क्या आर्ट सिनेमा का 'जुनून' रखने वाले निर्देशक गोविंद निहलानी ने भी अपनी पहली फिल्म के लिए गोल्डन पीकॉक जीता?
सारांश
Key Takeaways
- गोविंद निहलानी का जन्म सिंध में हुआ था।
- उन्होंने 'आक्रोश' के लिए गोल्डन पीकॉक जीता।
- उनकी फिल्मों में सामाजिक मुद्दों पर गहरी टिप्पणी की गई है।
- उन्होंने कई राष्ट्रीय पुरस्कार और फिल्मफेयर अवॉर्ड्स जीते हैं।
- उनकी फिल्में दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती हैं।
मुंबई, 18 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। फिल्म निर्माता-निर्देशक गोविंद निहलानी भारतीय समानांतर या आर्ट सिनेमा के महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक माने जाते हैं। उन्होंने अपनी फिल्मों के माध्यम से सामाजिक मुद्दों को गहराई से उजागर किया है और अनेक राष्ट्रीय पुरस्कार जीते हैं।
उनकी पहली निर्देशित फिल्म 'आक्रोश' 1980 में रिलीज हुई थी, जिसे भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए गोल्डन पीकॉक अवॉर्ड प्राप्त हुआ था। 'आक्रोश' एक कानूनी ड्रामा थी, जिसमें ओम पुरी, नसीरुद्दीन शाह, स्मिता पाटिल और अमरीश पुरी जैसे कलाकारों ने प्रमुख भूमिकाएं निभाईं। इसकी पटकथा प्रसिद्ध मराठी नाटककार विजय तेंदुलकर ने लिखी थी। यह फिल्म सामाजिक अन्याय और दलित मुद्दों पर आधारित थी, जिसने दर्शकों और आलोचकों का दिल जीत लिया। श्याम बेनेगल के साथ उनकी जोड़ी ने भी खूब सुर्खियां बटोरीं।
इसके बाद, गोविंद निहलानी ने 1983 में 'अर्ध सत्य' का निर्देशन किया, जो एसडी पनवलकर की कहानी पर आधारित थी। यह फिल्म पुलिस व्यवस्था और नैतिकता पर गहरी टिप्पणी करती है। 1997 में, उन्होंने महाश्वेता देवी के प्रसिद्ध उपन्यास 'हजार चौरासी की मां' पर आधारित एक फिल्म बनाई, जो नक्सलवाद और मां के दर्द को बखूबी चित्रित करती है।
गोविंद निहलानी को उनकी फिल्मों 'आक्रोश', 'अर्ध सत्य', 'दृष्टि', 'हजार चौरासी की मां', 'तमस', 'विजेता', 'देव', 'कलयुग' और 'कुरुतिपुनल' के लिए कई राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिल चुके हैं। इसके अलावा, 'जुनून', 'विजेता', 'आक्रोश', 'अर्ध सत्य' और 'देव' जैसी फिल्मों के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड्स से भी नवाजा गया है।
'तमस' एक टेलीविजन सीरीज थी, जो विभाजन के दंगों पर आधारित थी और इसे भी अत्यधिक सराहना मिली।
फिल्म जगत को गंभीर विषयों पर अद्वितीय फिल्में देने वाले गोविंद निहलानी का जन्म सिंध (अब पाकिस्तान) में हुआ था। विभाजन के समय उनका परिवार जोधपुर चला गया और बाद में उदयपुर में बस गया। उनके पिता वहां अनाज के व्यापारी बने।
एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि उन्हें फिल्मों का शौक कैसे लगा। उन्होंने कहा कि वह सिनेमाघरों में अंग्रेजी फिल्में देखने जाते थे और फोटोग्राफी का शौक भी रखते थे, जो बाद में सिनेमेटोग्राफी की ओर ले गया। उदयपुर में शिक्षा पूरी करने के बाद, 18 साल की उम्र में जब उन्होंने फिल्मों में करियर बनाने की इच्छा जताई, तो उनके पिता चौंक गए, क्योंकि उस समय फिल्म इंडस्ट्री को सम्मानजनक पेशा नहीं माना जाता था। गोविंद ने पहले सिनेमेटोग्राफर के रूप में काम किया और फिर निर्देशन में कदम रखा।
उनकी फिल्में हमेशा सामाजिक यथार्थ, अन्याय और मानवीय संवेदनाओं को केंद्र में रखती हैं। गोविंद निहलानी ने भारतीय सिनेमा को गंभीर और विचारोत्तेजक फिल्मों की समृद्ध विरासत प्रदान की है।