क्या बंकिम दा ने हीन भावना को झकझोरा?

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क्या बंकिम दा ने हीन भावना को झकझोरा?

सारांश

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में 'वंदे मातरम्' की चर्चा की। उन्होंने इसे न केवल एक गीत बल्कि स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक बताया। बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की रचना ने भारतीयों में साहस और आत्मविश्वास की नई लहर पैदा की। यह भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

Key Takeaways

  • वंदे मातरम् स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक है।
  • बंकिम दा ने इसे लिखकर भारतीयों में आत्मविश्वास भरा।
  • यह केवल एक गीत नहीं, बल्कि एक पवित्र संघर्ष का प्रतीक है।
  • प्रधानमंत्री मोदी ने सांसदों से इस ऋण को स्वीकारने का आह्वान किया।
  • यह भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

नई दिल्ली, 8 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। 18वीं लोकसभा के शीतकालीन सत्र के 8वें दिन सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में 'वंदे मातरम्' पर चर्चा की शुरुआत की। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि यह केवल एक गीत या राजनीतिक नारा नहीं था, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम और मातृभूमि की आजादी के लिए एक पवित्र संघर्ष का प्रतीक था।

पीएम मोदी ने लोकसभा में कहा, "बंकिम दा ने जब 'वंदे मातरम्' की रचना की तब स्वाभाविक ही वह स्वतंत्रता आंदोलन का पर्व बन गया। तब पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण, 'वंदे मातरम्' हर भारतीय का संकल्प बन गया। इसलिए 'वंदे मातरम्' की स्तुति में लिखा गया था कि मातृभूमि की स्वतंत्रता की वेदी पर, मोद में स्वार्थ का बलिदान है। यह शब्द 'वंदे मातरम्' है। सजीवन मंत्र भी, विजय का विस्तृत मंत्र भी। यह शक्ति का आह्वान है। यह 'वंदे मातरम्' है। उष्ण शोणित से लिखो, वत्स स्थली को चीरकर वीर का अभिमान है। यह शब्द 'वंदे मातरम्' है।"

प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि 'वंदे मातरम्' उस समय लिखा गया था, जब 1857 की क्रांति के बाद ब्रिटिश सरकार सतर्क थी और हर स्तर पर दबाव और अत्याचार की नीतियां लागू कर रही थी। उस दौर में ब्रिटिश राष्ट्रगान 'गॉड सेव द क्वीन' को हर घर तक पहुंचाने की मुहिम चल रही थी। ऐसे समय में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने अपनी लेखनी से जवाब देते हुए 'वंदे मातरम्' लिखा और भारतीयों में साहस और आत्मविश्वास की नई लहर पैदा की।

प्रधानमंत्री ने कहा, "जब हम 'वंदे मातरम्' कहते हैं, तो यह हमें वैदिक युग की संस्कृति की याद दिलाता है। वेदों में कहा गया है कि माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः, अर्थात यह भूमि मेरी माता है और मैं पृथ्वी का पुत्र हूं। यही विचार भगवान राम ने भी व्यक्त किया था, जब उन्होंने कहा कि जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी। आज 'वंदे मातरम्' इसी महान सांस्कृतिक परंपरा का आधुनिक रूप है।

पीएम मोदी ने स्पष्ट किया कि 'वंदे मातरम्' केवल अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई का मंत्र नहीं था, बल्कि यह मातृभूमि की मुक्ति की पवित्र जंग का प्रतीक था। यह गीत उन लाखों स्वतंत्रता सेनानियों के साहस और बलिदान का सम्मान करता है जिन्होंने इसे अपने आंदोलन का हिस्सा बनाया।

प्रधानमंत्री ने सदन में सभी सांसदों से कहा कि इस अवसर पर पक्ष-प्रतिपक्ष का कोई भेदभाव नहीं है, क्योंकि यह समय है 'वंदे मातरम्' के ऋण को स्वीकार करने का, जो हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने बलिदानों से पूरा किया। उन्होंने याद दिलाया कि आज भारत में जो लोकतांत्रिक व्यवस्था और आजादी है, वह इसी आंदोलन का परिणाम है।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, "संसद में बैठे सभी सांसदों के लिए यह अवसर है कि वे इस ऋण को स्वीकार करें और उस पवित्र संघर्ष को याद करें, जिसने हमारी मातृभूमि को स्वतंत्र कराया।"

Point of View

बल्कि यह स्वतंत्रता संग्राम की भावना को भी उजागर करता है। प्रधानमंत्री मोदी का यह संदेश सभी सांसदों के लिए एक प्रेरणा है कि वे अपने पूर्वजों के बलिदानों का सम्मान करें और लोकतंत्र की रक्षा करें।
NationPress
08/12/2025

Frequently Asked Questions

क्या 'वंदे मातरम्' का मतलब है?
यह गीत मातृभूमि की पूजा और स्वतंत्रता की भावना का प्रतीक है।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने 'वंदे मातरम्' कब लिखा?
'वंदे मातरम्' 1882 में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखा गया था।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस पर क्यों बात की?
उन्होंने इसे स्वतंत्रता संग्राम और मातृभूमि की मुक्ति का प्रतीक बताया।
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