क्या प्रधानमंत्री मोदी ने चौधरी चरण सिंह की जयंती पर श्रद्धांजलि दी?
सारांश
Key Takeaways
- चौधरी चरण सिंह का योगदान किसानों के कल्याण में महत्वपूर्ण रहा है।
- पीएम मोदी ने उनके विचारों को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया है।
- कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए सरकार की पहल जारी है।
नई दिल्ली, 23 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न चौधरी चरण सिंह को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि दी। इस मौके पर पीएम मोदी ने चौधरी चरण सिंह के कृषि क्षेत्र में योगदान, किसानों की समृद्धि, और समाज के वंचित वर्गों की भलाई के लिए उनके प्रयासों को याद किया।
प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर एक पोस्ट में लिखा, "पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न चौधरी चरण सिंह को उनकी जयंती पर आदरपूर्वक श्रद्धांजलि। उन्होंने समाज के वंचित वर्गों के कल्याण के साथ-साथ कृषि की प्रगति और किसानों की समृद्धि के लिए अपने जीवन की बलिदान किया। राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान को कृतज्ञ राष्ट्र कभी नहीं भूल सकता।"
इस अवसर पर जारी एक वीडियो संदेश में पीएम मोदी ने कहा, "चौधरी साहब (चौधरी चरण सिंह) ने छोटे किसानों के लिए जो किया, उसे देश कभी नहीं भूल सकता है। चौधरी साहब से प्रेरणा लेकर हम देश के किसानों को निरंतर सशक्त कर रहे हैं। हम देश की खेती को एक नए रास्ते पर ले जाने के लिए किसानों को मदद और प्रोत्साहन दे रहे हैं। प्राकृतिक खेती और मिलेट पर ध्यान केंद्रित करने के पीछे भी यही उद्देश्य है।"
पीएम मोदी ने आगे कहा, "चौधरी साहब ने अपना जीवन किसानों की समृद्धि के लिए समर्पित किया। हमारी सरकार भी किसानों के कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए काम कर रही है। उत्तर प्रदेश की धरती के बेटे चौधरी साहब का सम्मान करना देश के करोड़ों मजदूर और किसानों का सम्मान है।"
ज्ञात हो कि चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 को उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर में एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार में हुआ था। वे भारत के पांचवें प्रधानमंत्री रहे। चौधरी चरण सिंह ने किसानों के अधिकारों और ग्रामीण विकास के लिए अपने जीवनभर संघर्ष किया।
उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार का पूरा श्रेय उन्हें जाता है। ग्रामीण देनदारों को राहत प्रदान करने वाला विभागीय ऋणमुक्ति विधेयक-1939 को तैयार करने और इसे अंतिम रूप देने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। उनकी पहल का परिणाम था कि उत्तर प्रदेश में मंत्रियों के वेतन और अन्य लाभों को कम किया गया था। मुख्यमंत्री के रूप में जोत अधिनियम-1960 को लाने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। यह अधिनियम भूमि रखने की अधिकतम सीमा को कम करने के लिए लाया गया था, ताकि राज्य भर में इसे समान बनाया जा सके।