क्या रामेश्वरम भी मोक्ष का द्वार है? लंका विजय के बाद श्रीराम ने यहां पूजा की थी

Click to start listening
क्या रामेश्वरम भी मोक्ष का द्वार है? लंका विजय के बाद श्रीराम ने यहां पूजा की थी

सारांश

रामेश्वरम, जो हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है, लंका विजय के बाद भगवान श्रीराम द्वारा पूजा का स्थान है। यहां पितृ दोष शांति और श्राद्ध कर्म के लिए विशेष महत्व है। जानें इस पवित्र स्थान की दिव्यता और धार्मिक मान्यता के बारे में।

Key Takeaways

  • रामेश्वरम हिंदू धर्म का पवित्र तीर्थस्थल है।
  • यहां पितृ दोष शांति के लिए विशेष अनुष्ठान होते हैं।
  • भगवान श्रीराम ने लंका विजय के बाद यहां पूजा की थी।
  • रामनाथस्वामी मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में एक है।
  • महालया अमावस्या पर श्राद्ध का विशेष महत्व है।

रामेश्वरम, 17 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। रामेश्वरम हिंदू धर्म का एक अत्यंत पवित्र और आध्यात्मिक तीर्थस्थल है, जो तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। इसे चार धामों में से एक माना जाता है। यहां स्थित रामनाथस्वामी मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

धार्मिक मान्यता है कि इस स्थान पर किए गए श्राद्ध, तर्पण और पितृ दोष शांति महापूजा से पूर्वजों की आत्मा को शांति और मोक्ष मिलता है। साथ ही, श्रद्धालु को जीवन में सुख-समृद्धि, मानसिक शांति और पारिवारिक सामंजस्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्रीराम ने लंका विजय के बाद अपने पितरों की शांति और ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए रामेश्वरम में भगवान शिव की पूजा की थी।

उन्होंने समुद्र तट पर शिवलिंग स्थापित किया और यहीं पर अपने पूर्वजों के लिए श्राद्ध कर्म किया। यही कारण है कि रामेश्वरम को पितृ दोष शांति और श्राद्ध कर्म के लिए सर्वोत्तम स्थान माना जाता है।

पितृ पक्ष के दौरान यहां तिल तर्पण और पिंडदान का विशेष महत्व है। शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि तिल, जल और कुशा के साथ किया गया तर्पण पूर्वजों की आत्मा को तृप्त करता है। यह अनुष्ठान कृतज्ञता और श्रद्धा का प्रतीक है, जो पितरों के प्रति सम्मान प्रकट करता है।

मान्यता है कि तिल तर्पण से पितृ दोष के दुष्प्रभाव कम होते हैं, जीवन की बाधाएं दूर होती हैं और परिवार में सुख-समृद्धि आती है। खासकर महालया अमावस्या पर किया गया श्राद्ध अत्यंत फलदायी माना जाता है। इस दिन पितरों की आत्माएं धरती पर आती हैं और श्रद्धा से किए गए कर्मकांड स्वीकार कर आशीर्वाद देती हैं।

एक कथा के अनुसार, हनुमान जी कैलाश से शिवलिंग लाने गए थे, लेकिन देर होने पर माता सीता ने रेत से शिवलिंग बनाकर उसकी स्थापना की। इसी शिवलिंग को 'रामनाथ' कहा जाता है। यही मंदिर आज रामनाथस्वामी मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है, जो अपने विशाल गलियारों और अद्भुत स्थापत्य कला के लिए भी जाना जाता है।

रामेश्वरम में 24 पवित्र तीर्थकुंड हैं, जिन्हें भगवान राम ने अपने बाणों से बनाया था। इन कुंडों के जल को बेहद पवित्र माना जाता है और श्रद्धालु श्राद्ध कर्म से पहले यहां स्नान करके स्वयं को शुद्ध करते हैं।

इसी के साथ रामेश्वरम का समुद्र तटीय क्षेत्र और राम सेतु (आदि-सेतु) भी अत्यधिक धार्मिक महत्व रखते हैं। समुद्र में आज भी उस सेतु के अवशेष दिखाई देते हैं, जो भगवान राम और वानर सेना ने लंका तक पहुंचने के लिए बनाया था।

धार्मिक दृष्टि से रामेश्वरम को दक्षिण भारत का काशी कहा जाता है। यहां श्राद्ध कर्म करना जीवन की नकारात्मकताओं को दूर करने और पितरों का आशीर्वाद पाने का श्रेष्ठ साधन माना गया है। भक्तगण यहां आकर न केवल अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं, बल्कि भगवान शिव और भगवान राम की पूजा कर मोक्ष की कामना भी करते हैं।

Point of View

बल्कि यह पूरे देश में श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है। यहां का सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक अनुष्ठान समाज की एकता और भाईचारे को बढ़ावा देते हैं।
NationPress
17/09/2025

Frequently Asked Questions

रामेश्वरम का धार्मिक महत्व क्या है?
रामेश्वरम को मोक्ष का द्वार माना जाता है, जहां भगवान श्रीराम ने लंका विजय के बाद पूजा की थी।
क्या रामेश्वरम में श्राद्ध कर्म करना आवश्यक है?
हाँ, यहां श्राद्ध कर्म करना पितरों का आशीर्वाद पाने और जीवन की नकारात्मकताओं को दूर करने का एक श्रेष्ठ साधन है।
रामनाथस्वामी मंदिर की विशेषता क्या है?
यह मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और अपनी अद्भुत स्थापत्य कला के लिए जाना जाता है।