क्या भारत का ग्रीन वेयरहाउस स्पेस 2030 तक चार गुना बढ़ जाएगा?

सारांश
Key Takeaways
- भारत का ग्रीन वेयरहाउसिंग सेक्टर तेजी से बढ़ रहा है।
- 2030 तक सर्टिफाइड वेयरहाउस स्पेस 27 करोड़ वर्ग फुट तक पहुंचने की संभावना है।
- ई-कॉमर्स की वृद्धि के कारण मांग बढ़ रही है।
- संस्थागत निवेशकों का विश्वास बढ़ रहा है।
- ग्रीन सर्टिफिकेशन से पर्यावरण को लाभ हो रहा है।
मुंबई, 16 जुलाई (राष्ट्र प्रेस) । ग्लोबल रियल एस्टेट सर्विस कंपनी जेएलएल द्वारा बुधवार को प्रस्तुत एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत का ग्रीन वेयरहाउसिंग सेक्टर तेजी से विस्तार की ओर अग्रसर है, जिसमें सर्टिफाइड वेयरहाउस स्पेस 2030 तक वर्तमान स्तर से चार गुना बढ़कर लगभग 27 करोड़ वर्ग फुट होने का अनुमान है।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि 2019 से भारत के प्रमुख शहरों में ग्रेड ए वेयरहाउसिंग स्टॉक में वृद्धि हो रही है, जो 8.8 करोड़ वर्ग फुट से 2.5 गुना बढ़कर 2024 तक 23.8 करोड़ वर्ग फुट तक पहुंच जाएगा।
यह वृद्धि उच्च गुणवत्ता वाले भंडारण और वितरण सुविधाओं की बढ़ती मांग को दर्शाती है, क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था तेजी से आधुनिक हो रही है और ई-कॉमर्स का विस्तार हो रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, संस्थागत-ग्रेड वेयरहाउसिंग स्पेस में भी तेजी से वृद्धि देखने को मिल रही है, जो 2019 में 28 मिलियन वर्ग फुट से तीन गुना बढ़कर 2024 के अंत तक 90 मिलियन वर्ग फुट तक पहुंचने की संभावना है। यह उछाल प्रमुख वैश्विक निवेशकों के बढ़ते विश्वास को दर्शाता है, जो अंतर्राष्ट्रीय स्थिरता मानकों को भारतीय बाजार में ला रहे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है, "संस्थागत ग्रेड ए सप्लाई के 90 मिलियन वर्ग फुट में से लगभग 72 प्रतिशत या 65 मिलियन वर्ग फुट ग्रीन सर्टिफाइड है या वर्तमान में ग्रीन सर्टिफिकेशन के विभिन्न चरणों में है। यह अत्यंत उत्साहजनक है कि यह 65 मिलियन वर्ग फुट 2030 तक चार गुना बढ़ने का अनुमान है, क्योंकि संस्थागत प्लेयर्स स्थिरता को प्राथमिकता दे रहे हैं। यह हरित क्रांति न केवल पर्यावरण के लिए लाभदायक है, बल्कि यह बेहतर परिचालन दक्षता, कम ऊर्जा लागत और बढ़ी हुई बाजार क्षमता के साथ भविष्य-सुरक्षित परिसंपत्तियों की ओर एक मौलिक बदलाव को दर्शाती है।"
जेएलएल भारत के इंडस्ट्रियल एंड लॉजिस्टिक्स हेड योगेश शेवड़े ने कहा, "भारत का ग्रीन वेयरहाउसिंग परिवर्तन न केवल संस्थागत निवेशकों द्वारा समर्थित डेवलपर्स द्वारा, बल्कि कॉर्पोरेट ऑक्यूपायर्स या किरायेदारों द्वारा भी संचालित है। अधिकांश कॉर्पोरेट्स के नेट जीरो लक्ष्य उन्हें ग्रीन सर्टिफाइड वेयरहाउस चुनने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।"
उन्होंने आगे बताया कि जेएलएल के विश्लेषण से पता चलता है कि ऑक्यूपायर ऊर्जा खपत में 30-40 प्रतिशत की बचत (परियोजना जीवनचक्र में) और अपशिष्ट, हरित सामग्री आदि के पुनर्चक्रण के अलावा पानी की बचत पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि रिसर्च में मौजूदा नॉन-ग्रीन कंप्लायंट ग्रेड ए स्टॉक के पुनर्निर्माण और इन परिसंपत्तियों को भविष्य के लिए सुरक्षित बनाने हेतु ग्रीन वेयरहाउस के फंडिंग के अवसरों की भी महत्वपूर्ण संभावनाएं सामने आई हैं।