क्या पंजाब के विशेष सत्र से पहले प्रताप सिंह बाजवा ने स्पीकर को पत्र लिखा?

Click to start listening
क्या पंजाब के विशेष सत्र से पहले प्रताप सिंह बाजवा ने स्पीकर को पत्र लिखा?

सारांश

पंजाब में विधानसभा सत्र से पहले, विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने स्पीकर को पत्र लिखकर सदन को कमजोर करने का आरोप लगाया है। उन्होंने नियमित सत्रों की कमी पर चिंता जताई है और इसे संवैधानिक विकृति करार दिया है। क्या यह पंजाब की राजनीतिक स्थिरता के लिए खतरा है?

Key Takeaways

  • विपक्ष का आरोप: सदन को कमजोर करने का प्रयास।
  • राजनीतिक संकट: पंजाब में कानून-व्यवस्था की स्थिति गंभीर है।
  • सत्रों की कमी: विधायिका की कार्यक्षमता पर प्रभाव।

चंडीगढ़, 29 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। पंजाब विधानसभा सत्र से एक दिन पूर्व, विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने स्पीकर कुलतार सिंह संधवान को एक पत्र भेजकर अपनी चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि नियमित विधायी सत्रों के स्थान पर चुनिंदा विशेष सत्र बुलाकर सदन को 'कमजोर' किया जा रहा है।

अपने पत्र में, बाजवा ने सदन की बैठकों की संख्या में कमी पर बार-बार ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की है, लेकिन उनकी आवाज को नजरअंदाज किया गया है। उन्होंने चेतावनी दी कि जो हो रहा है, वह कोई साधारण गलती नहीं है, बल्कि यह एक गंभीर संवैधानिक विकृति है, जो विधायी लोकतंत्र की नींव पर हमला करती है।

आम आदमी पार्टी सरकार ने 30 दिसंबर को विधानसभा का एक विशेष एक दिवसीय सत्र बुलाया है। यह सत्र महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के स्थान पर नए ग्रामीण रोजगार कानून विकसित भारत-जी राम जी (विकसित भारत–रोजगार और आजीविका मिशन ग्रामीण) के खिलाफ बुलाया गया है।

उन्होंने कहा कि विधानसभा का उद्देश्य विचार-विमर्श, प्रश्न पूछना, जांच करना और कार्यपालिका को जवाबदेह ठहराना है। नियमित और शीतकालीन सत्रों को विशेष सत्रों से बदलने की सोची-समझी चाल से विधायिका को कमजोर किया जा रहा है।

बाजवा ने कहा, “विधायी समय कम हो रहा है, जांच से बचा जा रहा है, और सदन को लोकतांत्रिक जवाबदेही के एक वास्तविक मंच के बजाय एक स्टेज-मैनेज्ड तमाशे में बदल दिया जा रहा है।”

कांग्रेस विधायक ने कहा कि यह विशेष रूप से चिंताजनक है कि यह गिरावट एक ऐसी सरकार द्वारा की जा रही है, जिसका नेतृत्व, विशेष रूप से आपका नेतृत्व, लंबे समय से संवैधानिक मूल्यों, शक्तियों के बंटवारे और संस्थागत अखंडता पर नैतिकता का पाठ पढ़ाता रहा है।

उन्होंने कहा, “जो लोग कभी देश को संवैधानिक नैतिकता पर व्याख्यान देते थे, वे आज एक ऐसे मॉडल की अध्यक्षता कर रहे हैं जो विधायिका को कमजोर करता है और कार्यपालिका में शक्ति केंद्रित करता है।”

बाजवा ने कहा कि प्रक्रिया और कार्य-संचालन नियमों के तहत अनिवार्य रूप से सालाना कम से कम 40 बैठकों की मांग उन्हीं ताकतों द्वारा जोरदार तरीके से उठाई गई थी जो अब सत्ता में हैं। अब उन्होंने ही इस सिद्धांत को छोड़ दिया है।

उन्होंने चेतावनी दी कि विशेष सत्रों पर बढ़ती निर्भरता, जिसमें अक्सर सार्थक प्रश्नकाल, शून्यकाल और ठोस बहस की कमी होती है, ने विधानसभा को जवाबदेही के बजाय दिखावे से चलने वाले एक नियंत्रित मैसेजिंग प्लेटफॉर्म में बदल दिया है।

जब पंजाब गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिनमें बिगड़ती कानून-व्यवस्था, नशीली दवाओं का खतरा, सार्वजनिक स्वास्थ्य पर दबाव, भूजल प्रदूषण और बढ़ता कर्ज शामिल है, बाजवा ने कहा कि गंभीर सत्र होने चाहिए, न कि इसे राजनीतिक नाटक में बदला जाना चाहिए।

Point of View

यह स्पष्ट है कि विधानसभा सत्रों के आयोजन में कमी विधायिका की कमजोरियों को उजागर करती है। एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवश्यक है कि विधायिका को मजबूत किया जाए, न कि उसे कमजोर किया जाए।
NationPress
29/12/2025

Frequently Asked Questions

प्रताप सिंह बाजवा ने स्पीकर को पत्र क्यों लिखा?
उन्होंने विधानसभा के विशेष सत्रों को लेकर चिंता जताई और इसे सदन को कमजोर करने का प्रयास बताया।
क्या विशेष सत्रों का आयोजन सही है?
विशेष सत्रों का आयोजन आवश्यक हो सकता है, लेकिन नियमित सत्रों की जगह लेना चिंताजनक है।
बाजवा ने क्या चेतावनी दी है?
उन्होंने कहा कि यह एक गंभीर संवैधानिक विकृति है जो लोकतंत्र पर हमला करती है।
Nation Press