क्या कारगिल में 7 गोलियों को सहते हुए 20 मिनट तक डटे रहे नवाब वसीम?

सारांश
Key Takeaways
- नवाब वसीम का साहस और बलिदान अद्वितीय है।
- समाज सेवा में उनका योगदान प्रेरणादायक है।
- कारगिल युद्ध में हौसले और अनुशासन का महत्व है।
- बच्चों को फुटबॉल प्रशिक्षण देकर वे उन्हें सही दिशा में ले जा रहे हैं।
- नशे के खिलाफ मुहिम चलाकर उन्होंने भविष्य के लिए उम्मीद जगाई है।
नैनीताल, 26 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। कारगिल की विजय भारतीय सेना के अदम्य साहस और हौसले की कहानी को बयां करती है। इसी युद्ध के एक वीर सैनिक की कहानी उत्तराखंड के रामनगर में लोगों को प्रेरित करती है। रामनगर के निवासी सूबेदार मेजर (सेवानिवृत्त) नवाब वसीम उर रहमान ने कारगिल युद्ध के दौरान 7 गोलियां खाई थीं। इसके बावजूद वे 20 मिनट तक मोर्चे पर डटे रहे। कारगिल विजय दिवस के अवसर पर नवाब वसीम भी उन क्षणों को याद कर रहे हैं।
राष्ट्र प्रेस से बातचीत में नवाब वसीम उर्फ रहमान खान ने युद्धक्षेत्र के बीते पलों को याद किया। उन्होंने कहा, "मैं 18वीं गढ़वाल राइफल का हिस्सा था। जब कारगिल युद्ध हुआ तो हमारी बटालियन भी उसमें शामिल थी। मुझे खुशी है कि मैं उसका हिस्सा था।"
नवाब वसीम ने बताया कि कारगिल युद्ध शुरू होने के दो-तीन दिन बाद ही मुझे 7 गोलियां लगी थीं। मेरे दोनों पैरों में गोली लगी थी। मुझे कुछ समय तक महसूस नहीं हुआ कि गोली लगी है। बाद में पोजिशन बदलने के समय मैं पीछे गिर गया था। उसके बाद मुझे कुछ पता ही नहीं चला।
सेना से रिटायर्ड नवाब वसीम उर रहमान उत्तराखंड के रामनगर में बच्चों को फुटबॉल चैंपियन बनाते हैं। करीब 20 साल तक सेना में सेवा देने के बाद नवाब वसीम ने 2019 में सूबेदार मेजर के पद से सेवानिवृत्ति ली थी। इसके बाद उन्होंने अपना जीवन समाज सेवा को समर्पित किया। वर्तमान में वह रामनगर में 150 से ज्यादा बच्चों को मुफ्त फुटबॉल प्रशिक्षण दे रहे हैं। उनकी कोचिंग से प्रशिक्षित कुछ खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर भी खेल रहे हैं।
उन्होंने राष्ट्र प्रेस को बताया, "मैंने अपने क्षेत्र के बच्चों को नशे की लत में देखा था। तब मैं दो बच्चों को साथ लेकर आगे चला और नशा छोड़कर खेलने का संदेश दिया। आज इस मुहिम में बहुत सारे बड़े लोग मदद करते हैं। अब हम बच्चों को ट्रेनिंग देने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।"
नवाब वसीम की यह कहानी सिर्फ एक युद्ध की दास्तान नहीं, बल्कि हौसले, अनुशासन और राष्ट्रप्रेम की जीवंत मिसाल है। ऐसे सैनिक न सिर्फ जंग के मैदान में, बल्कि शांति के समय में भी देश को दिशा देने का काम करते हैं।