क्या उत्तराखंड में हरेला पर्व बन गया है हरित क्रांति का उत्सव, 8 लाख 13 हजार से अधिक पौधारोपण हुआ?

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क्या उत्तराखंड में हरेला पर्व बन गया है हरित क्रांति का उत्सव, 8 लाख 13 हजार से अधिक पौधारोपण हुआ?

सारांश

उत्तराखंड का हरेला पर्व अब केवल एक परंपरागत आयोजन नहीं रहा, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण और जनभागीदारी का एक सशक्त अभियान बन चुका है। इस वर्ष 8 लाख 13 हजार से अधिक पौधों का रोपण हुआ है, जो कि एक नई हरित क्रांति का प्रतीक है। जानिए इस पर्व के महत्व और प्रभाव के बारे में।

Key Takeaways

  • हरेला पर्व अब केवल सांस्कृतिक पर्व नहीं बल्कि एक जन आंदोलन बन चुका है।
  • 8 लाख 13 हजार पौधों का रोपण उत्तराखंड में सबसे बड़ा प्रयास है।
  • यह पर्व प्रकृति के प्रति आस्था और उत्तरदायित्व का प्रतीक है।
  • मुख्यमंत्री ने हरित विकास की आवश्यकता पर बल दिया।
  • आने वाले वर्षों में बीज पर्यावरण-संवेदनशील उत्तराखंड के निर्माण में सहायक होंगे।

देहरादून, 16 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान और प्रकृति से जुड़ाव को प्रदर्शित करने वाला हरेला पर्व अब केवल एक परंपरागत उत्सव नहीं रहा, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण और जनभागीदारी का एक सशक्त अभियान बन चुका है। इस वर्ष हरेला पर्व पर पूरे उत्तराखंड में एक नया इतिहास रचा गया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रेरणा से आरंभ किए गए 'एक पेड़ मां के नाम' अभियान को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने और विस्तारित करते हुए इसे ‘हरेला का त्योहार मनाओ, धरती मां का ऋण चुकाओ’ जैसे सार्थक जनसंदेश से जोड़ा।

मुख्यमंत्री धामी ने देहरादून में स्वयं पौधारोपण कर इस अभियान की शुरुआत की और इसे केवल एक सरकारी कार्यक्रम के बजाय जन-जन की भागीदारी वाला हरित जनांदोलन बना दिया। राज्य के सभी 13 जिलों के गांवों, कस्बों, शहरों और स्कूलों में हजारों स्थानों पर पौधारोपण कार्यक्रम आयोजित किए गए। स्थानीय प्रशासन, वन विभाग, स्वयंसेवी संगठनों, स्कूलों, आंगनबाड़ी केंद्रों, महिला समूहों और युवाओं ने पूरे उत्साह के साथ भागीदारी की। अब तक पूरे राज्य में 8 लाख 13 हजार से अधिक पौधे रोपे जा चुके हैं, जो कि किसी एक पर्व के अवसर पर उत्तराखंड में अब तक का सबसे बड़ा पौधारोपण प्रयास है। यह केवल वृक्षारोपण का कार्यक्रम नहीं, बल्कि यह एक ऐसी पहल है जो प्रदेशवासियों में प्रकृति के प्रति आस्था, उत्तरदायित्व और संरक्षण की भावना को और गहरा कर रही है।

मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि यह पर्व दर्शाता है कि उत्तराखंड केवल एक हिमालयी राज्य नहीं है, बल्कि जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए जागरूक और सक्रिय समाज का प्रतीक है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि राज्य सरकार विकास और आस्था, दोनों के संतुलन के साथ आगे बढ़ रही है और पर्यावरण संरक्षण सरकार की प्राथमिक नीति का अभिन्न हिस्सा है।

मुख्यमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि हरेला पर्व अब केवल सांस्कृतिक पर्व नहीं रह गया है, बल्कि यह प्रदेशवासियों की सामूहिक चेतना का उत्सव बन गया है। पौधों के रूप में जो बीज धरती में रोपे जा रहे हैं, वे हरियाली, उम्मीद, आस्था और सतत विकास के प्रतीक हैं। आने वाले वर्षों में यही बीज एक हरित, समृद्ध और पर्यावरण-संवेदनशील उत्तराखंड के निर्माण में आधार बनेंगे।

Point of View

बल्कि यह पारिस्थितिकी के प्रति जागरूकता और जनभागीदारी का एक उत्कृष्ट उदाहरण भी प्रस्तुत करता है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि कैसे सामूहिक प्रयास से हम अपने पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं।
NationPress
21/07/2025

Frequently Asked Questions

हरेला पर्व का महत्व क्या है?
हरेला पर्व पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति से जुड़ाव का प्रतीक है। यह पौधारोपण के माध्यम से लोगों को प्रकृति के प्रति जागरूक करता है।
इस वर्ष कितने पौधों का रोपण हुआ?
इस वर्ष उत्तराखंड में 8 लाख 13 हजार से अधिक पौधों का रोपण किया गया है।
मुख्यमंत्री धामी का इस पर्व के प्रति क्या दृष्टिकोण है?
मुख्यमंत्री धामी ने इसे जनभागीदारी वाला हरित जनांदोलन बताया है और इसे विकास और आस्था के संतुलन के साथ आगे बढ़ाने की आवश्यकता बताई है।