रामविलास वेदांती ने 6 दिसंबर 1992 की घटना के बारे में क्या बताया?
सारांश
Key Takeaways
- रामलला का मंदिर बनाने का ऐतिहासिक निर्णय 1992 में लिया गया।
- रामविलास वेदांती ने इस घटना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- साधु संतों और कारसेवकों की एकजुटता ने इस आंदोलन को बल प्रदान किया।
- गौरी-गणेश का पूजन इस घटना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।
- इस दिन ने भारतीय धार्मिक इतिहास में नया मोड़ लाया।
अयोध्या, 6 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। आज अयोध्या और पूरे देश में 6 दिसंबर 1992 को ध्वस्त किए गए विवादित ढांचे के विध्वंश की 33वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है। यह वही दिन है जब अयोध्या में रामलला का भव्य और दिव्य मंदिर बनाने का मार्ग प्रशस्त हुआ था। इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी बने रामविलास वेदांती, जिन्हें संतों ने रामकथा मंच पर संकल्प पत्र ले जाने का कार्य सौंपा था। रामविलास वेदांती ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत करते हुए उस दिन की घटनाओं को विस्तार से साझा किया।
राम मंदिर आंदोलन से जुड़े आध्यात्मिक गुरु और पूर्व सांसद रामविलास वेदांती ने 33 वर्ष पूर्व गिराए गए विवादित ढांचे और राम भक्तों के संघर्ष पर विशेष रूप से चर्चा की।
रामविलास वेदांती ने बताया कि 6 दिसंबर 1992 को बड़ी संख्या में साधु संत और कारसेवक राम जन्मभूमि के परिसर के चबूतरे पर उपस्थित थे। वहाँ गौरी-गणेश का पूजन कर भगवान राम की आराधना की गई। इस दौरान विचार किया जा रहा था कि कैसे भव्य और दिव्य राम मंदिर का निर्माण किया जाए। गौरी गणेश के पूजन में महंत अवैद्यनाथ महाराज, परमहंस श्रीरामचंद्र जी महाराज, नृत्य गोपाल दास जी महाराज, स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी, आचार्य धर्मेंद्र, स्वामी चिन्मयानंद, जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती और अशोक सिंघल उपस्थित थे।
वेदांती ने बताया कि गौरी गणेश पूजन के बाद अशोक सिंघल ने परमहंस श्रीरामचंद्र जी महाराज से रामकथा मंच पर जाकर संकल्प कराने का आग्रह किया, लेकिन वहाँ उपस्थित लाखों की भीड़ को देखकर उन्होंने अस्वीकृति जताई। इसी तरह अन्य संतों ने भी जाने से मना कर दिया। इसके पश्चात, महंत अवैद्यनाथ महाराज ने मेरा नाम लेकर कहा कि वेदांती ही भीड़ के बीच जा सकते हैं। तब संकल्प पत्र मुझे सौंपा गया।
उन्होंने आगे बताया कि बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद और मराठी स्वयंसेवक संघ जैसे संगठनों की टीमें राम जन्मभूमि परिसर में तेजी से टूटने लगीं। बाहरी दीवार को तोड़ने का कार्य प्रारंभ हुआ। चूंकि मैं मंच का संचालन कर रहा था, सभी कारसेवक मुझे अच्छी तरह जानते थे और उन्होंने मुझे आसानी से मंच पर पहुँचा दिया। जब मैं मंच पर पहुँचा, वहाँ सुरक्षाकर्मियों की तैनाती थी। हालांकि, अधिकारियों ने बार-बार गोली चलाने का आदेश दिया, लेकिन किसी ने गोली नहीं चलाई।
रामविलास वेदांती ने दिवंगत कल्याण सिंह को याद करते हुए कहा, "उस समय मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह ने स्पष्ट आदेश दिया था कि कोई गोली नहीं चलेगी। इसके बाद वहाँ गोली नहीं चली। इसी बीच, कार सेवक विवादित ढांचे को तोड़ने के लिए चढ़ गए। नीचे से भी खुदाई शुरू हो गई थी।
वेदांती ने कहा कि आचार्य सत्येंद्र दास जी महाराज ने रामलला को गोद में लिया और अन्य संतों ने अन्य देवी-देवताओं को गोद में उठाया और वहाँ से निकल आए। इसके बाद कारसेवा शुरू हो गई थी।
राष्ट्र प्रेस से बातचीत में रामविलास वेदांती ने कहा, "मैंने मंच पर संकल्प प्रारंभ कर दिया। मैंने नारा लगाया, 'राम नाम सत्य है, रामलला का ढांचा ध्वस्त है।' ऐसा इसलिए कहा क्योंकि मैंने कभी उस ढांचे को मस्जिद नहीं बताया, क्योंकि उसमें कोई भी चिन्ह मस्जिद का नहीं था। 14 कसौटी के खंभे, जिन्हें बाबर ने नहीं तोड़ पाया था, उन खंभों में देवी-देवताओं की मूर्तियाँ थीं। हिंदुओं के धार्मिक चिन्ह उन खंभों पर थे।
उन्होंने बताया कि ढांचे के अंदर चारों ओर राम जन्मभूमि की परिक्रमा थी। किसी भी मस्जिद में कोई परिक्रमा नहीं होती है। जब मैं रामलला मंदिर में था, मुझे अच्छे से याद है कि किसी मुसलमान ने वहाँ नमाज नहीं अदा की, क्योंकि वहाँ मूर्तियाँ थीं। हमने खंडहर को तोड़ा था। हम जानते थे कि जब तक वह खंडहर रहेगा, मंदिर नहीं बनेगा। इसलिए हमने खंडहर तोड़कर रामलला का भव्य मंदिर बनाने का मार्ग प्रशस्त किया।
रामविलास वेदांती ने कहा, "खंडहर तोड़ने के बाद राम जन्मभूमि परिसर में एक चबूतरा बनाया गया, जहाँ रामलला को विराजमान किया गया। इसके बाद पूजा-पाठ प्रारंभ किया गया। अगले दिन 7 दिसंबर को भी कारसेवा जारी रही। अगले दिन शाम तक भाषण चलते रहे। 1992 का वह दृश्य आज भी मुझे याद है। ये सब मेरी आँखों के सामने हुआ था।"