क्या पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाना संभव नहीं है?

सारांश
Key Takeaways
- पेट्रोल और डीजल को जीएसटी में शामिल करने का निर्णय राज्यों की सहमति पर निर्भर करता है।
- राजस्व संबंधी प्रभावों के कारण इन्हें फिलहाल जीएसटी में लाना संभव नहीं है।
- यह उत्पाद केंद्र और राज्य सरकारों के लिए महत्वपूर्ण राजस्व स्रोत हैं।
नई दिल्ली, 10 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। पेट्रोल और डीजल को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के दायरे में लाने के संबंध में केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) के अध्यक्ष संजय कुमार अग्रवाल ने कहा कि इस समय इन्हें जीएसटी के अंतर्गत लाना संभव नहीं है।
समाचार एजेंसी राष्ट्र प्रेस द्वारा पूछे गए प्रश्न के जवाब में कि क्या पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाना चाहिए, अग्रवाल ने बताया कि इन दोनों पर वर्तमान में केंद्रीय उत्पाद शुल्क और मूल्य वर्धित कर (वैट) लागू है, जिससे राज्यों को वैट के रूप में और केंद्र को केंद्रीय उत्पाद शुल्क के माध्यम से पर्याप्त राजस्व प्राप्त होता है।
अग्रवाल ने आगे कहा, "राजस्व के प्रभावों के मद्देनजर, इन वस्तुओं को वर्तमान में जीएसटी के दायरे में लाना संभव नहीं है।"
सीबीआईसी के अध्यक्ष ने यह बयान ऐसे समय में दिया है जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले सप्ताह कहा था कि केंद्र सरकार ने जानबूझकर पेट्रोल और डीजल को जीएसटी परिषद के प्रस्ताव में शामिल नहीं किया है।
वित्त मंत्री ने यह भी कहा था कि कानूनी रूप से हम तैयार हैं, लेकिन यह निर्णय राज्यों को लेना होगा।
सीतारमण ने कहा, "पेट्रोल और डीजल को जीएसटी लागू होने पर शामिल किया जाना तय था, और मुझे याद है कि मेरे दिवंगत पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस पर चर्चा की थी।"
उन्होंने कहा, "राज्यों की सहमति के बाद, उन्हें परिषद में कराधान की दर तय करनी होगी। जब यह निर्णय हो जाएगा, तो इसे कानून में शामिल कर लिया जाएगा।"
जुलाई 2017 में लागू हुए जीएसटी में पेट्रोल, डीजल और मादक पेय पदार्थों को इसके दायरे से बाहर रखा गया था।
ये वस्तुएं केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के लिए उत्पाद शुल्क और वैट के माध्यम से राजस्व का प्रमुख स्रोत हैं। कई राज्यों के लिए, ये उनके कर राजस्व में 25-30 प्रतिशत से अधिक का योगदान करते हैं।