क्या न्याय का पहिया इतना धीमा है? प्रियंका चतुर्वेदी ने पार्टी चिन्ह विवाद पर नाराजगी जताई

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क्या न्याय का पहिया इतना धीमा है? प्रियंका चतुर्वेदी ने पार्टी चिन्ह विवाद पर नाराजगी जताई

सारांश

शिवसेना की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने न्याय प्रक्रिया की धीमी गति और चुनाव आयोग की भूमिका पर चिंता जताई है। क्या वास्तव में न्याय का पहिया इतना धीमा है? जानिए इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर क्या कहा उन्होंने।

Key Takeaways

  • प्रियंका चतुर्वेदी ने न्याय प्रक्रिया की धीमी गति पर चिंता जताई।
  • सर्वोच्च न्यायालय में मामला ढाई साल से चल रहा है।
  • चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं।
  • महाराष्ट्र में जल्द चुनाव होने हैं।
  • शिवसेना 2022 में दो धड़ों में बंटी थी।

मुंबई, १७ अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने 'पार्टी चिन्ह और पार्टी नाम' के मामले में सुनवाई में हो रही देरी पर अपनी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर एक पोस्ट करते हुए न्याय प्रक्रिया की धीमी गति और चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल उठाए।

शिवसेना-यूबीटी की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, "सर्वोच्च न्यायालय में पार्टी चिन्ह और पार्टी नाम के लिए ढाई साल से अधिक समय से संघर्ष चल रहा है, जिसे चुनाव आयोग ने पार्टी तोड़ने वालों को देने का निर्णय लिया था। इस लड़ाई में पार्टी बिना किसी अंतिम तिथि के सर्वोच्च न्यायालय में उपस्थित है।"

उन्होंने आगे लिखा, "यदि संवैधानिक औचित्य की दिशा में न्याय का पहिया इतना धीमा है, तो राजनीतिक दलों के रूप में हमारी लड़ाई चुनावी प्रक्रिया में खामियों को प्राथमिकता देने की है और ईसीआई को उनकी कार्रवाई या निष्क्रियता के लिए जिम्मेदार ठहराना है।"

गौरतलब है कि महाराष्ट्र में जल्द ही बीएमसी और अन्य नगरपालिका चुनाव होने वाले हैं। इससे पहले, शिवसेना-यूबीटी पार्टी 'सिंबल' के मुद्दे पर फिर से सक्रिय हो गई है। १३ अगस्त को शिवसेना-यूबीटी के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भी सवाल उठाए थे।

लोक सुरक्षा विधेयक का विरोध करने के लिए दक्षिण मुंबई के वाई.बी. चव्हाण सभागार में कम्युनिस्ट ब्लॉक सहित विपक्षी दलों के शिखर सम्मेलन में उद्धव ठाकरे ने न्यायपालिका पर लोकतंत्र को "अपने दरवाजे पर ही ढहने" देने का आरोप लगाया था।

बता दें, २०२२ में शिवसेना दो धड़ों में बंट गई थी। एक गुट उद्धव ठाकरे के साथ रहा, जबकि दूसरा पक्ष एकनाथ शिंदे के साथ जुड़ा। फरवरी, २०२३ में एकनाथ शिंदे को न केवल 'शिवसेना' पार्टी का नाम, बल्कि चुनाव चिन्ह 'धनुष-बाण' भी मिला। चुनाव आयोग ने यह निर्णय लिया था। उद्धव ठाकरे इसी निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए थे।

Point of View

हमें इस मुद्दे पर गहराई से विचार करना चाहिए। न्याय प्रक्रिया की धीमी गति नागरिकों के अधिकारों को प्रभावित कर सकती है। यह आवश्यक है कि राजनीतिक दल और चुनाव आयोग मिलकर एक ऐसा तंत्र विकसित करें जो त्वरित और प्रभावी न्याय सुनिश्चित कर सके।
NationPress
17/08/2025

Frequently Asked Questions

प्रियंका चतुर्वेदी ने क्या चिंता जताई?
प्रियंका चतुर्वेदी ने पार्टी चिन्ह और नाम के मामले में सुनवाई में देरी पर चिंता जताई है।
सुप्रीम कोर्ट में मामला कितने समय से है?
यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में ढाई साल से अधिक समय से चल रहा है।
क्या चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं?
हाँ, प्रियंका चतुर्वेदी ने चुनाव आयोग की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं।
शिवसेना के दो धड़े कब बंटे?
शिवसेना 2022 में दो धड़ों में बंट गई थी।
एकनाथ शिंदे को क्या मिला?
एकनाथ शिंदे को 'शिवसेना' पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह 'धनुष-बाण' मिला।