क्या ट्यूशन पढ़ाकर जीवन गुजारने वाले 'अनजान' बॉलीवुड के सुपरहिट गीतों के जादूगर बन गए?
सारांश
Key Takeaways
- लालजी पांडेय उर्फ अनजान का संघर्ष प्रेरणादायक है।
- ट्यूशन पढ़ाना उनके जीवन का एक अहम हिस्सा था।
- बॉलीवुड में उनके हिट गाने आज भी मशहूर हैं।
- संघर्ष और मेहनत से उन्होंने सफलता पाई।
- उनका योगदान भारतीय संगीत में अमूल्य है।
मुंबई, 27 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बनारस की गलियों में जन्मे लालजी पांडेय एक प्रतिभाशाली गीतकार थे, जिन्हें सब ‘अनजान’ के नाम से जानते हैं। उनके करियर की चमक जितनी थी, उनके शुरुआती दिनों में उतने ही संघर्ष भी थे। उन्होंने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर अपनी रोजमर्रा की जरूरतें पूरी की थीं। बॉलीवुड में कदम रखने से पहले, गणित के सवाल हल करवा कर अपने परिवार का पेट पालते थे।
लालजी पांडेय का जन्म 28 अक्टूबर 1930 को उत्तर प्रदेश के बनारस में हुआ। उनके परिवार में बचपन से ही कला और साहित्य का माहौल था। उनके परदादा राजाराम शास्त्री बड़े ज्ञाता थे, और यही कला का रस उनके रक्त में समाया हुआ था। उन्होंने बचपन में ही कविता और लेखन की ओर रुचि दिखाई और बनारस के प्रसिद्ध कवि रुद्र काशिकेय से शिक्षा प्राप्त की।
बनारस की पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कविताएं छपने लगीं और स्थानीय काव्य गोष्ठियों में वह अपनी सुरीली आवाज से लोगों का दिल जीतने लगे। उस समय हरिवंश राय बच्चन की किताब 'मधुशाला' विशेष रूप से लोकप्रिय थी, और अनजान ने इसका पैरोडी रूप 'मधुबाला' लिखा, जो युवा पीढ़ी में खासा प्रसिद्ध हुआ।
मुंबई आने का उनका निर्णय स्वास्थ्य और करियर दोनों के लिए आवश्यक था। उन्हें अस्थमा की गंभीर बीमारी थी और डॉक्टरों ने कहा कि अगर वह शुष्क वातावरण में रहेंगे तो जीवित नहीं रह सकेंगे। इसलिए उन्होंने समुद्र के किनारे बसने का निर्णय लिया और मुंबई का रुख किया। मुंबई आने के बाद अनजान को लंबी संघर्ष की शुरुआत करनी पड़ी। उनके बनारस के दोस्त शशि बाबू ने उन्हें गायक मुकेश से मिलवाया, जिन्होंने उनकी कविताएं सुनकर उन्हें फिल्मों में गीत लिखने के लिए प्रोत्साहित किया।
मुकेश की मदद से उन्हें प्रेमनाथ की फिल्म 'प्रिजनर ऑफ गोलकुंडा' में काम मिला। इस फिल्म के गाने अनजान ने लिखे, लेकिन यह फिल्म फ्लॉप रही, फिर भी दर्शकों को गाने पसंद आए। यही वह समय था जब अनजान को जीविका चलाने के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना पड़ा। ट्यूशन पढ़ाना उनके लिए केवल पैसे कमाने का एक साधन नहीं, बल्कि उनके संघर्ष और मेहनत की कहानी का महत्वपूर्ण हिस्सा भी था।
उनकी मेहनत और लगन का रंग चढ़ा और 17 वर्षों के संघर्ष के बाद उन्हें फिल्म 'गोदान' में मौका मिला। इस फिल्म के गीतों ने उन्हें पहचान दिलाई और उनके कार्य में स्थिरता आई। इसके बाद उन्हें राजेश खन्ना और मुमताज की फिल्म 'बंधन' में गाने लिखने का अवसर मिला, जिसमें उनका गाना 'बिना बदरा के बिजुरिया' बहुत प्रसिद्ध हुआ। इसके बाद उन्होंने कल्याणजी-आनंदजी, बप्पी लहरी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, और आर.डी. बर्मन जैसे दिग्गज संगीतकारों के साथ काम किया। उन्होंने बॉलीवुड को 'खइके पान बनारस वाला', 'पिपरा के पतवा सरीखा डोले मनवा', और 'बिना बदरा के बिजुरिया' जैसे हिट गाने दिए। उनके गीतों में भोजपुरी और पूर्वांचल की मिठास झलकती थी और उनकी लेखनी लोगों के दिलों को छू जाती थी।
अनजान का निधन 3 सितंबर 1997 को 67 वर्ष की उम्र में हुआ। उनकी विरासत केवल उनके गाने नहीं, बल्कि उनका संघर्ष और मेहनत भी है।