क्या शुभांशु शुक्ला का अनुभव भारत के भविष्य के स्पेस मिशन के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा?

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क्या शुभांशु शुक्ला का अनुभव भारत के भविष्य के स्पेस मिशन के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा?

सारांश

भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला का आईएसएस मिशन एक नया अध्याय है। डॉ. मिला मित्रा ने इस मिशन के महत्व और भविष्य के स्पेस परियोजनाओं में इसके योगदान की चर्चा की। यह अनुभव भारत के नए अंतरिक्ष मिशनों के लिए एक मजबूत आधार तैयार कर सकता है।

Key Takeaways

  • शुभांशु शुक्ला का आईएसएस पर अनुभव भविष्य के मिशनों के लिए महत्वपूर्ण है।
  • यह गगनयान मिशन के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
  • अंतरिक्ष में अनुसंधान के लिए इसरो के प्रयोग महत्वपूर्ण हैं।
  • मिशन ने विभिन्न देशों के सहयोग को बढ़ावा दिया।
  • शून्य गुरुत्वाकर्षण में रहने के प्रभावों का अध्ययन आवश्यक है।

नई दिल्ली, 15 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला आज अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) से सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर लौट आए हैं। इस अवसर पर, नासा की पूर्व वैज्ञानिक डॉ. मिला मित्रा ने समाचार एजेंसी राष्ट्र प्रेस के साथ बातचीत में इस मिशन के महत्व और चुनौतियों को उजागर किया।

मिशन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए डॉ. मित्रा ने बताया कि एक्सिओम-4 मिशन भारत के लिए विशेष है, क्योंकि यह पहली बार है जब कोई भारतीय अंतरिक्ष यात्री अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (आईएसएस) पर गया और वहां 60 प्रयोगों में भाग लिया। इनमें से 7 प्रयोग इसरो द्वारा डिजाइन किए गए थे, जो सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में संपन्न हुए। इन प्रयोगों में मूंग और मेथी जैसी फसलों का अंतरिक्ष में विकास, मानव शरीर पर शून्य गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव, और मानव-कंप्यूटर इंटरफेस का अध्ययन शामिल था। ये प्रयोग भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों जैसे गगनयान और लंबी अवधि के अंतरिक्ष स्टेशन मिशनों के लिए महत्वपूर्ण डेटा प्रदान करेंगे।

डॉ. मित्रा ने कहा, "यह मिशन विभिन्न देशों को एक साथ लाने का एक अद्भुत उदाहरण है। यह सहयोग न केवल वैज्ञानिक खोजों को बढ़ावा देता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय एकता को भी दर्शाता है।"

उन्होंने बताया कि लंबे समय तक शून्य गुरुत्वाकर्षण में रहने से मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं, हृदय की धड़कन बदल जाती है और रक्त का प्रवाह असामान्य हो जाता है, जिससे दृष्टि संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। इसके अतिरिक्त, प्रतिरक्षा प्रणाली भी कमजोर पड़ती है। इन प्रभावों को सुधारने के लिए, शुभांशु और उनके सहयोगियों को पृथ्वी पर लौटने के बाद 2 हफ्ते से 1 महीने तक पुनर्वास से गुजरना होगा। शून्य गुरुत्वाकर्षण के बाद तुरंत चलना कठिन होता है। इसके बाद, उन्हें पुनर्वास केंद्र में भेजा जाएगा, जहां उनकी मांसपेशियों, दृष्टि और प्रतिरक्षा प्रणाली को पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के अनुकूल बनाने के लिए चिकित्सीय प्रक्रियाएं की जाएंगी।

डॉ. मित्रा ने कहा, "शुभांशु का आईएसएस पर अनुभव गगनयान मिशन के लिए अत्यंत मूल्यवान है। वे अब जानते हैं कि अंतरिक्ष में कैसे रहना है, कैसे कार्य करना है और वापसी की प्रक्रिया क्या है।"

उन्होंने इस मिशन को भारत के लिए गर्व का क्षण बताया और कहा, "शुभांशु शुक्ला न केवल पहले भारतीय हैं जिन्होंने आईएसएस पर कदम रखा, बल्कि वे गगनयान जैसे भविष्य के मिशनों के लिए भी प्रेरणा बने हैं।"

Point of View

बल्कि यह वैश्विक सहयोग और वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए भी एक नया अवसर प्रस्तुत करता है। शुभांशु शुक्ला का अनुभव गगनयान जैसे भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिए आवश्यक डेटा और ज्ञान प्रदान करेगा।
NationPress
23/07/2025

Frequently Asked Questions

एक्सिओम-4 मिशन का महत्व क्या है?
यह मिशन भारत का पहला अंतरिक्ष मिशन है जिसमें एक भारतीय अंतरिक्ष यात्री ने आईएसएस पर 60 प्रयोगों में भाग लिया।
डॉ. मिला मित्रा का क्या कहना है?
डॉ. मित्रा ने इस मिशन को वैश्विक सहयोग का उदाहरण बताते हुए कहा कि यह वैज्ञानिक खोजों को बढ़ावा देता है।
शुभांशु शुक्ला को पृथ्वी पर लौटने के बाद क्या करना होगा?
उन्हें 2 हफ्ते से 1 महीने तक पुनर्वास से गुजरना होगा, ताकि उनकी मांसपेशियां और प्रतिरक्षा प्रणाली सामान्य हो सकें।