क्या वंदे मातरम पर बंटवारा मुसलमानों ने नहीं किया?: ए राजा

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क्या वंदे मातरम पर बंटवारा मुसलमानों ने नहीं किया?: ए राजा

सारांश

डीएमके सांसद ए राजा ने संसद में वंदे मातरम की ऐतिहासिकता पर चर्चा की। उन्होंने नेहरू-बोस के पत्र का उल्लेख करते हुए कहा कि वंदे मातरम का विरोध कहीं अधिक जटिल है। क्या यह राजनीतिक मुद्दा है या ऐतिहासिक वास्तविकता, जानिए इस दिलचस्प बहस में।

Key Takeaways

  • ए राजा ने वंदे मातरम की ऐतिहासिकता को उजागर किया।
  • नेहरू-बोस के पत्र ने विरोध के कारणों को स्पष्ट किया।
  • वंदे मातरम का मतलब आजादी की लड़ाई से जुड़ा है।
  • राजनीतिक कहानी के बजाय ऐतिहासिक तथ्यों पर चर्चा की आवश्यकता है।
  • विभिन्न समुदायों की चिंताओं को समझना महत्वपूर्ण है।

चेन्नई, 8 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस) संसद में सोमवार को एक चौंकाने वाली राजनीतिक बहस हुई, जब डीएमके सांसद ए राजा ने वंदे मातरम की विरासत और अर्थ पर सवाल उठाया। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू द्वारा सुभाष चंद्र बोस को लिखे पत्र का उल्लेख करते हुए कहा कि राष्ट्रीय गीत के खिलाफ विरोध की जड़ें जितनी मानी जाती हैं, उससे कहीं अधिक ऐतिहासिक हैं।

राष्ट्रगीत पर चर्चा के दौरान राजा ने कहा कि नेहरू ने बोस को अपने पत्र में उल्लेख किया था कि वंदे मातरम के खिलाफ लोगों का गुस्सा कम्युनिस्ट लोगों द्वारा उत्पन्न किया गया था, लेकिन उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि कुछ लोगों की शिकायतें में कुछ सत्यता थी।

राजा ने तर्क दिया कि इन चिंताओं का, विशेष रूप से धार्मिक समुदायों के बीच, एक ऐतिहासिक संदर्भ था और इसे केवल देश-विरोधी भावना कहकर खारिज नहीं किया जा सकता था।

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए, राजा ने दावा किया कि इस बात के पर्याप्त ऐतिहासिक सबूत हैं कि वंदे मातरम केवल ब्रिटिश राज के खिलाफ नहीं था, बल्कि इसके ऐसे अर्थ भी थे जिन्हें आजादी की लड़ाई के दौरान मुसलमानों ने अलग-थलग करने वाला माना था।

उन्होंने कहा कि ऐसी सोच की वजह से आजादी से पहले भी इस गाने को लेकर बेचैनी थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय एकता और बंटवारे पर पहले की गई बातों का जवाब देते हुए, राजा ने भाजपा पर इस मुद्दे का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया। उन्होंने सत्ताधारी पार्टी पर सीधा हमला करते हुए कहा कि वंदे मातरम पर बंटवारा मुसलमानों ने नहीं, बल्कि आपके पुरखों ने किया है।

राजा ने देश में बंटवारे के बारे में प्रधानमंत्री के दावे पर भी सवाल उठाया। उन्होंने पूछा कि क्या भारत के बंटवारे में राष्ट्रीय गीत का कोई भूमिका था और वंदे मातरम का असली सपना वास्तव में क्या दर्शाता है।

यह मानते हुए कि यह गीत आजादी की लड़ाई से गहराई से जुड़ा है और इसे बड़े पैमाने पर एकता की ताकत माना जाता है, डीएमके नेता ने इस पर जोर दिया कि ऐतिहासिक असहमतियों को नजरअंदाज करने से आज की भावनाओं को समझने में मदद नहीं मिलेगी।

राजा ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय प्रतीकों पर चर्चा राजनीतिक कहानियों के बजाय ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए। उन्होंने दोहराया कि उनकी बातों का उद्देश्य आज़ादी की लड़ाई को कम आंकना नहीं था, बल्कि यह बताना था कि आजादी की लड़ाई के नेताओं के बीच भी अलग-अलग अर्थ थे।

Point of View

उसके पीछे गहरी सामाजिक और राजनीतिक जड़ें थीं। यह आवश्यक है कि हम इन ऐतिहासिक तथ्यों को समझें और उन्हें वर्तमान संदर्भ में देखें।
NationPress
08/12/2025

Frequently Asked Questions

क्या वंदे मातरम का विरोध सिर्फ राजनीतिक कारणों से था?
वंदे मातरम का विरोध कई ऐतिहासिक और सामाजिक कारणों से था, जो विभिन्न समुदायों के दृष्टिकोण को दर्शाता है।
क्या ए राजा का कहना सही है?
ए राजा का कहना है कि वंदे मातरम का विरोध केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि ऐतिहासिक भी है, जिसमें विभिन्न समुदायों की चिंताएँ शामिल हैं।
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