क्या है वासुदेव द्वादशी? भगवान विष्णु को प्रसन्न करने का विशेष दिन, जानें पूजा की विधि

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क्या है वासुदेव द्वादशी? भगवान विष्णु को प्रसन्न करने का विशेष दिन, जानें पूजा की विधि

सारांश

वासुदेव द्वादशी एक पवित्र दिन है जो भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित है। इस दिन व्रत करने से पापों का नाश और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। जानें इस विशेष दिन की पूजा विधि और महत्व।

Key Takeaways

  • वासुदेव द्वादशी भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित है।
  • इस दिन का व्रत करने से सभी पाप नष्ट होते हैं।
  • संतान सुख की प्राप्ति के लिए यह व्रत फलदायी है।
  • पूजा विधि में स्नान, वस्त्र धारण, और भोग लगाना शामिल है।
  • ब्राह्मण को दान देने का महत्व है।

नई दिल्ली, 6 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि, 7 जुलाई को वासुदेव द्वादशी के रूप में मनाया जाएगा। यह पवित्र दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, संतान सुख की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

शास्त्रों के अनुसार, महर्षि नारद ने माता देवकी को इस व्रत का महत्व बताया था। वासुदेव द्वादशी का व्रत देवशयनी एकादशी के अगले दिन मनाया जाता है। इस साल यह सोमवार को पड़ रहा है, जो इसे और भी सिद्धिदायक बनाता है। इस दिन सूर्योदय सुबह 5:29 बजे और सूर्यास्त शाम 7:23 बजे होगा। राहुकाल सुबह 7:14 से 8:58 तक रहेगा, इस दौरान पूजा से बचना चाहिए। अनुराधा नक्षत्र और वृश्चिक राशि में चंद्रमा का संचार इस दिन को और शुभ बनाता है।

पौराणिक ग्रंथों में वासुदेव द्वादशी के व्रत और पूजन की विधि की जानकारी विस्तार से मिलती है। इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। भगवान वासुदेव और माता लक्ष्मी की प्रतिमा को पंचामृत और गंगाजल से स्नान कराने के बाद लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर स्थापित करना चाहिए। इसके बाद भगवान को फूल, मौली, रोली, हल्दी आदि पूजन सामग्री चढ़ानी चाहिए और धूप, दीप दिखाने के बाद खीर या मिठाई का भोग लगाना चाहिए।

भगवान के सामने ध्यान लगाने के बाद माता लक्ष्मी को समर्पित कनकधारा का पाठ करने के बाद नारायण के लिए विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मण को दान करने का भी विशेष महत्व माना जाता है, जो अत्यंत पुण्यदायी है।

शास्त्रों के अनुसार, इस व्रत से मोक्ष की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। संतान प्राप्ति की कामना रखने वाले दंपतियों के लिए यह व्रत विशेष फलदायी है। इस दिन भगवान शिव का पूजन भी विशेष शुभदायी माना जाता है, क्योंकि द्वादशी तिथि में शिव का वास होता है और यह दिन सोमवार को पड़ रहा है।

Point of View

बल्कि यह भारतीय संस्कृति की गहराई और भक्ति का प्रतीक है। इस दिन की पूजा विधि और इसके पीछे की मान्यताएँ, समाज में संप्रदाय एकता और परंपरा को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
NationPress
04/09/2025

Frequently Asked Questions

वासुदेव द्वादशी का महत्व क्या है?
वासुदेव द्वादशी का महत्व भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करना है। इस दिन व्रत करने से सभी पाप नष्ट होते हैं और संतान सुख की प्राप्ति होती है।
वासुदेव द्वादशी की पूजा विधि क्या है?
इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें, भगवान वासुदेव और माता लक्ष्मी की प्रतिमा को स्नान कराएं और फिर पूजा सामग्री चढ़ाएं।
कब मनाई जाती है वासुदेव द्वादशी?
वर्ष 2023 में, वासुदेव द्वादशी 7 जुलाई को मनाई जाएगी।
क्या वासुदेव द्वादशी पर दान करना आवश्यक है?
हां, वासुदेव द्वादशी पर ब्राह्मण को दान करना विशेष महत्व रखता है।
क्या इस दिन भगवान शिव की पूजा भी करनी चाहिए?
जी हां, इस दिन भगवान शिव की पूजा को भी शुभ माना जाता है।