क्या प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना ने गुमला में सैकड़ों लोगों की जिंदगी बदल दी?

Click to start listening
क्या प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना ने गुमला में सैकड़ों लोगों की जिंदगी बदल दी?

सारांश

क्या आप जानते हैं कि प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना ने झारखंड के गुमला में सैकड़ों लोगों की जिंदगी को कैसे बदल दिया? इस योजना ने न केवल उनकी आर्थिक स्थिति को सशक्त बनाया, बल्कि सामाजिक स्थिति में भी महत्वपूर्ण बदलाव लाया है। आइए जानते हैं कैसे यह योजना लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला रही है।

Key Takeaways

  • प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना ने गुमला में लोगों की जिंदगी में बदलाव लाया है।
  • आर्थिक स्थिति में सुधार और रोजगार के नए अवसर पैदा हुए हैं।
  • गांवों में मछली उत्पादन में वृद्धि हुई है।
  • कुपोषण की समस्या में कमी आई है।
  • स्थानीय लोगों को प्रशिक्षण का लाभ मिल रहा है।

गुमला, 27 जून (राष्ट्र प्रेस)। केंद्र सरकार की योजनाओं ने हमारे देश के करोड़ों लोगों की जिंदगी में सकारात्मक बदलाव लाए हैं। इन योजनाओं का लाभ उठाते हुए न केवल लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है बल्कि उनकी सामाजिक स्थिति में भी बदलाव आया है और वे मुख्य धारा में शामिल हो गए हैं। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) ने झारखंड के गुमला जिले में कई लोगों की जिंदगी को नया मोड़ दिया है।

ओमप्रकाश साहू उर्फ पप्पू सोनी ने समाचार एजेंसी राष्ट्र प्रेस से कहा, "मैं 2014 से मछली पालन कर रहा हूं। मेरे पास तीन तालाब हैं और आठ लोग हमारे साथ जुड़े हुए हैं। हम स्थानीय बाजार में मछली की सप्लाई करते हैं और सालाना पांच से सात लाख रुपए की आमदनी होती है। हमें प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से काफी लाभ मिला है। इसके माध्यम से ही हमने टैंक बनाए हैं और अब हम आर्थिक रूप से मजबूत हैं। यह योजना रोजगार और कमाई के दृष्टिकोण से बेहद उपयोगी है और सभी को इसका लाभ उठाना चाहिए।"

गुमला जिले के लखन सिंह ने बताया कि पहले वह धान की खेती करते थे, लेकिन उसमें मुनाफा कम था। फिर, उन्हें मछली पालन की जानकारी मिली और उन्होंने इसके लिए प्रशिक्षण लिया। प्रशिक्षण के दौरान उन्हें बताया गया कि कैसे मछली उत्पादन से अधिक लाभ कमाया जा सकता है। उन्होंने कहा, "आज मैं मछली उत्पादन कर धान की खेती से ज्यादा कमाई कर रहा हूं। मैं इस उपयोगी योजना के लिए केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री का धन्यवाद करना चाहता हूं।"

ज्योति लाकड़ा पहले एक नक्सली थे, लेकिन 2002 में वह मुख्यधारा में शामिल हुए। अब वह एक मछली चारा मिल चलाते हैं। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत उन्हें पिछले साल आठ लाख रुपए का शुद्ध लाभ हुआ था। अब वह इस योजना के बारे में स्थानीय लोगों को जानकारी देते हैं और उन्हें इससे जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। उनके माध्यम से लगभग 150 लोग मछली के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं।

गुमला जिला मत्स्य पदाधिकारी कुसुम लता ने राष्ट्र प्रेस को बताया कि प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना गुमला में एक वरदान साबित हुई है। इस योजना का लाभ जिले के सैकड़ों लोगों ने, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, उठाया है। योजना के लाभ व्यापक स्तर पर देखने को मिले हैं। लाभार्थियों की आर्थिक स्थिति में बदलाव आया है और स्थानीय स्तर पर रोजगार का सृजन भी हुआ है। कई लोग जो पहले शराब के व्यापार से जुड़े थे, अब वे मछली पालन से जुड़ गए हैं।

सबसे बड़ी बात यह है कि ग्रामीण क्षेत्र में मछली उत्पादन बढ़ने से कुपोषण की समस्या में कमी आई है। इसलिए, इस योजना ने जिले में आर्थिक, सामाजिक और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से बड़ा बदलाव लाने का कार्य किया है।

Point of View

यह स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना ने झारखंड के गुमला जिले में लोगों की जिंदगी में बदलाव लाने का कार्य किया है। यह योजना न केवल आर्थिक समृद्धि बल्कि सामाजिक समावेशिता को भी बढ़ावा देती है। हमें ऐसे प्रयासों को समर्थन देना चाहिए जो लोगों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं।
NationPress
08/12/2025

Frequently Asked Questions

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना क्या है?
यह योजना केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई है, जिसका उद्देश्य मछली पालन को बढ़ावा देना और मछुआरों की आर्थिक स्थिति को सुधारना है।
इस योजना का लाभ कौन उठा सकता है?
गुमला जिले के सभी निवासी जो मछली पालन में रुचि रखते हैं, इस योजना का लाभ उठा सकते हैं।
क्या योजना से रोजगार के अवसर बढ़े हैं?
हां, इस योजना के माध्यम से कई लोगों को रोजगार के नए अवसर मिले हैं।
क्या इस योजना से स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा है?
जी हां, इस योजना के चलते मछली उत्पादन में वृद्धि हुई है, जिससे कुपोषण में कमी आई है।
इस योजना का लाभ कब से मिल रहा है?
इस योजना का लाभ पिछले कुछ वर्षों से लोगों को मिल रहा है।
Nation Press