क्या रायपुर से बचाए गए 120 बच्चे तस्करी का शिकार थे?
सारांश
Key Takeaways
- बच्चों का शोषण और तस्करी एक गंभीर मुद्दा है।
- एनएचआरसी और पुलिस ने मिलकर महत्वपूर्ण कार्रवाई की।
- बच्चों को सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया है।
- यह घटना हमें जागरूक करती है कि हमें बच्चों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए।
रायपुर, 19 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी), महिला एवं बाल विकास (डब्ल्यूसीडी), पुलिस और स्वयंसेवी संस्था एसोसिएशन फॉर वॉलंटरी एक्शन (एवीए) की एक संयुक्त टीम ने बाल श्रम और तस्करी पर एक महत्वपूर्ण कार्रवाई की है। इस अभियान में रायपुर के एक मशरूम निर्माण प्लांट से 120 से अधिक बच्चों को सुरक्षित किया गया। यह अभियान लगभग चार घंटे तक चला और इसमें 14 से 17 वर्ष की आयु के 80 से अधिक लड़कियों और 40 लड़कों को बचाया गया।
जांच में पता चला कि बचाए गए अधिकांश बच्चे पश्चिम बंगाल, ओडिशा, मध्य प्रदेश, झारखंड और असम के आदिवासी क्षेत्रों से थे। इन्हें तस्करी करके लाया गया था और उनसे काम करवाया जा रहा था। कुछ बच्चों की उम्र तो 17 साल से भी कम है और वे पिछले 6 वर्षों से काम कर रहे थे। एनएचआरसी को भेजे गए एक पत्र में एसोसिएशन फॉर वॉलंटरी एक्शन ने अधिकारियों को बताया था कि इस प्लांट में बच्चों का शोषण किया जाता था और उन्हें बंधुआ मजदूरी के हालात में काम करने के लिए मजबूर किया जाता था।
बच्चों ने बताया कि उन्हें फैक्ट्री के एक छोटे और गंदे कमरे में रखा जाता था और अक्सर 12-15 घंटे काम करने के लिए मजबूर किया जाता था। उन्हें रात का खाना भी सही तरीके से नहीं दिया जाता था। एनएचआरसी के सदस्य प्रियांक कानूनगो ने तुरंत रायपुर जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से संपर्क किया और डीएसपी नंदिनी ठाकुर के नेतृत्व में एक टीम ने प्लांट पर छापा मारा। बच्चों को तुरंत सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया और उनकी काउंसलिंग की जा रही है।
जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन के संस्थापक भुवन रिभु ने कहा, "एक 14 साल के बच्चे की दुर्दशा की कल्पना कीजिए, जिसे ठंड में दिन में 12–15 घंटे काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। यह तस्करी के संगठित अपराध का सबसे बुरा चेहरा है।"
मोजो मशरूम इकाई कम तापमान पर मशरूम उत्पादन के लिए जानी जाती है। यहां बच्चों को बिना किसी सुरक्षा उपकरण के काम करने के लिए कहा जाता था। पिछले जुलाई में भी इसी इकाई पर छापेमारी की गई थी, तब भी बड़ी संख्या में मजदूरों को बचाया गया था, लेकिन उस समय मालिक के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की गई थी।