क्या सुप्रीम कोर्ट में एसआईआर पर सुनवाई में अभिषेक मनु सिंघवी ने ईसीआई की प्रक्रिया पर सवाल उठाए?

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क्या सुप्रीम कोर्ट में एसआईआर पर सुनवाई में अभिषेक मनु सिंघवी ने ईसीआई की प्रक्रिया पर सवाल उठाए?

सारांश

सुप्रीम कोर्ट में बिहार के मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण पर सुनवाई में अभिषेक मनु सिंघवी और एडीआर ने चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए। जानिए क्या है इसका असर लाखों मतदाताओं पर।

Key Takeaways

  • सुप्रीम कोर्ट में एसआईआर पर सुनवाई जारी है।
  • चुनाव आयोग की प्रक्रियाओं पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं।
  • 65 लाख मतदाता बिना सूचना के सूची से हटाए गए।
  • आयोग की कार्रवाई को प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन माना गया है।
  • मतदाता सूची एक बार स्थायी होने के बाद बदली नहीं जा सकती।

नई दिल्ली, 13 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को सुनवाई जारी रही। वकील अभिषेक मनु सिंघवी और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से वकील गोपाल शंकर नारायण ने चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए। दोनों ने आयोग के 24 जून 2025 के आदेश को 'मनमाना' और 'लाखों मतदाताओं को मताधिकार से वंचित करने वाला' करार दिया।

वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि चुनाव आयोग ने स्वीकार किया है कि बिहार में 65 लाख मतदाताओं के नाम बिना किसी सूचना, दस्तावेज या उचित प्रक्रिया के मतदाता सूची से हटा दिए गए।

उन्होंने बताया कि आयोग ने दावा किया कि इनमें से कई लाख लोग मृत हैं, कई लाख विस्थापित हैं, और कुछ लाख डुप्लिकेट हैं। लेकिन चौंकाने वाला खुलासा यह है कि कुछ लोग, जिन्हें मृत बताया गया, जीवित हैं और अदालत में पेश भी हुए; कल दो लोग इसी अदालत में पेश भी हुए थे। हालांकि, चुनाव आयोग के नाम हटाने के अधिकार को कोई चुनौती नहीं दे रहा है। यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। नाम हटाने की प्रक्रिया जटिल है और आयोग ने इसका पालन नहीं किया।

उन्होंने यह भी कहा कि अरुणाचल प्रदेश और महाराष्ट्र को इस प्रक्रिया से छूट दी गई, जबकि बिहार और अन्य राज्यों में इसे लागू किया गया। मैं यह नहीं कह रहा कि उन्हें बंगाल को कम समय देना चाहिए। मैं बस इतना कह रहा हूं कि एसआईआर के लिए बिहार को पर्याप्त समय देना चाहिए।

एडीआर की ओर से पेश गोपाल शंकर नारायण ने बिहार के साथ-साथ पश्चिम बंगाल में भी एसआईआर प्रक्रिया पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, "चुनाव आयोग पश्चिम बंगाल में भी बिना किसी परामर्श के प्रक्रिया शुरू कर रहा है। मतदाता सूची में शामिल होने का अधिकार संवैधानिक है, जो जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और 1951 के तहत सुरक्षित है।"

नारायण ने तर्क किया कि आयोग ने एक 'मनगढ़ंत दस्तावेज' की मांग करके 8 करोड़ लोगों पर बोझ डाला, जिसमें नागरिकता और माता-पिता की नागरिकता साबित करने की शर्तें शामिल हैं। यहां तक कि अगर मैं जेल में भी हूं, तो भी मुझे मतदाता सूची से नहीं हटाया जाएगा। संसद ने यह अधिकार सुरक्षित किया है।

नारायण ने सवाल किया कि क्या आयोग को 2003 की मतदाता सूची को आधार बनाकर इस तरह की कवायद करने का अधिकार है। उन्होंने इसे अभूतपूर्व और लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताया। उन्होंने कहा, "मतदाता सूची एक बार निर्धारित होने के बाद स्थायी होती है। आयोग इसे मनमाने ढंग से नहीं बदल सकता। अगर ऐसा होने दिया गया, तो इसका अंत कहां होगा? चुनाव आयोग ने बड़े पैमाने पर लोगों को मतदान से बाहर कर दिया है। मतदान मेरा एक अभिन्न अधिकार है। भारत को सबसे बड़ा लोकतंत्र होने पर गर्व है। क्या एक संरक्षक हमारे साथ इस तरह खिलवाड़ करेगा? चुनाव आयोग ऐसा नहीं कर सकता। उसे ऐसा करने की इजाजत किसने दी?"

Point of View

यह सुनवाई लोकतंत्र के अधिकारों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। चुनाव आयोग की प्रक्रियाएं पारदर्शी होनी चाहिए ताकि सभी मतदाता अपने अधिकारों का उपयोग कर सकें।
NationPress
23/08/2025

Frequently Asked Questions

क्या एसआईआर प्रक्रिया में कोई बदलाव संभव है?
हां, अगर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई में आयोग की प्रक्रियाएं असंवैधानिक पाई जाती हैं, तो बदलाव संभव है।
अभिषेक मनु सिंघवी का क्या कहना है?
उन्होंने चुनाव आयोग की प्रक्रिया को मनमाना और लाखों मतदाताओं को वंचित करने वाला बताया है।
क्या बिहार के अलावा अन्य राज्यों में भी यह समस्या है?
हाँ, पश्चिम बंगाल में भी इसी तरह की समस्याएँ सामने आई हैं।