क्या हरियाणा के करनाल स्थित राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान ने पशु प्रजनन में एक नई उपलब्धि हासिल की?

सारांश
Key Takeaways
- गंगा के अंडाणु से बछिया का जन्म
- ओपीयू-आईवीएफ तकनीक से तेजी से उत्पादन
- दूध देने वाली नस्लों की संख्या में वृद्धि
- क्लोनिंग और प्रजनन का संयोजन
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार
करनाल, 15 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। हरियाणा के करनाल में स्थित राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) ने उच्च गुणवत्ता के दुधारू पशुओं की संख्या बढ़ाने के लिए पशु प्रजनन तकनीक में एक महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है। देश की पहली गिर नस्ल की क्लोन गाय 'गंगा' के अंडाणु से विकसित भ्रूण को साहीवाल नस्ल की गाय के गर्भ में स्थापित करके एक गिर नस्ल की बछिया का जन्म हुआ है, जिसे 'श्रावणी' नाम दिया गया है।
इस सफलता को ओपीयू-आईवीएफ तकनीक के माध्यम से हासिल किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप 11 जुलाई को एनडीआरआई में साहीवाल गाय ने गिर नस्ल की बछिया को जन्म दिया। वैज्ञानिकों ने क्लोन और ओपीयू-आईवीएफ तकनीक के संयुक्त उपयोग से 39 महीनों में ही गाय की दो पीढ़ियों को जन्म देने में सफलता प्राप्त की, जबकि सामान्यतः दो पीढ़ियों के जन्म लेने में 60 से 84 महीनों का समय लगता है।
एनडीआरआई के वैज्ञानिकों का कहना है कि यह उपलब्धि देश में अधिक दूध देने वाली उत्तम नस्ल की गायों की संख्या को तेजी से बढ़ाने में सहायक सिद्ध होगी। जहाँ प्राकृतिक प्रजनन तकनीक से एक गाय जीवन में 10-12 बच्चे ही जन्म देती है, वहीं इस तकनीक से एक मादा पशु से एक महीने में चार बार अंडाणु लिए जा सकते हैं।
इन अंडाणुओं से लैब में 4 से 20 भ्रूण विकसित हो जाते हैं और इन्हें अन्य गायों के गर्भ में ओपीयू-आईवीएफ तकनीक से स्थापित करके जल्दी से उत्तम नस्ल के बच्चों की संख्या बढ़ाई जा सकती है। प्राकृतिक प्रक्रिया में जितना समय दो पीढ़ियों की पैदाइश में लगता है, उससे आधा समय इस तकनीक से लगता है।
इस सफलता को हासिल करने के लिए एनडीआरआई के निदेशक डॉ. धीर सिंह के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की टीम ने काम किया, जिसमें डॉ. मनोज कुमार सिंह, डॉ. नरेश सेलोकर, डॉ. रंजीत वर्मा, कार्तिकेय पटेल, डॉ. प्रियंका सिंह और डॉ. नितिन त्यागी शामिल हैं।
प्राकृतिक प्रणाली में 18 से 24 महीने की आयु में गाय गर्भधारण करती है। वैज्ञानिकों ने अल्ट्रासाउंड तकनीक के जरिए 18 महीने की क्लोन गाय गंगा के गर्भ में अंडों को देखकर ओवम पिकअप (ओपीयू) तकनीक से उन्हें बाहर निकाला। इसे एक गिर नस्ल के अच्छे सांड के सीमन के साथ फर्टिलाइज कर लैब में 12 भ्रूण तैयार किए। इनमें से 5 भ्रूणों को साहीवाल नस्ल की गायों के गर्भ में रखा गया, जिनमें से एक गाय ने बछिया को सफलतापूर्वक जन्म दिया है। गाय और बछिया दोनों स्वस्थ हैं।
डॉ. धीर सिंह ने कहा कि क्लोन और ओपीयू-आईवीएफ तकनीक के संयुक्त उपयोग से देश में तेजी से उत्तम नस्ल की अधिक दूध देने वाली मवेशियों की संख्या बढ़ाई जा सकती है। देश में गिर गायों की संख्या 9 लाख है, जो मुख्यतः गुजरात और राजस्थान में पाई जाती हैं। हरियाणा के हिसार और जींद में भी गिर गायों का पालन किया जाता है।