अमेरिकी प्रशासन से सीधे संपर्क कर एच-1बी वीजा शुल्क वृद्धि को वापस लेने के लिए दबाव डाले।
इस निर्णय से अमेरिका में कार्यरत भारतीय तकनीकी पेशेवरों और बड़ी कंपनियों को भी बड़ा झटका लगा है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा प्रोग्राम में बड़े बदलावों के लिए एक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं।
इसके अनुसार, अब प्रति आवेदन के लिए हर वर्ष 1,00,000 डॉलर का शुल्क देना होगा। ट्रंप का कहना है कि इसका उद्देश्य विदेशी श्रमिकों की बजाय अमेरिकी नागरिकों को नौकरी देना है।