क्या वीर सावरकर सबसे उज्ज्वल मार्गदर्शक सितारे थे? : मोहन भागवत
सारांश
Key Takeaways
- सावरकर का योगदान स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण रहा है।
- उनके विचार आज भी प्रेरणास्रोत हैं।
- शिक्षा का उद्देश्य देश की सेवा होना चाहिए।
- उनका दृष्टिकोण सांस्कृतिक एकता पर आधारित है।
- सावरकर ने कभी कड़वाहट नहीं रखी।
नई दिल्ली, 12 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को विनायक दामोदर सावरकर की भव्य प्रतिमा का संयुक्त रूप से अनावरण किया। इस कार्यक्रम में मोहन भागवत ने सावरकर को "सबसे उज्ज्वल मार्गदर्शक सितारा" बताया और कहा कि राष्ट्र के लिए उनके विचार आज भी प्रेरणास्रोत हैं।
इस अनावरण समारोह में कई गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति रही, जहां सावरकर के योगदान और स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका पर जोर दिया गया।
सावरकर की प्रेरणादायक कविता सागरा प्राण तळमळला के 115 साल पूरे होने का उत्सव पहाड़गांव (पोर्ट ब्लेयर) में बीआर अंबेडकर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी ऑडिटोरियम में मनाया गया, जिसमें वरिष्ठ गणमान्य व्यक्तियों और बड़ी संख्या में दर्शकों ने भाग लिया।
मोहन भागवत ने मुख्य मंच से भाषण दिया। वहां गृह मंत्री अमित शाह, अंडमान-निकोबार के लेफ्टिनेंट गवर्नर एडमिरल (रिटायर्ड) देवेंद्र कुमार जोशी, और महाराष्ट्र के मंत्री आशीष शेलार जैसे प्रमुख नेता उपस्थित थे। संघ प्रमुख ने सावरकर के अद्वितीय योगदान को याद करते हुए कहा कि उन्होंने साहित्य, कविता, कानून, नाटक और समाज सुधार जैसे अनेक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कार्य किए।
सावरकर के अपने भाइयों के साथ जेल में बिताए समय का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि सावरकर के पत्रों में भारत के प्रति गहरी भक्ति की झलक मिलती है, जिसमें अक्सर लिखा होता था कि अगर सात भाई होते, तो सभी खुशी-खुशी देश के लिए जेल चले जाते।
उन्होंने कहा कि सावरकर ने जो भी कौशल सीखा, चाहे वह लिखना हो, गाना हो या कानूनी जानकारी हो, उसे उन्होंने देश के लिए एक भेंट मानते थे। उनका मानना था कि अगर शिक्षा देश की सेवा नहीं करती तो उसका कोई अर्थ नहीं है।
भागवत ने देश में एकता पर जोर देते हुए कहा कि भारत में ऐसे विचारों के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए जो देश को बांटते हैं। सावरकर ने कभी खुद को किसी जाति या क्षेत्र से नहीं जोड़ा, बल्कि उन्होंने केवल देश के सेवक के रूप में देखा।
भागवत ने कहा कि जहां भारतीयों की पूर्व पीढ़ियों को देश की आजादी के लिए बलिदान देना पड़ा, वहीं आज की पीढ़ी को देश की प्रगति के लिए जीना चाहिए। उन्होंने आत्मनिर्भरता और स्वदेशी के महत्व पर जोर दिया और माता-पिता से बच्चों को कड़ी मेहनत करने और सफल होने की सलाह देने की अपील की, लेकिन हमेशा भारत के विकास में योगदान देने के इरादे से।
उन्होंने सावरकर के देश के दृष्टिकोण को सांस्कृतिक ताकत और एकता पर आधारित बताते हुए कहा कि सावरकर देश को ही भगवान मानते थे।
भागवत ने आगे कहा कि कई कठिनाइयों के बावजूद, सावरकर ने कभी भी कड़वाहट नहीं रखी, और उन्हें सबसे चमकता हुआ मार्गदर्शक सितारा कहा।