क्या आरएसएस संविधान और लोकतंत्र के लिए खतरा है?: डी. राजा

सारांश
Key Takeaways
- आरएसएस और भाजपा पर गंभीर आरोप
- भारत की विविधता का महत्व
- धर्मनिरपेक्षता की रक्षा का संकल्प
- कांग्रेस पार्टी के आंतरिक मामलों का ध्यान
- मणिपुर जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता
नई दिल्ली, 1 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के महासचिव डी. राजा ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि यह देश के संविधान और संसदीय लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न कर रहा है।
राष्ट्र प्रेस से विशेष बातचीत में डी. राजा ने कहा कि हमारा संविधान परिभाषित करता है कि भारत को एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में रहना चाहिए। हमारा संविधान यह भी कहता है कि भारतीय राज्य को एक कल्याणकारी राज्य होना चाहिए। भारत, जो राज्यों का संघ है, में विविधताओं की मान्यता होनी चाहिए और राज्य सरकारों के अधिकारों की भी मान्यता होनी चाहिए। लेकिन भाजपा-आरएसएस के लोग एक मध्ययुगीन सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था को थोपने की कोशिश कर रहे हैं।
उन्होंने आगे कहा कि वे भारत को विविधताओं वाला देश मानने से इनकार करते हैं। हमारी विविधताएं हमारे देश का गौरव हैं। आरएसएस और भाजपा के लोग हमारे देश की संस्कृति और इतिहास को नहीं समझते हैं। हमारी पार्टी और अन्य धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक दल भाजपा-आरएसएस के खिलाफ मजबूती से लड़ रहे हैं। हमारा उद्देश्य सभी धर्मनिरपेक्ष दलों को एकजुट करना और भाजपा को हराकर देश और संविधान की रक्षा करना है।
कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बदलाव की अटकलों पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि इस मामले में अंतिम फैसला पार्टी हाईकमान को लेना है और कोई भी व्यक्ति बेवजह विवाद या भ्रम न फैलाए। इस सियासी घटनाक्रम पर डी. राजा ने कहा कि सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री के रूप में बनाए रखने या बदलने का निर्णय कांग्रेस पार्टी को करना है। यह उनका आंतरिक मामला है। हमें इस पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। लेकिन, कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है। उन्हें यह जानना चाहिए कि क्या करना है, क्या नहीं करना है।
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए डी. राजा ने कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सवाल पूछना चाहिए कि वे दुनिया भर की यात्रा कर सकते हैं, लेकिन मणिपुर क्यों नहीं जा सकते। उन्हें बेवजह बातों को तूल देने के बजाय मुद्दों की बात करनी चाहिए और विकास के कामों को प्राथमिकता देनी चाहिए।