क्या तमिलनाडु में चक्रवात से क्षतिग्रस्त फसलों के सर्वे में देरी ने किसानों की चिंताओं को बढ़ाया है?
सारांश
Key Takeaways
- किसानों की चिंताओं को समझना महत्वपूर्ण है।
- सरकार को जल्दी मुआवजे की प्रक्रिया को शुरू करना चाहिए।
- तेजी से सर्वेक्षण की प्रक्रिया को पूरा करने की आवश्यकता है।
- कृषि विभाग को कर्मचारियों की कमी को हल करना चाहिए।
- फसलों का नुकसान राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव डाल सकता है।
चेन्नई, 15 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। तमिलनाडु में मानसून और चक्रवात के कारण फसलों के सर्वेक्षण में देरी ने किसानों की चिंताएं बढ़ा दी हैं। फसलों के नुकसान का आकलन न होने से किसानों को मुआवजे और कृषि गतिविधियों को बढ़ाने के लिए इंतजार करना पड़ रहा है।
किसानों के लंबे विरोध प्रदर्शन के बाद, तमिलनाडु सरकार ने फसल के नुकसान का आकलन करने के लिए एक मोबाइल ऐप का इस्तेमाल कम करने का निर्णय लिया है। इसके बजाय, कुछ स्थानों पर मैनुअल सर्वे का विकल्प चुना गया है। किसान इस निर्णय का स्वागत कर रहे हैं, लेकिन उन्हें आशंका है कि यह आकलन समय पर पूरा होगा या नहीं और क्या मुआवजा बिना किसी देरी के जारी किया जाएगा।
किसानों का कहना है कि आकलन की गति धीमी और असमान बनी हुई है। कई किसान प्रक्रिया पूरी होने से पहले अपनी ज़मीनों पर दोबारा काम शुरू करने को तैयार नहीं हैं। उन्हें डर है कि इससे नुकसान के वेरिफिकेशन और मुआवजे की पात्रता पर प्रभाव पड़ेगा।
कर्मचारियों की कमी ने समस्या को और बढ़ा दिया है। आकलन के लिए जिम्मेदार सहायक कृषि अधिकारियों को कई राजस्व गांवों का काम सौंपा गया है, जिससे सर्वेक्षण जल्दी और सही तरीके से पूरा करना मुश्किल हो गया है। किसान कहते हैं कि प्रति अधिकारी काम का बोझ अवास्तविक है।
किसानों ने बताया कि नागपट्टिनम, तिरुवरूर, मयिलादुथुराई, तंजावुर और पुडुकोट्टई जैसे कई क्षेत्रों में काफी नुकसान हुआ है। नागपट्टिनम सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है, जहां 36 घंटे के भीतर लगभग 300 मिमी बारिश हुई।
डेल्टा जिलों में भारी बारिश ने सांबा और थलाडी की खेती को भारी नुकसान पहुँचाया, जिससे लगभग 90 हजार हेक्टेयर (यानी करीब 2.22 लाख एकड़) फसलें डूब गईं। कई इलाकों में बारिश के बाद एक हफ्ते से ज्यादा समय तक पानी जमा रहा, जिससे बड़े पैमाने पर फसलें खराब हो गईं।
सरकार ने अक्टूबर के आखिरी हफ्ते में एक अपग्रेडेड ऐप-आधारित जीपीएस वेरिफिकेशन सिस्टम का इस्तेमाल करके फसल के नुकसान के आकलन का आदेश दिया था। हालांकि, नेटवर्क फेलियर जैसी तकनीकी समस्याओं और जमीनी स्तर पर व्यावहारिक कठिनाइयों ने प्रक्रिया को काफी धीमा कर दिया।
देरी के कारण डेल्टा के किसानों ने जीपीएस वेरिफिकेशन की बजाय पारंपरिक सिस्टम पर लौटने की मांग की। उन्होंने कहा कि यह नया तरीका आपदा की स्थिति में उपयुक्त नहीं था। लगातार विरोध प्रदर्शनों के बाद सरकार मैनुअल सर्वे पर लौट आई, लेकिन हर जिले में कम से कम 10 प्रतिशत ऐप-आधारित वेरिफिकेशन को अनिवार्य रखा गया।
हालांकि, राज्य के कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि अब इस प्रक्रिया में तेजी लाने के प्रयास जारी हैं। कर्मचारियों की कमी को दूर करने के लिए नॉन-डेल्टा जिलों से अतिरिक्त सहायक कृषि अधिकारियों को तैनात किया गया है।
अधिकारियों का कहना है कि सर्वेक्षण का एक बड़ा हिस्सा पूरा हो चुका है और बाकी काम जल्द पूरा होने की उम्मीद है, जिसके बाद मुआवजे की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी और फिर किसान अपने खेतों को अगले कृषि चक्र के लिए तैयार कर सकेंगे।