क्या पश्चिम बंगाल में भाजपा नेता अमित मालवीय पर एफआईआर दर्ज हुई?
सारांश
Key Takeaways
- अमित मालवीय पर एफआईआर दर्ज, राजनीतिक माहौल में तनाव।
- सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट का असर।
- पुलिस कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू।
बारुईपुर, 20 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। पश्चिम बंगाल के नरेंद्रपुर पुलिस थाने में भाजपा नेता और पार्टी की आईटी सेल के राष्ट्रीय प्रमुख अमित मालवीय के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। यह कार्रवाई तृणमूल कांग्रेस के नेता तन्मय घोष की शिकायत के आधार पर की गई है।
शिकायत में यह आरोप लगाया गया है कि अमित मालवीय ने 19 दिसंबर को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर भड़काऊ पोस्ट साझा किया, जिससे सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ने का खतरा उत्पन्न हुआ है।
टीएमसी के राज्य महासचिव और प्रवक्ता तन्मय घोष ने कहा कि इस पोस्ट से न केवल समाज में तनाव फैल सकता है, बल्कि यह भारत की संप्रभुता के लिए भी गंभीर खतरा है। मालवीय का यह पोस्ट पश्चिम बंगाल की सरकार, अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का सीधा अपमान करता है। उनका कहना है कि इस तरह के बयानों से जनता को भड़काया जाता है और राजनीतिक माहौल बिगड़ता है।
तन्मय घोष ने पुलिस से अनुरोध किया है कि अमित मालवीय के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की संबंधित धाराओं और अन्य लागू कानूनों के तहत सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए। पुलिस ने शिकायत के आधार पर मामला दर्ज कर लिया है और अब पूरे मामले की जांच की जा रही है।
अमित मालवीय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक वीडियो पोस्ट करते हुए लिखा था, ''कल रात, ढाका में बंगाली कला और संस्कृति के एक ऐतिहासिक संस्थान, छायानाट भवन में इस्लामी भीड़ ने तोड़फोड़ की। बांग्लादेश में जो पैटर्न सामने आ रहा है, वह स्पष्ट है। इस्लामी दबाव और धमकियों के तहत मीडिया संस्थानों, पत्रकारों और सांस्कृतिक केंद्रों पर हमले किए जा रहे हैं।
यह एक चेतावनी है। ठीक इसी तरह समाज तब बिखर जाता है जब उग्रवाद को बढ़ावा दिया जाता है और अराजकता को सामान्य मान लिया जाता है। यही कारण है कि ममता बनर्जी के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल की स्थिति बेहद चिंताजनक है। वर्षों के राजनीतिक संरक्षण, संस्थाओं के क्षरण और चुनिंदा चुप्पी ने बंगाल को एक खतरनाक रास्ते पर धकेल दिया है। यदि ममता बनर्जी का यह जर्जर शासन 2026 के बाद भी जारी रहता है, तो बंगाल के लिए इसके परिणाम अपरिवर्तनीय होंगे। संस्कृति, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतंत्र वहां जीवित नहीं रह सकते जहां भीड़ का शासन हो और सरकार आंखें मूंद कर बैठी हो।''