क्या मुजफ्फरनगर में मोहर्रम के जुलूस शांतिपूर्वक संपन्न हुए?

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क्या मुजफ्फरनगर में मोहर्रम के जुलूस शांतिपूर्वक संपन्न हुए?

सारांश

मुजफ्फरनगर में इस वर्ष मोहर्रम के जुलूसों ने एकता का संदेश दिया। शिया समुदाय ने इमाम हुसैन की शहादत को श्रद्धांजलि देते हुए विभिन्न इमामबाड़ों से ताजिया लेकर कर्बला पहुंचे। जानें, कैसे ये जुलूस शांति से संपन्न हुए और प्रशासन ने सुरक्षा के लिए क्या उपाय किए।

Key Takeaways

  • मोहर्रम के अवसर पर ताजिया जुलूस निकाले गए।
  • इमाम हुसैन की शहादत की याद में श्रद्धांजलि दी गई।
  • जुलूसों में गुलजना घोड़े का विशेष महत्व है।
  • स्थानीय प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए थे।
  • समुदाय ने शांति और भाईचारे का संदेश दिया।

मुजफ्फरनगर, 6 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जनपद में मोहर्रम के अवसर पर शिया समुदाय ने विभिन्न इमामबाड़ों से ताजिया जुलूस निकाले, जो शांतिपूर्वक कर्बला पहुंचकर संपन्न हुए। इन जुलूसों में ताजिया, झंडे और निशान के साथ गुलजना घोड़े को शामिल किया गया, जो इमाम हुसैन की शहादत की याद में निकाले जाते हैं।

बताया जाता है कि 1400 वर्ष पूर्व हजरत मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन को यजीद ने कर्बला के मैदान में शहीद कर दिया था। उनकी शहादत की याद में हर वर्ष 10 मोहर्रम को आशुरा के रूप में गम मनाया जाता है।

शिया समुदाय के लोगों ने बताया कि जुलूस में शामिल ताबूत, dari, निशान, आलम और देश का झंडा इमाम हुसैन की याद का प्रतीक हैं।

गुलजना घोड़ा, जिस पर इमाम हुसैन सवार थे, उनकी शहादत का प्रतीक है। उस दिन उनके साथ 72 लोग शहीद हुए थे, जबकि दुश्मनों की संख्या हजारों में थी। इमाम हुसैन ने लोगों की रक्षा के लिए अपनी कुर्बानी दी थी।

जुलूस किदवई नगर, मल्लूपुरा, नियाजीपुरा, खालापार और अन्य इमामबाड़ों से शुरू होकर शहर के विभिन्न मार्गों से होता हुआ काली नदी के किनारे स्थित कर्बला पहुंचा, जहां ताजिया दफन किए गए।

एसपी सिटी सत्यनारायण प्रजापत ने बताया कि जनपद में कुल 74 जुलूस निकाले गए, जिनमें सबसे प्रमुख शहर का जुलूस था। इस जुलूस में खादर वाला, किदवई नगर, लद्धावाला, मिमराना और मल्लूपुरा के लोग शामिल हुए। यह जुलूस बल्लम हलवाई के सामने वाली गली से होते हुए काली नदी के दूसरी ओर कर्बला तक पहुंचा। अन्य जुलूस भी शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुए।

उन्होंने कहा कि जुलूस के लिए सेक्टर स्कीम लागू की गई थी, जिसमें मजिस्ट्रेट और पुलिस अधिकारियों की तैनाती की गई थी। पर्याप्त पुलिस बल तैनात किया गया और पुराने प्रोटोकॉल के अनुसार मार्ग व्यवस्था सुनिश्चित की गई। जुलूस के दौरान शिया समुदाय ने इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए उनकी कुर्बानी को श्रद्धांजलि दी। स्थानीय प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए, जिससे सभी जुलूस शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुए। इस अवसर पर समुदाय के लोगों ने एकजुटता और भाईचारे का संदेश दिया, साथ ही शांति और सद्भाव बनाए रखने में प्रशासन का सहयोग किया।

Point of View

मोहर्रम का पर्व केवल एक धार्मिक घटना नहीं, बल्कि यह सांस्कृतिक एकता और सहिष्णुता का प्रतीक है। मुजफ्फरनगर में शिया समुदाय ने जो जुलूस निकाले, वे इस बात का प्रमाण हैं कि भारत में विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ शांति से रह सकते हैं।
NationPress
09/12/2025

Frequently Asked Questions

मोहर्रम क्या है?
मोहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है, जिसमें शिया समुदाय इमाम हुसैन की शहादत की याद में गम मनाता है।
ताजिया क्या होता है?
ताजिया एक धार्मिक प्रतीक है, जिसे शिया समुदाय इमाम हुसैन की याद में बनाता है और मोहर्रम में इसका जुलूस निकाला जाता है।
कर्बला क्या है?
कर्बला वह स्थान है जहां इमाम हुसैन ने अपने साथियों के साथ शहादत दी थी। यह स्थान शिया समुदाय के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
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