क्या विष्णु प्रभाकर जयंती विशेष में ‘आवारा मसीहा’ और ‘अर्द्धनारीश्वर’ का पाठ पढ़ाया गया?

Key Takeaways
- विष्णु प्रभाकर ने हिंदी साहित्य को नई दिशा दी।
- ‘आवारा मसीहा’ और ‘अर्द्धनारीश्वर’ उनकी प्रसिद्ध रचनाएं हैं।
- उन्होंने समाज में जागरूकता और सुधार की दिशा में कार्य किया।
- उनकी रचनाएं मानवीय संवेदनाओं का गहरा चित्रण करती हैं।
- उनकी लेखनी में नारी की स्थिति और सामाजिक असमानता पर गहरा ध्यान दिया गया है।
नई दिल्ली, 20 जून (राष्ट्र प्रेस)। ‘मौन ही मुखर है कि वामन ही विराट है…’ हिंदी साहित्य के एक अनमोल रत्न विष्णु प्रभाकर हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से इस पंक्ति के गहरे अर्थ को उजागर किया, जो बिना किसी शोर के समाज की तत्कालीन समस्याओं पर प्रहार करती है। आधुनिक हिंदी साहित्य में उनकी कालजयी रचनाओं ने न केवल साहित्य जगत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया, बल्कि पाठकों के दिलों में एक विशेष स्थान भी बनाया।
हिंदी साहित्य का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो, जिसे उन्होंने न संवारा हो। कहानी, नाटक, उपन्यास, यात्रा वृतांत, रेखाचित्र, संस्मरण, निबंध और बाल साहित्य सहित अनुवाद में भी उनकी लेखनी की छाप स्पष्ट है।
भारत सरकार ने उनके साहित्यिक योगदान को मान्यता देते हुए ‘पद्म भूषण’ और ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से उन्हें सम्मानित किया। इसके अलावा, वे कई अन्य पुरस्कारों के भी प्राप्तकर्ता रहे हैं।
21 जून को विष्णु प्रभाकर की जयंती मनाई जाती है। उनकी कृतियों में एक ऐसी धार है, जो हिंदी साहित्य को समृद्ध करने के लिए पर्याप्त है। उनकी रचनाएं समाज, मानवता और जीवन के विविध रंगों को उजागर करती हैं।
‘आवारा मसीहा’ और ‘अर्द्धनारीश्वर’ जैसी कालजयी रचनाओं के माध्यम से उन्होंने साहित्य को नई दिशा प्रदान की।
विष्णु प्रभाकर का जन्म 21 जून, 1912 को उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के मुजफ्फरपुर गांव में हुआ था। उनका बचपन साधारण था, किंतु उनकी रचनात्मकता अद्वितीय थी। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की और पत्रकारिता से लेकर शिक्षण तक विभिन्न क्षेत्रों में कार्य किया। उनके लिए साहित्य केवल लेखन का माध्यम नहीं, बल्कि समाज को दिशा देने का एक साधन था। उनकी रचनाओं में जीवन के दुख-सुख, सामाजिक असमानताएं और मानवीय संवेदनाएं गहराई से उभरती हैं।
‘आवारा मसीहा’ उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है, जो बंगला साहित्य के महान उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की जीवनी पर आधारित है। प्रभाकर ने इसे इतनी जीवंतता के साथ लिखा है कि यह एक उपन्यास की तरह पढ़ी जाती है। इस कृति में शरतचंद्र का जीवन, उनकी साहित्यिक यात्रा और संघर्ष को बखूबी दर्शाया गया है।
शरतचंद्र को ‘आवारा मसीहा’ कहकर प्रभाकर ने उनकी स्वतंत्र चेतना और समाज के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता को रेखांकित किया। यह रचना न केवल शरतचंद्र के व्यक्तित्व को समझने का माध्यम है, बल्कि उस समय की सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की झलक भी प्रस्तुत करती है। प्रभाकर ने इस जीवनी को लिखने के लिए गहन शोध किया, जिससे यह साहित्यिक और ऐतिहासिक दृष्टियों से महत्वपूर्ण बन गई। इसी कृति के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था।
दूसरी ओर, ‘अर्द्धनारीश्वर’ के माध्यम से उन्होंने नारी और पुरुष के बीच समानता और संतुलन का दर्शन प्रस्तुत किया। यह रचना भारतीय दर्शन के कॉन्सेप्ट ‘अर्द्धनारीश्वर’ पर आधारित है, जिसमें शिव और शक्ति के एक रूप का चित्रण किया गया है। प्रभाकर ने इस नाटक के जरिए समाज में लैंगिक असमानता, पितृसत्तात्मक मानसिकता और नारी की स्थिति पर गहरे प्रश्न उठाए। यह नाटक नारी को केवल शक्ति का प्रतीक नहीं, बल्कि पुरुष के साथ समानता का हिस्सा मानता है।
विष्णु प्रभाकर की लेखनी में नारी का चरित्र न तो कमजोर है और न ही अतिशयोक्तिपूर्ण, बल्कि वह मानवीय संवेदनाओं और संघर्षों से भरा हुआ है। ‘अर्द्धनारीश्वर’ यह संदेश देता है कि नारी और पुरुष एक-दूसरे के पूरक हैं और सच्चा विकास तभी संभव है जब दोनों को समान अवसर और सम्मान मिले।
विष्णु प्रभाकर की रचनाएं केवल साहित्य तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उन्होंने सामाजिक सुधार और जागरूकता की दिशा में भी कार्य किया है। उनकी रचनाओं में मानवता, करुणा और सामाजिक न्याय की पुकार स्पष्ट सुनाई देती है। चाहे वह ‘आवारा मसीहा’ में शरतचंद्र के माध्यम से समाज की कुरीतियों पर प्रहार हो या ‘अर्द्धनारीश्वर’ में लैंगिक समानता की बात, उनकी लेखनी हमेशा विचारोत्तेजक रही है। उनकी कहानियां और निबंध समाज के विभिन्न वर्गों की पीड़ा और आकांक्षाओं को दर्शाते हैं। बाल साहित्य में भी उन्होंने बच्चों के लिए ऐसी रचनाएं तैयार की हैं, जो मनोरंजन के साथ-साथ नैतिक मूल्यों का संदेश भी देती हैं।