क्या सरस्वती देवी भारत की पहली पेशेवर महिला संगीतकार थीं? जानें उनके अद्भुत योगदान के बारे में।

सारांश
Key Takeaways
- सरस्वती देवी का असली नाम खुर्शीद मांचेरशेर मिनोचेर होमजी था।
- उन्होंने 1935 में 'जवानी की हवा' से करियर की शुरुआत की।
- उनका सबसे प्रसिद्ध गाना 'मैं बन की चिड़िया बन के बन-बन बोलूं रे' था।
- उन्होंने नॉन-सिंगर्स के साथ हिट गाने बनाए।
- सरस्वती देवी का योगदान सिनेमा में अनमोल है।
मुंबई, 9 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। सिनेमा के इतिहास में महिलाओं के योगदान को कम ही याद किया जाता है। कई ऐसी महिलाएं हैं जिन्होंने फिल्मों में महत्वपूर्ण योगदान दिया, लेकिन समय के साथ वे भुला दी गईं। इसलिए, उनके इतिहास को संजोना और उन्हें सेलिब्रेट करना आवश्यक है ताकि उनकी धरोहर सदियों तक जीवित रहे। ऐसी ही एक अद्भुत शख्सियत थीं सरस्वती देवी, जिन्होंने हिंदी सिनेमा में कमाल की धुनों का योगदान दिया, लेकिन उन्होंने जो किया उसका प्रचार नहीं किया। बॉलीवुड की यह पहली पेशेवर महिला संगीतकार थीं, जिन्होंने अपने काम को गुप्त रखा।
सरस्वती देवी का जन्म 1912 में एक पारसी परिवार में हुआ था, और उनका असली नाम खुर्शीद मांचेरशेर मिनोचेर होमजी था। वे एक प्रशिक्षित क्लासिकल सिंगर थीं। उन्होंने 30 और 40 के दशक में बॉम्बे टॉकीज की कई फिल्मों में शानदार संगीत दिया। उनका करियर 1935 में 'जवानी की हवा' से शुरू हुआ। इसके बाद उन्होंने अछूत कन्या, कंगन, बंधन और झूला जैसी फिल्मों के लिए म्यूजिक कंपोज किया। पंकज राग ने अपनी किताब 'धुनों की यात्रा' में उनके सफर के बारे में लिखा है।
दिलचस्प बात यह है कि हिट फिल्मों में संगीत देने वाली इस प्रतिभा को अपना नाम छुपाकर काम करना पड़ा। उन्होंने अपने खानदान की पहचान छुपाने के लिए अपना नाम सरस्वती रखा। उस समय, पारसी परिवारों में महिलाओं को अपने हुनर दिखाने की अनुमति नहीं थी।
सरस्वती देवी की यात्रा बॉम्बे टॉकीज के मालिक हिमांशु राय के साथ शुरू हुई, जिन्होंने उन्हें एक कार्यक्रम में गाते हुए सुना था और तुरंत उन्हें म्यूजिक डायरेक्टर बनने का मौका दिया।
हालांकि, उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती नॉन-सिंगर को सिंगर बनाना था। उन्हें के एल सहगल और कानन देवी जैसे प्रतिस्पर्धियों का सामना करना पड़ा।
सरस्वती देवी की सबसे बड़ी सफलता यह थी कि उन्होंने नॉन-सिंगर-एक्टर्स के साथ हिट गाने बनाए, जैसे 'मन भावन लो सावन आया रे' और 'झूले के संग झूलो झूलो मेरे मन'।
उनका सबसे हिट गाना 'मैं बन की चिड़िया बन के बन-बन बोलूं रे' था, जिसमें अशोक कुमार और देविका रानी थे, और इसे पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी सराहा था।
1950 में, वे बॉम्बे टॉकीज से अलग हुईं और दो गज़लें बनाई, जो हिट रहीं।
9 अगस्त 1980 को उनका निधन हो गया, लेकिन उन्होंने अपने पीछे एक समृद्ध विरासत छोड़ गईं। उनका संगीत आज भी ताजा लगता है।
-राष्ट्र प्रेस
जेपी/केआर