क्या साल 2014 के बाद से आरटीआई अधिनियम कमजोर हुआ है?

सारांश
Key Takeaways
- आरटीआई अधिनियम की पारदर्शिता और जवाबदेही में कमी आई है।
- केंद्र सरकार द्वारा किए गए संशोधन ने अधिकारों को सीमित किया है।
- लोकतंत्र की पारदर्शिता को बनाए रखना आवश्यक है।
- जानकारी के अधिकार का उपयोग नागरिकों का अधिकार है।
- सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्ट्रोरल बॉन्ड से संबंधित जानकारी को उजागर करने का आदेश दिया।
रांची, 12 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। झारखंड कांग्रेस के अध्यक्ष केशव महतो कमलेश ने केंद्र की भाजपा सरकार पर लोकतंत्र की पारदर्शिता को कमजोर करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि 2014 के पश्चात से देश में सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम लगातार कमजोर होता जा रहा है, जिससे शासन व्यवस्था की जवाबदेही और पारदर्शिता पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।
कांग्रेस भवन में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कमलेश ने कहा कि डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार और सोनिया गांधी के मार्गदर्शन में ऐतिहासिक सूचना का अधिकार अधिनियम लागू किया गया था, ताकि आम नागरिकों को सरकारी संस्थानों में मौजूद सूचनाओं तक सहज पहुंच मिल सके और शासन प्रणाली पारदर्शी और जवाबदेह बन सके।
उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा 2019 में किए गए संशोधन ने इस स्वतंत्रता को गंभीर रूप से कमजोर कर दिया है। पहले सूचना आयुक्त का कार्यकाल पांच वर्ष तय था और उनकी सेवा शर्तें सुरक्षित थीं, लेकिन संशोधन के बाद इन शर्तों को तय करने का अधिकार केंद्र सरकार को दे दिया गया, जिससे कार्यपालिका का प्रभाव बढ़ा है।
कमलेश ने आगे कहा कि 2023 में पारित डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन अधिनियम (डीपीडीपी एक्ट) ने भी सूचना के अधिकार को सीमित कर दिया है। अब व्यक्तिगत जानकारी को जनहित में प्रकट नहीं किया जा सकता, जिससे सार्वजनिक धन के उपयोग या सार्वजनिक कर्तव्यों से जुड़ी जानकारियां छिपाई जा सकती हैं। पहले इन्हीं प्रावधानों के माध्यम से एमपीएलडी फंड, मनरेगा लाभार्थी और राजनीतिक फंडिंग जैसी गड़बड़ियां उजागर हुई थीं।
कांग्रेस अध्यक्ष ने बताया कि केंद्रीय सूचना आयोग में 11 स्वीकृत पदों में से केवल दो आयुक्त कार्यरत हैं, जबकि नवंबर 2024 तक लगभग 23,000 मामले लंबित हैं। आरटीआई के माध्यम से प्रधानमंत्री के विदेशी दौरों पर हुए खर्च, कोविड काल में ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों की संख्या और पीएम केयर फंड के उपयोग से जुड़ी सूचनाओं मांगने पर कोई जवाब नहीं दिया गया। यहां तक कि इलेक्ट्रोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारी भी सार्वजनिक नहीं की गई थी, जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से उजागर करना पड़ा।