क्या राहुल गांधी जनता के सवाल सदन में उठा रहे हैं? : प्रियंका चतुर्वेदी
सारांश
Key Takeaways
- राहुल गांधी ने जनता के सवाल उठाए हैं।
- चुनाव आयोग की नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव किया गया है।
- वंदे मातरम पर राजनीति नहीं होनी चाहिए।
- सरकार को जवाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिए।
- प्रियंका चतुर्वेदी की तर्क शक्ति उल्लेखनीय है।
नई दिल्ली, १० दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। शिवसेना (यूबीटी) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी द्वारा एसआईआर और वोट चोरी जैसे मुद्दों पर उठाए गए सवालों का समर्थन किया है।
प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि राहुल गांधी देश की जनता की ओर से सवाल उठा रहे हैं और सरकार को इनका जवाब देना चाहिए। नई दिल्ली में राष्ट्र प्रेस से बातचीत में प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में पहले चार सदस्य होते थे-विपक्ष के नेता, केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, प्रधानमंत्री और भारत के मुख्य न्यायाधीश। अब मुख्य न्यायाधीश को हटा दिया गया है। अब तीन सदस्यों में दो सदस्य सत्तापक्ष के हैं। भले ही विपक्ष का प्रतिनिधि नियुक्ति से इनकार कर दे, फिर भी दो बनाम एक से उसे ओवररूल किया जा सकता है। इसलिए जनता को यह जानने का पूरा हक है कि चुनाव आयोग में किसे नियुक्त किया जा रहा है। अब यह नियुक्ति पूरी तरह सरकार के हाथ में है। सत्ता के बीच कोई संतुलन नहीं बचा है।
वंदे मातरम पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयान पर प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि इनकी सोच वंदे मातरम के १५० वर्ष पूरे होने पर जश्न मनाने की नहीं, बल्कि सिर्फ राजनीति करने की है। यह कहना कि वंदे मातरम के दो छंदों में कांट-छांट की गई इसलिए भारत का बंटवारा हुआ, बिल्कुल गलत है। हम आज भी बंटवारे का दर्द नहीं भूल पाए हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान की केंद्र सरकार सिर्फ भारत के पहले प्रधानमंत्री की छवि धूमिल करने पर तुली है। उस समय देश गरीबी से जूझ रहा था, आधुनिक भारत की नींव पंडित नेहरू ने रखी। आईआईटी, इसरो, जैसी संस्थाओं की बुनियाद उन्होंने ही रखी। दुनिया के सामने आंख में आंख डालकर बात करने की ताकत उन्होंने ही दी। वंदे मातरम की आड़ में राजनीति नहीं की जानी चाहिए।
प्रियंका चतुर्वेदी ने इंडिगो के सीईओ की एक तस्वीर को लेकर तंज कसते हुए कहा कि हाथ जोड़कर माफी मांगते हुए तस्वीरें जारी करने का क्या मतलब? सच तो यह है कि सरकार ने खुद पायलटों के एफडीटीएल नियमों को ढीला कर वापस ले लिया था और आसमान में पैदा हुई गड़बड़ी पर सख्त कार्रवाई करने में पूरी तरह नाकाम रही। दोषी एयरलाइन नहीं, बल्कि वे लोग हैं जिन्होंने एक कंपनी के मार्केट पर कब्ज़े को नज़रअंदाज़ किया और हालात को इस कदर बिगड़ने दिया।