क्या हैप्पी बर्थडे सुधा मूर्ति ने महिलाओं के लिए शिक्षा और रोजगार की मांग उठाई?

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क्या हैप्पी बर्थडे सुधा मूर्ति ने महिलाओं के लिए शिक्षा और रोजगार की मांग उठाई?

सारांश

सुधा मूर्ति, टाटा मोटर्स की पहली महिला इंजीनियर, जिन्होंने शिक्षा और रोजगार के लिए संघर्ष किया। उनकी यात्रा ने न केवल उनके जीवन को बदला, बल्कि समाज में भी एक नई चेतना जगाई। जानिए उनके अद्वितीय योगदान और प्रेरणादायक कहानी।

Key Takeaways

  • सुधा मूर्ति ने शिक्षा और रोजगार के लिए महिलाओं के अधिकारों की आवाज उठाई।
  • उन्होंने टाटा मोटर्स में पहली महिला इंजीनियर बनकर इतिहास रचा।
  • उनकी लेखनी ने समाज में मूल्यों को स्थापित करने में मदद की।
  • सुधा के कार्यों को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
  • उनकी कहानियां जीवन के अनुभवों और पौराणिक कथाओं से प्रेरित हैं।

नई दिल्ली, 18 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। सुधा मूर्ति, जिन्हें टाटा मोटर्स की पहली महिला इंजीनियर के रूप में जाना जाता है, कर्नाटक के हुबली-धारवाड़ स्थित इंजीनियरिंग कॉलेज में अपनी कक्षा की एकमात्र छात्रा थीं। मूर्ति ने भेदभाव और पूर्वाग्रहों को पार करते हुए कर्नाटक के सभी इंजीनियरिंग विश्वविद्यालयों में उत्कृष्ट अंक प्राप्त करने के लिए इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स, इंडिया से स्वर्ण पदक और कर्नाटक के मुख्यमंत्री से रजत पदक हासिल किया। इसके बावजूद, उन्हें टाटा मोटर्स में नौकरी पाने के लिए एक साहसिक कदम उठाना पड़ा।

उन्होंने आईआईएससी के स्नातकों के लिए आमंत्रण के जवाब में आवेदन किया, जबकि उस पर्चे पर साफ लिखा था कि महिला उम्मीदवारों को आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है। इसके बावजूद, मूर्ति ने साहस दिखाते हुए आवेदन किया और सीधे जेआरडी टाटा को पत्र लिखा।

इस पत्र में उन्होंने समूह को रसायन, इंजन और लौह-इस्पात उद्योग में अग्रणी मानते हुए महिलाओं को आगे बढ़ने के अवसर देने की अपील की। उन्होंने लिखा कि यदि महिलाओं को शिक्षा और रोजगार के अवसर नहीं मिलेंगे, तो समाज और देश कभी तरक्की नहीं कर पाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि टेल्को, पुणे में महिला छात्रों को नौकरी के लिए आवेदन करने की अनुमति न देना कंपनी की एक बड़ी भूल है।

19 अगस्त, 1950 को उत्तरी कर्नाटक के शिगगांव में जन्मी सुधा मूर्ति अपने दादा-दादी से महाभारत और रामायण की कहानियां सुनकर बड़ी हुईं। आज मूर्ति की पहचान एक लेखिका, समाजसेवी, शिक्षिका, इंजीनियर और वक्ता के रूप में होती है। उन्होंने 40 से अधिक किताबें लिखी हैं, जिनमें 'थ्री थाउजेड स्टिचेज', 'डॉलर बहू' और 'वाइज एंड अदरवाइज' शामिल हैं।

सुधा मूर्ति बच्चों और बड़ों के लिए विभिन्न विधाओं में लिखती हैं, जैसे उपन्यास, लघुकथाएं और यात्रा वृत्तांत। उनकी कहानियां जीवन के अनुभवों और यात्राओं से प्रेरित होती हैं। वह अक्सर पौराणिक कथाओं से प्रेरणा लेती हैं, जिससे युवा पाठकों को मूल्यों और सिद्धांतों को समझने में मदद मिलती है।

सुधा मूर्ति के साहित्यिक कार्यों को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें 2023 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 2006 में आर.के. नारायण पुरस्कार और 2020 में लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय पुरस्कार शामिल हैं। उन्हें भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों से साहित्य में दस मानद डॉक्टरेट की उपाधियां प्राप्त हैं।

मूर्ति एक घटना का जिक्र करती हैं, जब डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्हें फोन किया। उन्हें लगा कि यह गलती से किया गया फोन कॉल है, लेकिन राष्ट्रपति ने कहा कि वे अक्सर मूर्ति के लेख पढ़ते हैं।

Point of View

बल्कि यह समाज में महिलाओं के लिए शिक्षा और रोजगार की आवश्यकता की भी गहरी समझ देती है। यह एक महत्वपूर्ण संदेश है कि जब हम समान अवसरों की बात करते हैं, तो यह केवल एक व्यक्ति का मामला नहीं, बल्कि पूरे समाज को प्रभावित करता है।
NationPress
28/11/2025

Frequently Asked Questions

सुधा मूर्ति ने टाटा मोटर्स में पहली महिला इंजीनियर बनने के लिए क्या कदम उठाए?
सुधा मूर्ति ने टाटा मोटर्स में आवेदन किया, जबकि कंपनी ने महिला उम्मीदवारों के आवेदन को अस्वीकार किया था। उन्होंने साहसिकता से जेआरडी टाटा को पत्र लिखकर महिलाओं के लिए अवसरों की मांग की।
सुधा मूर्ति के प्रमुख साहित्यिक कार्य कौन से हैं?
सुधा मूर्ति ने 40 से अधिक किताबें लिखी हैं, जिनमें 'थ्री थाउजेड स्टिचेज', 'डॉलर बहू' और 'वाइज एंड अदरवाइज' शामिल हैं।
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