क्या सनातन परंपरा नहीं होती तो हिंदू धर्म अस्तित्व में नहीं होता? : संजय निरुपम

सारांश
Key Takeaways
- सनातन परंपरा का हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान है।
- संजय निरुपम ने अपमान पर चिंता व्यक्त की है।
- राजनीतिक दृष्टिकोण से भगवा आतंकवाद का नैरेटिव विवादास्पद रहा है।
मुंबई, 4 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। एनसीपी (एसपी) के नेता जितेंद्र आव्हाड द्वारा सनातन पर की गई टिप्पणी पर विवाद बढ़ रहा है। इस पर शिवसेना के प्रवक्ता संजय निरुपम ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यदि सनातन परंपरा नहीं होती, तो हिंदू धर्म का अस्तित्व नहीं होता।
संजय निरुपम ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत के दौरान कहा कि सनातन धर्म ने हिंदू धर्म को नष्ट नहीं किया है। अगर सनातन परंपरा के लोग नहीं होते, तो आज हमारे देश में हिंदू धर्म नहीं होता। हिंदू धर्म भारत की संस्कृति और सनातन परंपरा का अभिन्न हिस्सा है।
उन्होंने कहा कि जितेंद्र आव्हाड जैसे नेता सनातन धर्म का अपमान कर रहे हैं, जो बेहद दुःखद है। भारत पर हजार वर्षों तक आक्रमण होते रहे, जहाँ धर्म परिवर्तन और धार्मिक विस्तार की कोशिशें की गईं। इस्लाम और ईसाई धर्म के विस्तार के बावजूद हिंदुस्तान की सनातन परंपरा जीवित रही, क्योंकि इस देश ने अपनी मर्यादा और संस्कृति को संरक्षित रखा है। सनातन धर्म कोई नया विचार नहीं है, बल्कि यह हजारों वर्षों से चली आ रही परंपरा है। सच्चाई यह है कि सनातन धर्म के अनुयायियों ने देश में हिंदू व्यवस्था और हिंदू धर्म की रक्षा के लिए अपना सबकुछ बलिदान कर दिया।
निरुपम ने कहा कि कांग्रेस ने सत्ता में रहते हुए आरएसएस और भाजपा को बदनाम करने के लिए 'भगवा आतंकवाद' जैसे शब्दों का उपयोग किया। मालेगांव विस्फोट मामले में आरएसएस और भाजपा से जुड़े निर्दोष लोगों को षड्यंत्र के तहत फंसाया गया। अब 17 साल बाद एनआईए कोर्ट ने सभी को निर्दोष ठहराया है। यह साबित करता है कि भगवा आतंकवाद का नैरेटिव पूरी तरह से राजनीतिक था। इसके लिए कांग्रेस को देश से माफी मांगनी चाहिए।
निरुपम ने आगे कहा कि साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर सही कहती हैं कि आतंकवाद का कोई धर्म या रंग नहीं होता। कांग्रेस ने भगवा को बदनाम किया, जिसे देश पूजता है। अब यही बात उनके लिए शर्मनाक साबित हो रही है।