क्या योग को मजहब या मुल्क की दीवार में बांधना उचित है?

सारांश
Key Takeaways
- योग
- योग सम्पूर्ण मानवता के लिए एक अमूल्य उपहार है।
- राजनीतिकरण का प्रयास योग के महत्व को कम करता है।
- योग मानसिक संतुलन और शांति का प्रतीक है।
- समाज को योग को अपनाना चाहिए।
रामपुर, 20 जून (राष्ट्र प्रेस)। पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के प्रमुख नेता मुख्तार अब्बास नकवी शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के रामपुर में दो दिवसीय प्रवास पर पहुँचे। इस दौरान उन्होंने पार्टी के पदाधिकारियों और स्थानीय बुद्धिजीवियों से संवाद किया और अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस तथा अन्य समसामयिक मुद्दों पर चर्चा की। योग दिवस की पूर्व संध्या पर नकवी ने एक वीडियो संदेश जारी कर योग के वैश्विक महत्व और इसके राजनीतिकरण के प्रयासों पर अपने विचार साझा किए।
मुख्तार अब्बास नकवी ने अपने वीडियो संदेश में कहा कि योग को किसी भी मजहब या देश की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता। यह भारत की धरती से निकला हुआ सम्पूर्ण मानवता के लिए एक मूल्यवान उपहार है। योग स्वास्थ्य, मानसिक संतुलन और शांति का प्रतीक है, जो सीमाओं को पार कर सभी के जीवन को सशक्त बनाता है। 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की, जिसे अब दुनिया भर में उत्साह से मनाया जाता है।
नकवी ने कहा कि आज पूरी दुनिया इस तंदुरुस्ती के पर्व को संकल्प, जुनून और जज्बे के साथ मना रही है। चाहे कोई भी जाति, धर्म या देश से हो, योग सभी के लिए है। यह मानवता का एक ऐसा उत्सव बन चुका है जो सीमाओं के पार जाता है। योग दिवस के संदर्भ में राजनीति पर नकवी ने कहा कि कुछ लोग इस स्वास्थ्य उत्सव को राजनीतिकरण करने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे मानसिक रूप से संक्रमित लोगों के उपचार के लिए भी योग सबसे बड़ा उपाय है। योग मानसिक और वैचारिक शुद्धता का माध्यम है और यही उन्हें मानसिक संतुलन प्रदान करेगा।
उन्होंने कहा कि वे स्वयं 21 जून को रामपुर के रोशन बाग स्थित सिविल लाइंस में आयोजित योग शिविर में भाग लेंगे। उन्होंने समाज के सभी वर्गों से अपील की कि वे योग दिवस पर सक्रिय भागीदारी करें। योग न किसी धर्म का है, न किसी पार्टी का, यह सम्पूर्ण मानवता के स्वास्थ्य का खजाना है। इसे साम्प्रदायिक रंग देना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण और अस्वीकार्य है।
उन्होंने कहा कि जो लोग योग को नहीं अपनाना चाहते, वे अपनी सोच के कारण मानसिक संकुचन में फंसे रहेंगे। लेकिन समाज को चाहिए कि वह योग रूपी इस 'गोल्डन की' को अपनाएं और स्वस्थ जीवन की दिशा में आगे बढ़ें।