क्या दो साहित्य के सितारों सरदार अंजुम और शेरी भोपाली की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करना जरूरी है?

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क्या दो साहित्य के सितारों सरदार अंजुम और शेरी भोपाली की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करना जरूरी है?

सारांश

क्या आप जानते हैं कि 9 जुलाई को दो महान शायर सरदार अंजुम और शेरी भोपाली की पुण्यतिथि है? इस दिन हम उन्हें याद कर उनकी रचनाओं को पुनः जीते हैं, जो आज भी हमारे दिलों में जीवित हैं। आइए, जानते हैं उनकी शायरी की गहराइयों और उनके योगदान के बारे में।

Key Takeaways

  • सरदार अंजुम और शेरी भोपाली की शायरी आज भी जीवित है।
  • इनकी रचनाओं में इंसानियत और मोहब्बत की गहराई है।
  • 9 जुलाई को उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें याद करना हमारे लिए महत्वपूर्ण है।

नई दिल्ली, 8 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। हिंदी-उर्दू साहित्य की दुनिया में 9 जुलाई की तारीख एक विशेष महत्व रखती है। यह दिन साहित्यप्रेमियों के लिए ग़म और श्रद्धांजलि का प्रतीक है। इस दिन, दो महान शायर, सरदार अंजुम और शेरी भोपाली ने इस दुनिया को अलविदा कहा था। उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए, ऐसा लगता है जैसे उनकी रचनाएं आज भी महफिलों में गूंज रही हैं और दिलों में गहराई से उतरती जा रही हैं।

'चलो बांट लेते हैं अपनी सजाएं, न तुम याद आओ न हम याद आएं', 'सभी ने लगाया है चेहरे पे चेहरा, किसे याद रक्खें किसे भूल जाएं'। सरदार अंजुम का यह शेर आज भी लोगों की जुबां पर है। उनका निधन 9 जुलाई 2015 को हुआ। वह उर्दू साहित्य के ऐसे सितारे थे जिन्होंने शायरी को केवल शब्दों की सुंदरता तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे समाज सुधार और अंतर्राष्ट्रीय संवाद का माध्यम भी बनाया। उन्हें पद्म श्री (1991) और पद्म भूषण (2005) जैसे सम्मान प्राप्त हुए।

हरियाणा के पंचकुला से संबंधित सरदार अंजुम ने पंजाब विश्वविद्यालय में उर्दू विभाग के प्रमुख के रूप में काम किया और पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला में चांसलर के रूप में कार्य किया। उनकी फिल्म 'करजदार' ने भारत-पाक संबंधों को मानवीय दृष्टिकोण से जोड़ने का प्रयास किया। हिलेरी क्लिंटन ने भी उन्हें 'मिलेनियम पीस अवॉर्ड' से नवाजा, जो वैश्विक समझ और शांति में उनके योगदान का प्रमाण है।

उनके शेर आज भी जीवन की सच्चाइयों को नाजुकता के साथ व्यक्त करते हैं। "चलो बांट लेते हैं अपनी सज़ाएं, न तुम याद आओ न हम याद आएं..."

सरदार अंजुम की तरह, शेरी भोपाली भी सरलता में गंभीरता का प्रतीक थे। उनका असली नाम मोहम्मद असगर खान था, वे उर्दू शायरी के ऐसे चिराग थे जिनकी रौशनी भोपाल से निकलकर पूरे देश में फैली। उनका निधन 9 जुलाई 1991 को हुआ, लेकिन उनकी शायरी आज भी मुशायरों की जान और दिलों को सुकून देती है। उनकी शायरी की ताकत थी- जबान की सफाई, बयान की सरलता और एक तरन्नुम की मिठास, जो सीधे दिल में उतरती है।

शेरी का मानना था कि शायरी का असली रंग दिल्ली की हवा में है। उनकी प्रकाशित गज़ल संग्रह 'शब-ए-गज़ल' आज भी उर्दू अदब की पहचान है। उनके शेर न केवल मोहब्बत, बल्कि इंसानियत और दर्शन की गहराइयों को भी छूते हैं। "अभी तो दिल में हल्की सी खलिश महसूस होती है, बहुत मुमकिन है कल इसका मोहब्बत नाम हो जाए..."

सरदार अंजुम और शेरी भोपाली दोनों ने अपनी लेखनी में इंसानियत, मोहब्बत और अदब को जीवित रखा। एक ओर, जहां अंजुम ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उर्दू की आवाज को बुलंद किया, वहीं शेरी ने मोहब्बत को शब्दों की आत्मा बना दिया। आज, जब साहित्य का रूप डिजिटल और व्यावसायिकता की ओर बढ़ रहा है, ऐसे समय में इन दोनों शायरों की शायरी रूह की आवाज बनकर लोगों को अपने अंदर झांकने का अवसर देती है। 9 जुलाई को हम केवल दो शायरों को नहीं, बल्कि दो युग, दो सोच और दो आत्मिक सुरों को याद करते हैं।

Point of View

मैं मानता हूँ कि सरदार अंजुम और शेरी भोपाली जैसे शायरों ने साहित्य को एक नई दिशा दी है। उनकी रचनाएं न केवल हमारे समाज को जागरूक करती हैं, बल्कि हमारे दिलों में भी एक गहरी छाप छोड़ती हैं। हमें उनकी याद में आगे बढ़ना चाहिए।
NationPress
04/08/2025

Frequently Asked Questions

सरदार अंजुम और शेरी भोपाली की शायरी की खासियत क्या है?
उनकी शायरी में इंसानियत, मोहब्बत और सामाजिक मुद्दों को उठाने की क्षमता है।
बिना पढ़े उनकी रचनाओं को कैसे समझा जा सकता है?
उनकी रचनाएं सरल और स्पष्ट होती हैं, जो सीधे दिल में उतरती हैं।