क्या राष्ट्रपति मुर्मू ने जमशेदपुर में शताब्दी समारोह में गाया गीत?

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क्या राष्ट्रपति मुर्मू ने जमशेदपुर में शताब्दी समारोह में गाया गीत?

सारांश

जमशेदपुर में शताब्दी समारोह के दौरान राष्ट्रपति मुर्मू ने सांस्कृतिक संरक्षण का महत्व बताया और संथाली भाषा का उत्थान करने में सभी से सहयोग की अपील की। उन्होंने ओलचिकी लिपि के जनक को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए समाज के विकास में उनकी भूमिका को सराहा।

Key Takeaways

  • संथाली भाषा का उत्थान आवश्यक है।
  • ओलचिकी लिपि के महत्व को समझना चाहिए।
  • राष्ट्रपति का संदेश सभी के लिए प्रेरणादायक है।
  • आदिवासी संस्कृति के संरक्षण पर जोर दिया गया।
  • राज्य सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाया गया।

जमशेदपुर, 29 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार को पूर्वी सिंहभूम जिले के करनडीह स्थित आदिवासी पूजास्थल 'दिशोम जाहेरथान' परिसर में संथाली भाषा की ओलचिकी लिपि के शताब्दी समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में अपने विचार रखते हुए परंपरागत ज्ञान, संस्कृति और अस्मिता के संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने ओलचिकी लिपि के जनक पंडित रघुनाथ मुर्मू को श्रद्धांजलि अर्पित की।

अपने संबोधन से पहले राष्ट्रपति ने संथाली भाषा में लगभग तीन मिनट तक पारंपरिक 'नेहोर गीत' गाया। उन्होंने कहा कि यह प्रार्थना गीत उन्होंने अपने बचपन में सीखा था, जिसमें 'जाहेर आयो' (प्रकृति माता) से समाज को सदैव उजाले के मार्ग पर चलने की कामना की गई है।

ऑल इंडिया संथाली राइटर्स एसोसिएशन और दिशोम जाहेरथान कमेटी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस समारोह में राष्ट्रपति मुर्मू ने संथाली भाषा में पूरा संबोधन दिया। उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम स्थल पर पहुंचना उनके लिए एक भावनात्मक क्षण है, जहां उन्हें अपने लोगों का प्रेम और इष्टदेवों का आशीर्वाद प्राप्त हुआ है।

आदिवासी समाज के स्वाभिमान और अस्तित्व की रक्षा में संथाली लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के योगदान की सराहना करते हुए राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि आप अपने दैनिक जीवन से समय निकालकर ओलचिकी लिपि और संथाली भाषा के उत्थान के लिए निरंतर प्रयास कर रहे हैं और पंडित रघुनाथ मुर्मू के अधूरे सपनों को आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी के जन्म शताब्दी वर्ष के अवसर पर भारत सरकार द्वारा ओलचिकी लिपि में संविधान के प्रकाशन को संथाली समाज को सशक्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।

राष्ट्रपति मुर्मू ने इस बात पर जोर दिया कि संथाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने के बाद यह आवश्यक है कि देश के नियम-कानून और प्रशासनिक व्यवस्थाओं की जानकारी संथाली भाषा में समाज के लोगों तक पहुंचे। समारोह में राष्ट्रपति ने संथाली भाषा और ओलचिकी लिपि के उत्थान में उल्लेखनीय योगदान देने वाले 12 व्यक्तियों को सम्मानित किया।

समारोह को राज्यपाल संतोष गंगवार और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी संबोधित किया। राज्यपाल ने कहा कि राजभवन के द्वार आम लोगों के लिए सदैव खुले हैं और आदिवासियों के विकास से जुड़े हर प्रयास में राज्यपाल भवन सहयोग करेगा। मुख्यमंत्री सोरेन ने भी संथाली भाषा, संस्कृति और आदिवासी पहचान के संरक्षण के लिए राज्य सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराया।

Point of View

बल्कि यह स्पष्ट संकेत है कि भारतीय समाज के विविध पहलुओं को एक साथ लाना आवश्यक है। उनकी अपील से यह साफ होता है कि स्थानीय भाषाओं और संस्कृतियों का संरक्षण करना समय की आवश्यकता है।
NationPress
29/12/2025

Frequently Asked Questions

ओलचिकी लिपि क्या है?
ओलचिकी लिपि संथाली भाषा की लिखाई के लिए प्रयोग की जाने वाली एक लिपि है, जो पंडित रघुनाथ मुर्मू द्वारा विकसित की गई थी।
इस समारोह का महत्व क्या है?
यह समारोह संथाली भाषा और संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन का प्रतीक है। राष्ट्रपति का संबोधन इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
समारोह में किसने भाग लिया?
समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, राज्यपाल संतोष गंगवार और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भाग लिया।
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